ईश्वर का सत्यस्वरूप जानना हो तो वह वेद, उपनिषद, सत्यार्थप्रकाश तथा ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका आदि ग्रन्थों से ही प्राप्त हो सकता है।
ईश्वर विषयक ज्ञान वेद के अधिकांश मन्त्रों में निहित है परन्तु गायत्री मन्त्र में बुद्धि की शुद्धता व पवित्रता तथा ईश्वर से इसे सन्मार्ग में प्रेरित करने की कामना होने से इस मन्त्र को महामन्त्र की संज्ञा दी गई है। इस मन्त्र का पाठ व जप दोनों ही करने से लाभ होता है। गायत्री मन्त्र में ईश्वर को भूः भुवः तथा स्वः कहा गया है। भूः का अर्थ प्राणों का भी प्राण व प्राणों से भी प्रिय है। भुवः का अर्थ दुःखों से सर्वथा रहित तथा उपासना करने वाले मनुष्य के दुःखों को दूर करने वाला तथा स्वः का अर्थ सुखस्वरूप व अपने भक्तों को सुख देने वाला है। 'तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि' में ईश्वर को समस्त जगत का उत्पत्तिकर्ता बताया गया है। मन्त्र में जगत के रचयिता ईश्वर का वरण करने वा उसे अपना इष्टदेव बनाने की प्रेरणा की गई है। वह ईश्वर ज्ञानस्वरूप एवं तेजस्वरूप है जिसको हम धारण करें वा करते हैं। वह ईश्वर हम भक्ति व उपासना करने वाले मनुष्यों की बुद्धि को शुभ कर्म करने व सन्मार्ग में चलने की प्रेरणा करे। इस प्रकार के भाव गायत्री मन्त्र में हैं। जब हम गायत्री मन्त्र का पाठ, इस मंत्र के अर्थों के पाठ व मनन सहित एवं ईश्वर के गुण, कर्म व स्वभाव का ध्यान करते हुए करते हैं तो इससे ईश्वर की दयादृष्टि व कृपा हम पर होती है और हम जीवन में प्रायः सभी प्रकार के दुःखों से बचे रहते हैं। ऐसा देखा गया है कि जिन विद्यार्थियों ने गायत्री मन्त्र का जप व पाठ किया उन्होंने अध्ययन व विद्या के क्षेत्र में अनेक उपलब्ध्यिों को प्राप्त किया। आर्यसमाज के उच्च कोटि विद्वान एवं संन्यासी महात्मा आनन्द स्वामी जी ने गायत्री मन्त्र पर एक पुस्तक ''महामन्त्र” लिखी है जिसे पढ़कर गायत्री मंत्र के महत्व को जाना व समझा जा सकता है। हमने दिसम्बर, 1975 में दिल्ली में आयोजित आर्यसमाज के स्थापना शताब्दी समारोह में रात्रि के समय महात्मा आनन्द स्वामी जी के दर्शन किये थे। यह हमारा सौभाग्य था। स्वामी जी ने वेद धर्म प्रचार सहित सामाजिक कार्यों में भी अग्रणीय भूमिका निभाई है। हमने विद्वानों से सुना है कि स्वामी जी की बुद्धि बचपन में तीव्र नहीं थी। संयोगवश उन्हें एक आर्य संन्यासी का सत्संग प्राप्त हुआ था जिन्होंने उन्हें गायत्री मन्त्र और उसका अर्थ लिखकर दिया था और उन्हें गायत्री मन्त्र के पाठ करने की प्रेरणा की थी। महात्मा आनन्द स्वामी जी द्वारा गायत्री मन्त्र का नियमपूर्वक नियमित पाठ करने से कुछ ही दिनों बाद उनकी बुद्धि व स्मृति में चमत्कार पाया गया था और व अपनी कक्षा में प्रथम स्थान पर आने लगे थे। देहरादून का वैदिक साधन आश्रम तपोवन उन्हीं की प्रेरणा से उनके प्रति श्रद्धा रखने वाले अमृतसर के एक व्यवसायी बावा गुरमुख सिंह ने स्थापित किया था। आज भी यह आश्रम साधको को साधना का अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराता है।
गायत्री मन्त्र का हिन्दी पद्यानुवाद आर्यसमाज में अनेक अवसरों पर गाया जाता है। यह पद्य हैं 'तुन्हें हमें उत्पन्न किया पालन कर रहा है तू, तुझसे ही पाते प्राण हम दुखियों के कष्ट हर्ता है तू। तेरा महान तेज है छाया हुआ सभी स्थान, सृष्टि की वस्तु वस्तु में तू हो रहा है विद्यमान।। तेरा ही धरते ध्यान हम पिता मांगते तेरी दया, ईश्वर हमारी बुद्धि को श्रेष्ठ मार्ग पर चला।।' यह पद्य इतना सरल है कि सभी मनुष्यों को इसका भाव समझ में आ जाता है। इस पद्य को गाने से भी हमारे हृदय में पवित्र भावनाओं का संचार होता है। हृदय की पवित्रता जीवन को बुराईयों से बचाने व यज्ञ आदि श्रेष्ठ कर्म के लिये आवश्यक है। जो लोग श्रेष्ठ कर्म नहीं करते वा बुरे कर्म करते हैं, उसका कारण उनका हृदय व उसमें उठने वाले साधारण व निन्दित विचार होते हैं। वेदाध्ययन, वेदेतर ऋषि ग्रन्थों का स्वाध्याय व मनन, भक्ति गीतों को गुनगुनाना व गाना, उच्च कोटि के विद्वानों के सत्संगों में उपस्थित होना, प्रतिदिन विधि विधान पूर्वक सन्ध्या व देवयज्ञ आदि पंचमहायज्ञों को करना आदि कार्यों को करने से मनुष्य की आत्मिक एवं सामाजिक उन्नति होती है। संसार के महापुरुषों के जीवनों पर दृष्टि डालें तो ज्ञात होता है कि यह सभी श्रेष्ठ पुस्तकों का अध्ययन करते थे और सज्जन व ज्ञानी पुरुषों की संगति करते थे। इसके साथ ही मनुष्य के मन का शुभ विचारों से युक्त होना व शुभ संकल्पों को धारण करना भी आवश्यक होता है। ऐसा करने से मनुष्य की आत्मिक एवं सामाजिक उन्नति होती है जिसके परिणाम से उनके यश में भी वृद्धि होती है। यदि इतिहास पर विचार करें तो महाभारत युद्ध के बाद देश में वेद ज्ञान का लोप हो गया था। ज्ञान के लोप से मनुष्य अपने कर्तव्यों को विस्मृत कर बैठे थे और अविद्या एवं अज्ञान सहित अन्धविश्वासों, मिथ्या परम्पराओं तथा सामाजिक जीवन में भी अनेक भ्रान्तियों से ग्रस्त हुये थे। इसी कारण से हमारे देश का पतन हुआ और हम विदेशी विधर्मियों के पराधीन हुए। ऋषि दयानन्द ने आकर वेदों का पुनरुद्धार किया और मनुष्य ईश्वर, आत्मा व संसार का यथार्थ ज्ञान देकर उसके कर्तव्यों को बताने के साथ विद्याध्ययन करने की प्रेरणा की। यही मनुष्य जीवन की उन्नति का आधार व साधन है। आज हमारा देश अनेक क्षेत्रों में विश्व के लोगों से भी अधिक उन्नति कर रहा है। इसका कारण देश में ऋषि दयानन्द की अधिकांश बातों को अपनाना है। ऋषि दयानन्द ने उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जो वेदों का प्रचार किया था वह किसी तरह से विश्व भर में फैला है। यूरोप के देशों के लोग सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में अन्य देशों के लोगों से अधिक तत्पर रहते हैं। इसी कारण यूरोप के देशों में भौतिक उन्नति सबसे अधिक हुई है। काश ऋषि दयानन्द कुछ वर्ष और जीये होते तो वह देश विदेश में वेदों का और अधिक प्रचार करते जिससे देश व विश्व की तस्वीर वर्तमान से कहीं अधिक भिन्न व अच्छी होती।
'तुन्हें हमे उत्पन्न किया' शब्दों में ईश्वर को सम्बोधित कर उसे सृष्टिकर्ता कहा गया है। इस सृष्टि में सभी प्राणियों का पालन भी ईश्वर ही कर रहा है। ईश्वर मनुष्य व प्राणियों की उत्पत्ति और पालन जीवों के पूर्व जन्मों के कर्मों के आधार पर करता है। हमारे दुःख अतीत में किये गये अशुभ कर्मों का परिणाम होते हैं। अतः हमें अशुभ व पाप कर्मों से बचना चाहिये और वेद विहित ईश्वरोपासना, स्वाध्याय तथा देवयज्ञ आदि सद्कर्मों को करना चाहिये। हमारा जीवन हमारे प्राणों पर आधारित है। यदि हमें कुछ सेकेण्ड व एक दो मिनट श्वांस के लिये वायु न मिले या प्राणों की प्रक्रिया में किसी प्रकार की रुकावट आ जाये तो हमारे जीवन का अन्त हो जाता है। 'तुझसे ही पाते प्राण हम' का भाव भी यही है कि हमारे शरीर में जो प्राण चल रहे हैं, उसका अधिष्ठाता व संचालन परमात्मा ही कर रहा है। इस कारण से हमें उसके प्रति कृतज्ञता का भाव रखना है। कृतज्ञ मनुष्य की सर्वत्र प्रशंसा देखी व सुनी जाती है। अतः सभी मनुष्यों को कृतज्ञ होना चाहिये। ईश्वर को दुःखहर्ता कहा गया है और वह वस्तुतः दुःखहर्ता है भी।
ईश्वर हमारी रक्षा करता है परन्तु वह हमें बताता व जताता नहीं कि उसने हमारी रक्षा की है। पंडित सत्यपाल पथिक जी ने हमें सिंगापुर की एक घटना सुनाई थी। पंडित जी उन दिनों सिंगापुर गये हुए थे। एक दिन वहां के अखबारों में खबर छपी कि एक युवती समुद्र में एक मोटर बोट चला रही थी। वह समुद्र तट से बहुत दूर निकल गई थी। अचानक वह वहां एक भंवर में फंस गई। उसकी नाव पलट गई और वह समुद्र में डूबने लगी। उसके आस पास कोई नहीं था जो उसकी रक्षा करता। उसे लगा कि उसकी मृत्यु का समय आ गया है। वह बच नहीं पायेगी। संयोगवश बहुत दूर एक समुद्री जहाज पर एक नाविक दूरबीन से समुद्र के चारों ओर के दृश्यों को निहार रहा था। उसकी दृष्टि उस युवती की नाव पर पड़ी। उसने पूरी स्थिति को देखा और स्थिति को समझकर अपने साथियों को बताया। वह एक अन्य समुद्री नाव लेकर जो भंवर में भी उसके यात्रियों को सुरक्षित रख सकती थी, उस युवती के पास पहुंचें और डूब रही उस युवती को बचा लिया। वह युवती बेहोश हो गई थी। बाद में उसे होश आ गया। उसने अपनी आप बीती पत्रकारों को भी बताई। यह विस्तृत समाचार अगले दिन सिंगापुर के समाचार पत्रों में प्रकाशित हुंआ था। पंडित सत्यपाल पथिक जी ने इस समाचार को पढ़ा तो उनके मन में मन्थन आरम्भ हो गया। उन्होंने उस घटना पर आधारित एक गीत लिखा जिसके बोल हैं 'डूबतो को बचा लेने वाले मेरी नैया है तेरे हवाले।। लाख अपनो को मैंने पुकारा सबके सब कर गये हैं किनारा। कोई अब और देता नहीं है दिखाई अब तो तेरा ही है बस सहारा।। कौन हमको भंवर से निकाले मेरी नैया है तेरे हवाले।।' पंडित जी ने हमें यह घटना बहुत ही उत्साह में भरकर से सुनाई थी। हमने उसी दिन इस पर एक लिखा कर फेसबुक, व्हटसप तथा पत्र पत्रिकाओं में भेजा था। जब से हमें इस गीत की पृष्ठ भूमि पता लगी, हमें इस गीत के शब्दों का प्रभाव पूर्व की तुलना में कहीं अधिक प्रतीत होने लगा। स्वामी रामदेव जी, श्री सुधांसु महाराज सहित अनेक कथाकार व गीतकार एवं गायक इस गीत को सुनाते हैं। जनता इस गीत को बहुत पसन्द करती है परन्तु कोई नहीं जानता कि इसका लेखक कौन है और यह गीत उसने किस घटना से प्रेरणा पाकर लिखा है।
गायत्री मन्त्र के पद्यानुवाद के अन्य पद भी बहत सरल व सुबोध हैं पाठक सभी शब्दों के अर्थ व पूरे पद्य के भाव को आसानी से समझ सकते हैं। हमारे मन में कुछ देर पहले अनायास इस पर ध्यान गया था और हमने आज के अपने लेख में इसकी चर्चा करने का मन बनाया। गायत्री मन्त्र का अर्थ सहित जप हम सबको करना चाहिये। हमारे पूर्वज ऋषि एवं सभी विद्वान आदि इसका जप व मनन करते थे और उन्होंने स्वस्थ एवं लम्बा यशस्वी जीवन प्राप्त किया था। जो भी हो मनुष्य अपने आचार व विचारों को शुद्ध व पवित्र बनाकर यदि इस गायत्री मन्त्र से ईश्वर की उपासना करेगा तो उसको इससे अवश्य महनीय लाभ होगा। इसी के साथ इस चर्चा को विराम देते हैं।
-मनमोहन कुमार आर्य
0 टिप्पणियाँ