गाजियाबाद : गुर्जर प्रतिहार राजवंश के सम्राट मिहिर भोज की जयंती और अंतरराष्ट्रीय गुर्जर दिवस के अवसर पर पूरे उत्तर प्रदेश सहित देशभर में रंगारंग कार्यक्रम के आयोजन के साथ मनाया गया। लोनी विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने सम्राट मिहिर भोज के जयंती पर अपने पैतृक गांव गनौली, भाजपा कार्यालय लोनी सहित बागपत, गौतमबृद्धनगर व दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में पहुंचे।
विधायक ने उपस्थित लोगों को अंतरराष्ट्रीय गुर्जर दिवस की बधाई देते दी। वहीं आदिवराह सम्राट मिहिर भोज की जयंती पर पुष्प अर्पित कर नमन करते हुए उनके गौरवशाली इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज भी जब इतिहासकार गुर्जर समाज के गौरवशाली इतिहास का मूल्यांकन करते है तो यह कह उठते है कि भारतीय इतिहास में साम्राज्य की परिभाषा को परिभाषित अगर सही मायने में कोई करता है तो वह गुर्जर-प्रतिहार वंश जिन्होंने सर्वाधिक 400 वर्ष शासन किया। सुशासन के नए आयाम दिए भारत को एकसूत्र में बांधने का कार्य किया। आज जब हम अखंड भारत का स्वपन देखते है या भारत के विश्वगुरू बनने पर चर्चा करते है तो हमारे सामने स्वतः ही सम्राट मिहिर भोज के साम्राज्य का कालखंड याद आता है। जब हिमालय में कश्मीर की सीमा, मुलतान के अरब-राज्य तक प्रतिहार वंश का भगवा ध्वज लहराता था। जब तक हमारा राज था अरब आक्रमणकारियों की हिम्मत नहीं थी कि वे मां भारती के धरती की तरफ आंख उठा कर देख सकें। क्षेत्रफल विस्तार से लेकर, स्थापत्य कला में मुगल साम्राज्य द्वारा हमारे स्थापत्य कला से बने महलों और किला को नष्ट किए जाने के बावजूद भी जो हिस्सा बचा है वो दुनिया को अचरज में डालता है। सुशासन, वित्तिय एवं धार्मिक मान्यताओं की कसौटी पर भी हम सर्वश्रेष्ट रहें। मौर्य साम्राज्य ने लगभग 150 वर्ष , गुप्त साम्राज्य ने 230 वर्ष शासन किया इसके बाद तीसरे व अंतिम साम्राज्य गुर्जर-प्रतिहार राजवंश का था, हमारा था जिस कुल में आदिवराह महान सम्राट मिहिर भोज का जन्म हुआ और सर्वाधिक 400 वर्ष तक शासन करने का हमें सौभाग्य प्राप्त हुआ इसके बाद कोई ऐसा साम्राज्य राजवंश नहीं हुआ जो चक्रवर्ती सम्राट बन पाता। परिणामस्वरूप हमें गुलामी की जंजीर प्राप्त हुई।
नंदकिशोर गुर्जर ने कहा कि हमें गर्व है कि सनातन धर्म के वैभव की पुनः स्थापना में गुर्जर-प्रतिहार वंश ने निभाई थी अहम भूमिका
मैं समाज के युवाओं का आह्वान करता हूं कि उन्हें अपने गौरवशाली इतिहास से प्रेरणा लेनी चाहिए और भारत को विश्वगुरू बनाने की दिशा में कार्य करना चाहिए। जब हम गुर्जर प्रतिहार राजवंश की बात करते हैं तो गुर्जर प्रतिहार वंश भोज वंशी राजाओं की चतुरंग सेनाओं के रथों पर भगवा पताका फहराती थी। सनातन धर्म के रक्षा और उसके उत्थान एवं प्रसार की दिशा में हमने अनुकरणीय इतिहास स्थापित किया है। जब ब्राह्मणों एवं सनातन धर्मियों पर उत्याचार होने लगे और धार्मिक स्थलों की अनादर किया जाने लगा इस संक्रमण काल में आदिवराह यानि कि भगवान विष्णु के उपासक व उनके अंश के तौर पर हमने अपनी राजकीय पता और प्रतीक चिन्ह बनाया जो हमारे युद्ध कालीन पताका पर भी रहता था। महाभारत में भी राज पताकाओं पर भी आदिवराह की छवि अंकित होने वर्णन मिलता है। विशुद्ध सनातन वैदिक हिंदू धर्म को पुनः स्थापित किया व प्राकृत भाषा से अधिक उन्होंने देव भाषा संस्कृत का प्रचार-प्रसार किया उसे अपने राजकाज की भाषा के तौर पर अपनाया। संस्कृत में पुनः उत्कृष्ट साहित्य की रचना की गई। बौद्धों से प्रभावित पूर्वर्ती सम्राटों के द्वारा तोड़े गए मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया गया और सनातन पठन-पाठन सहित पूजा की पद्धति को पुनः स्थापित किया।
हमें यूं ही धर्म रक्षक नहीं कहा जाता हमने अपना लहू देकर सनातन धर्म की रक्षा की है। जब आठवीं सदी में अरब के आक्रमणकारी भगवान भोलेनाथ के सोमनाथ मंदिर नष्ट करने आए और सौराष्ट्र के राजा महोदव के मंदिर की रक्षा नहीं कर सकें तो घटना से आहत होकर सनातन धर्म रक्षक गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रतापी राजा नागभट्ट-2 जी ने सौराष्ट्र की बागडोर अपने हाथों में लेकर 815 ईस्वी में सोमनाथ के मंदिर का भव्य और पुनर्निर्माण किया। जब तक गुर्जर प्रतिहार राजवंश रहा कोई विदेशी अरब हमलावर महोदव के मंदिर को अपवित्र करने का साहस नहीं जुटा सका। लेकिन जब आपसी मतभेद के कारण हमारा पतन हुआ तो देश के गद्दार राजवंशो का शह पाकर महमूद गजनवी ने महादेव के मंदिर को पुनः अपवित्र करने का साहस जुटा पाया। मुरैना के चौसठ योगिनी मंदिर, बटेश्वर मंदिर सहित हजारों मंदिरों का हमारे पूर्वजों ने निर्माण किया। हमारे राजवंश का अपनी मुद्रा थी, सिक्का था जिसपर भगवान विष्णु जी के आदि वराह अवतार की मूर्ति अंकित थी।
मुगलों द्वारा हमारे विरासत और धरोहर को नष्ट किए जाने के बाद इतिहासकारों ने नहीं किया गुर्जर-प्रतिहार वंश से न्याय
हम जब अपने वैभव शाली विरासत की तरफ देखते है और पाते है कि एक महान सामा्रज्य होने के बावजूद सिर्फ इसलिए हमारे साथ इतिहासकारों और बुद्धिजीवियों ने न्याय नहीं किया क्योंकि हमने सनातन धर्म के वैभव की पुनः स्थापना कि देश के अखंडता और संप्रभुता की रक्षा के लिए हमने 400 वर्षो तक अरबों को देश की सीमा से दूर रखा। हिंदू राष्ट्र के लिए हम आजीवन समर्पित रहें। इतिहासकारों ने हमेशा दोहरी मानसिकता का परिचय दिया है। सनातन विरोधी मानसिकता का परिचय दिया है। आज इतिहासकारों के अर्धसत्य इतिहास के बदौलत अकबर महान हो जाता है, नास्तिर व अनीश्वरवादी सम्राट अशोक होते है लेकिन चक्रवर्ती सम्राट मिहिर भोज के वैभवशाली और सुशासन के प्रतीक गुर्जर-प्रतिहार राजवंश को सिर्फ किताबों के कुछ छोटे से पैराग्राफ में सिमटा दिया जाता है। मैं पूछना चाहता हूं ऐसा क्यों क्योंकि हमारे समाज ने हमारे पूर्वजों द्वारा शिक्षा को अपना हथियार बनाया गया था लेकिन उसे हम इतिहास लिखते समय भूल चुके थे। आज जरूरत है कि गुर्जर समाज अपने गौरवशाली इतिहास को पुनः लिखें जन-जन तक पहुंचाने के लिए इतिहास में शोध करें, पीएचडी करें और फिल्म एवं सीरियलों के माध्यम से सर्व समाज के सामने लाएं तभी हमारे पूर्वजों के दिव्य आत्माओं को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित होगी और समाज को असली गौरव की अनुभूति प्राप्त होगी और युवाओं में जोश को देखकर मैं आश्वस्त हूं कि वह दिन अब नजदीक है।
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