दिल्ली : पिछले 24 घंटों में एक-आध ऐसी खबर आयी कि लगा कि भाजपा अब आर्थिक मंदी को लेकर गंभीर हो गई है। वरना, पहले तो सावन से लेकर ओला-उबर तक इसके लिए जिम्मेदार थे।
थोड़ा और पीछे जाएं तो मंदी थी ही नहीं। ऐसा भाजपा के विद्वान नेताओं का मानना था। लेकिन रात होते-होते भ्रम टूट गया। एक बयान आया कि भारत की अर्थव्यवस्था 10 ट्रिलियन की हो सकती है। अभी संबित पात्रा एक ट्रिलियन में आने वाले जीरो की संख्या गिनकर बता भी नहीं पाए थे कि रक्षा मंत्री ने उनका काम और कठिन कर दिया। भगवान मदद करे पात्रा जी की। वैसे गलती मेरी है कि मैंने गलत दिन और गलत दौर में इस विषय को उठा लिया। पीएम मोदी के जन्मदिन और पाकिस्तान को टुकड़े-टुकड़े करने के दौर में यह विषय तो कतई मौजू नहीं है। हमारे न्यूज चैनल इसीलिए सुबह से '569 किलो का लड्डू' और 'लंच विद माँ' के मेन्यू पर शोधपरक व्याख्यान परोस रहे थे। शाम होते विदेश मंत्री जी आए और बोले कि जल्द ही पीओके भारत का भूभाग होगा। फिर तो रात को सभी चैनल लाठी, बल्लम, कट्टा लेकर बॉर्डर पर जा जमे। ललकारने लगे इमरान को।
इमरान भागकर अफगानिस्तान गए या चीन ये तो कल-परसों हमारे न्यूज चैनल बता ही देंगे। पर जीडीपी घटकर सिर्फ 5 फीसद रह जाने और आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास की हैरानी और अर्थव्यवस्था के चौथे और सबसे बड़े बूस्टर पैकेज के लिए चल रही बैठकों के बारे में कोई बता दे तो बड़ी मेहरबानी होगी। आज कम से कम दो खबरें ऐसी आयीं (राष्ट्रवादी चैनलों पर नहीं) कि कुछ उम्मीद बंधी। जीडीपी के छह साल के न्यूनतम पर आने पर हैरत जताए जाने के बावजूद शक्तिकांत दास का फोकस अब दुरुस्त नजर आया। वे चाहते हैं कि सरकार किसानों और व्यापारियों पर ध्यान दे। इसी तरह खबर आई कि केन्द्र के चौथे बूस्टर पैकेज का मुख्य मकसद अर्थव्यवस्था में नकदी को बढ़ाना और निवेश को रफ्तार देना होगा। लगता है अब नब्ज आरबीआई और सरकार की पकड़ में आने लगी है। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि नकदी कैसे बढ़ाई जाएगी? क्या बाजार में नकदी बढ़ाने के लिए रोजगार सृजन पर भी फोकस होगा जबकि बेरोजगारी की दर अपने 45 साल के सर्वोच्च स्तर पर है। या फिर कोई अन्य तरीका अपनाया जाएगा। वैसे केंद्रीय बैंक इस साल रेपो रेट 1.10 प्वाइंट की कटौती कर चुकी है पर यह युक्ति अभी कोई असर नहीं दिखा पाई है। तैयारियों के बावजूद अब और कटौती कर पाना शायद संभव न हो, क्योंकि तेल की कीमत अब बढ़ने लगी हैं। आगे और तेजी आने की आशंका है। दरअसल इन दिनों बाजार में पैसा ही नहीं है। पैसा तब आएगा जब न सिर्फ रोजगार बल्कि निश्चिंतता भी बढ़ेगी। अभी तो हालत ठीक उलट है। विदेशी निवेशक जुलाई से अब तक लगभग 40 हजार करोड़ रुपए निकाल चुके हैं। ऑटो सेक्टर की बिक्री में तकरीबन 40 फीसद और कपड़े की बिक्री में 35 फीसद की की गिरावट आ चुकी है। इन दोनों सेक्टर में 40 लाख नौकरियां दांव पर लगी हैं। रीयल इस्टेट का बाजा बजा हुआ है। 30 शहरों में 13 लाख फ्लैट तैयार खड़े हैं पर खरीदने वाला कोई नहीं है। किसानों की आय भी गोते खा रही है। ऐसे में बाजार में पैसा आएगा कहां से।
ऐसे में 10 ट्रिलियन इकॉनिमी की बात हवा में जलेबी बनाने जैसा ही है। वह भी तब, जब भारतीय अर्थव्यवस्था पांचवे नम्बर से फिसलकर सातवें नम्बर पर आ गई हो। ध्यान दें कि 2018 में 20.49 ट्रिलियन डॉलर के साथ अमरीकी अर्थव्यवस्था पहले नंबर है और 13.61 ट्रिलियन डॉलर के साथ चीन की अर्थव्यवस्था दूसरे नंबर पर थी। जबकि भारत 2.73 ट्रिलियन डॉलर के साथ पाँचवे नम्बर पर था, जो फिर फिसल गया। लगता है कि अर्थव्यवस्था के साथ साथ सरकार के मंत्रियों की जुबान भी फिसल रही है। और, मसाला मिल जा रहा है उनको, जिन्हें एक्शन, ड्रामा और ढोल नगाड़ों के साथ दिन में 16 घंटे चीखना चिल्लाना होता है। गंभीर खबरों और मुद्दों में न तो झस्स और न सहूलियत। लिहाजा पीओके और उसके जैसे तमाम जिन्न दिखाए और परोसे जा रहे हैं। ऐसा हो भी क्यों न क्योंकि ये राजनीति और पत्रकारिता का लंतरानी युग है।
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