संकल्प लेकर करें मां गायत्री की साधना
गाजियाबाद : आज के दिन का संकल्प हो कि गायत्री अर्थात् सद्बुद्धि हमारे विचारों और भावनाओं में अवतरित हो, जीवन विवेकशीलता, विचारशीलता और उच्चकोटि के आदर्शों से समन्वित हो।
!!! तुम " नर " से " नारायण " बन सकते हो !!!
यह आध्यात्मिक धारा जब मनुष्यों में प्रवाहित होने लगी, तो इसे गायत्री विद्या, ब्रह्मविद्या कहा गया। यह शक्ति मनुष्य की तमाम सुषुप्त शक्तियों को उभारने व विकसित करने वाली है। यह मनुष्यों को सिद्धियों एवं विभूतियों से भर देती है। यह मनुष्य के सच्चे स्वरूप को दिखाती है और कहती है कि तुम भटके हुए देवता हो, भटकन से उबरकर देवमानव बन सकते हो, नर से नारायण बन सकते हो।
समस्त धर्म ग्रंथों में गायत्री की महिमा एक स्वर से कही गई। समस्त ऋषि-मुनि मुक्त कंठ से गायत्री का गुण-गान करते हैं। शास्त्रों में गायत्री की महिमा के पवित्र वर्णन मिलते हैं। गायत्री मंत्र तीनों देव, बृह्मा, विष्णु और महेश का सार है। गीता में भगवान् ने स्वयं कहा है 'गायत्री छन्दसामहम्' अर्थात् गायत्री मंत्र मैं स्वयं ही हूं।
गायत्री मंत्र : अर्थ सहित व्याख्या :
!!! ॐ भूर्भुवः स्व: ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॐ !!!
ॐ : परब्रह्मा का अभिवाच्य शब्द
भूः : भूलोक
भुवः : अंतरिक्ष लोक
स्वः : स्वर्गलोक
त : परमात्मा अथवा ब्रह्म
सवितुः : ईश्वर अथवा सृष्टि कर्ता
वरेण्यम : पूजनीय
भर्गः: अज्ञान तथा पाप निवारक
देवस्य : ज्ञान स्वरुप भगवान का
धीमहि : हम ध्यान करते है
धियो : बुद्धि प्रज्ञा
योः : जो
नः : हमें
प्रचोदयात् : प्रकाशित करें।
अर्थ: : हम ईश्वर की महिमा का ध्यान करते हैं, जिसने इस संसार को उत्पन्न किया है, जो पूजनीय है, जो ज्ञान का भंडार है, जो पापों तथा अज्ञान की दूर करने वाला हैं- वह हमें प्रकाश दिखाए और हमें सत्य पथ पर ले जाए।
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