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दवा से नही, मन पर नियंत्रण कर बीमारी दूर करे

 


आध्यात्मिक चिकित्सा ; रोग की कोई दवा नही होती 


गीता में शरीर को रथ की उपमा देते हुए कहा गया है कि इन्द्रियां इसके घोड़े हैं, मन सारथी और आत्मा स्वामी है। शरीर और मन का संबंध शासित और शासक जैसा है। शरीर वही कुछ करता है


जिसका मन निर्देश देता है। मन जिधर लगाम खींचता है, शरीर रथ के घोड़े उसी दिशा की ओर दौड़ पड़ते हैं। ऐसा कोई शारीरिक क्रियाकलाप नहीं, जो मन की इच्छा के विपरीत होता हो। जिसकी आज्ञा के बिना कोई काम न हो, उसे मालिक नहीं, तो और क्या कहेंगे? शरीर में ऐसा कोई अंग अवयव नहीं, जो मन की उपेक्षा कर सके। मन से बलवान आत्मा है, इससे ज्यादा ताकतवर शरीर में कोई नहीं। यह जानने के बाद इंकार का कोई कारण नहीं कि मन का संतुलन शोक, रोग, बीमारियों के रूप में भी प्रभावित करता है। विज्ञान भी अब मानने लगा है।


चिकित्सा-विज्ञान ने भी यह मान लिया है कि दवा से नहीं मन पर नियंत्रण कर बीमारी को दूर किया जा सकता है। करीब पचास साल पहले ब्रिटेन के डॉ. हैरी एडवर्ड्स ने तो बिना दवा और बिना सर्जरी के एक नई चिकित्सा पद्धति विकसित की थी, जिसे उन्होंने 'स्पिरीचुअल हीलिंग' (आध्यात्मिक चिकित्सा) कहा था। डॉ. हैरी एडवर्ड्स ने अपनी पुस्तक “ट्रूथ अबाउट स्पिरीचुअल हीलिंग” में इस पद्धति के सिद्धांतो और विधियों का उल्लेख करते हुए ऐसे रोगियों के ब्यौरे दिए हैं, जिन्हें डाॅक्टर्स ने लाइलाज करार दिया


सन 1929 में जब वह कुल साढ़े तीन वर्ष की थीं, तो उनकी रीढ़ की हड्डी में दर्द हुआ। इलाज भी कराया गया, लेकिन रोग ठीक होने की बजाय गंभीर होता गया। चौदह वर्ष की होने तक पीड़ा असहनीय हो चुकी थी और वह चलने-फिरने में असमर्थ हो गई। एलिजाबेथ पूरे 35 साल तक यह पीड़ा झेलती रहीं। चिकित्सकों ने हार मान ली और उसके मर्ज को लाइलाज बताया। सन 1960 में एलिजाबेथ के अभिभावकों को कहीं से डॉ. हैरी एडवर्ड्स के बारे में पता चला। वे एलिजाबेथ को उनके पास ले गए। आश्चर्य की बात यह थी कि कुछ हफ्तों के आध्यात्मिक उपचार से वह ठीक हो गईं।


 डॉ. हैरी एडवर्ड्स ने अपनी इस चिकित्सा पद्धति के बारे में अपनी पुस्तक “ट्रुथ अबाउट स्पिरीचुअल हीलिंग” में लिखा है
आध्यात्मिक चिकित्सा का काम मनुष्य और उसके सर्जक के संबंधों को फिर स्थापित करना है।


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