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मूल लक्ष्य एवं सिद्धांतों से भटकती राजनीति एवं राजनैतिक अखाड़े के फुटबॉल बने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर विशेष

लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीति इस कदर अपने मूल लक्ष्य एवं सिद्धांत से भटक गई है कि वह लोकतंत्र के संस्थापक अपने राष्ट्रपिता को भी राजनीति से दूर नहीं रख पा रही है और वह भी राजनैतिक अखाड़े की फुटबाल बन गये हैं।आज हम बैरिस्टर की जिन्दगी को छोड़कर भारतमाता की आजादी के लिए संयासी महात्मा एक धोती एक लगोंटी में जीवन बसर कर "न मारेगें न मानेगें बहादुर कष्ट झेलेगें" जैसे अहिंसावादी नारे को साकार कर जन आंदोलन की अगुवाई कर देश की आजादी में अहम अहिंसात्मक भूमिका निभाने वाले बापू एवं गांधी के नाम से विश्वगुरु बने मोहनदास करमचन्द गांधी की चर्चा कर रहे हैं।


शांति सदभावना स्वच्छता एवं अहिंसा परमोधर्मः का संदेश दुनिया को देने वाले बापू इधर पिछले कुछ दिनों से राजनीति में चर्चा का विषय बने हुए हैं और उन्हें लेकर तरह तरह की टीका टिप्पणी की जाने लगी हैं।सत्ता एवं विपक्ष दोनों इस समय महात्मा गांधी के प्रति अपनापन प्रदर्शित करने में मश्गूल हैं और दोनों खुद को उनका परम अनुयायी एवं उनके पदचिन्हों पर चलने का दावा कर रहा  है।विपक्षी राजनैतिक दल सत्ता पक्ष को जहाँ गांधी विरोधी एवं उनके हत्यारे गोडसे का पक्षधर बता रही है तो सत्तापक्ष बापू के सपनों का नया भारत बनाने और उनके स्वच्छता धर्मनिरपेक्षता सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास के नारे का साकार करने का दावा कर रहा है।जहाँ पूरा राष्ट्र उन्हें राष्ट्रपिता महात्मा आजादी का अहिंसक महानायक युगपुरुष मान रहा है वहीं कुछ लोग उन्हें कलंक एवं देश के बंटवारे का जिम्मेदार ठहराते हुए उनके ऊपर कीचड़ उछाल कर उनके हत्यारे को सही बता रहे हैं।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस तरह की प्रतिक्रिया करने वालों के प्रति अपनी नाराजगी जताते हुए इस गलती को दिल से कभी माफ न करने का ऐलान कर चुके हैं।इतना ही नहीं बल्कि  अभी दो दिन पहले राष्ट्रपिता बापू की डेढ़ सौवीं जयंती पर जहाँ वह उनके साबरमती आश्रम में जाकर स्वच्छता अभियान के बाद पर्यावरण सुधार के लिए देश को पालीथीन मुक्त बनाने की घोषणा कर चुके हैं तो उत्तर प्रदेश के  महत्मा योगी मुख्यमंत्री उनकी जयंती पर छत्तीस घंटे का विशेष सत्र चलाकर प्रदेश की खुशहाली के लिये विधानसभा में विशेष चर्चा कर चुके हैं।दूसरी तरफ विपक्ष उनकी जयंती पर उनके प्रति श्रद्धान्वत होते हुये सत्ता पक्ष को गांधी विरोधी गोडसे एवं हिंसा समर्थन बताकर अपना विरोध ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश में बुलाये गये विशेष सत्र का बहिष्कार कर चुका है।सत्ता एवं विपक्ष दोनों बापू को राजनैतिक स्वार्थपूर्ति का माध्यम बनाकर फुटबाल की तरह उनका उपयोग कर रहे हैं तो गांधी जयंती पर सत्ता समर्थन माना जाने वाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी राजनैतिक हथियार बन गया है और संघ संचालन ने बता दिया कि बापू अगर होते तो वह भी संघ में होते।यह पहला मौका है जबकि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम पर देश की राजनैतिक धुरी राष्ट्रपित के इर्दगिर्द घूमकर अपने अनिश्चित राजनैतिक भविष्य का निर्धारण करने का प्रयास कर रही है। जिस तरह महात्मा गांधी के नाम को लेकर छीटाकशी छीछालेदर एवं राजनैतिक रोटियां सेंकी जा रही हैं अगर बापू जिंदा होते तो शायद भूख हड़ताल पर बैठकर सत्याग्रह शुरू कर दिये होते।आज भले ही देश के बंटवारे के लिए बापू पर दोषारोपण किया जा रहा हो लेकिन उनकी स्थिति उस समय -"जहाँ चार कसाई वहां कबीरदास कै कां बिसाई" वाली थी।यही कारण था कि उनकी इच्छा के विपरीत सत्ता लोलुपता में देश के दो टुकड़े हो गये और नापाक पाकिस्तान की पैदाइश खून खराबे के साथ हो गई।कहते हैं कि गलती मनुष्य का स्वाभाव होता है और आजादी एवं बटवारे के समय हुयी तथाकथित चूक भूल एवं गलतियों से छः दशक बाद राजनैतिक स्वार्थपूर्ति के लिये कुरेदना उचित नहीं कहा जा सकता है। 


भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी


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