सामाजिक क्रान्ति के पुरोधा, आत्म सम्मान आन्दोलन के प्रवर्तक, त्याग की प्रतिमूर्ति, अज्ञान, अन्धविश्वास, पाखण्ड के घोर विरोधी, प्रगतिशील बुद्धिवादी विचारक ई0वी0 रामा सामी नायकर का जन्म घोर रुढ़िवादी परिवार में इरोड नगर तमिलनाडु में हुआ। इनके पिता बेंकटप्पा नायकर तथा माता का नाम चिन्ता बाई अम्मल था।
प्रखर स्वभाव के कारण, जब 19 वर्ष की अवस्था में आप का विवाह 13 वर्ष की नगाम्भई से हुआ तो उन्होंने गले में आभूषण पहनने का विरोध किया तथा हंसली पहनने को गले की फांसी बताया। वे समाज के उपेक्षित, प्रताड़ित, अछूत कहे जाने वाले मित्रों को घर पर आमन्त्रित कर भोजन करवाते तथा घर के लोगों के विरोध करने पर कहा करते कि जाति-पांत, अछूत, ऊँच-नीच किसी भगवान व शासक ने नहीं बल्कि अपना स्वार्थ सिद्ध करने तथा अपने को उच्च सिद्ध करने के लिए चालाक लोगों ने बनाया है। उन्होंने ही समाज में अन्धविश्वास, भ्रम, भय, अज्ञान व पाखण्ड पैदा कर अपनी श्रेष्ठता बनाये रखने का हमेशा षडयंत्र किया। आज भी हम उपरोक्त कुरीतियों के शिकार हैं। हमें इस व्यवस्था को ध्वस्त करने के लिए अनवरत प्रयास करना चाहिए। पेरियार रामा सामी की स्कूली शिक्षा मात्र प्राइमरी ही थी लेकिन उन्होंने घर पर विस्तार से सभी विषयों का अध्ययन करते हुए दक्षिण भारत से उत्तर भारत तक भ्रमण किया, जहाँ भी गये देश की दुर्दशा, अंधविशवास, अज्ञान, शोषण, अन्याय व महिलाओं की मानसिक गुलामी को नजदीक से देखा तथा उसी समय आपने इन सामाजिक बुराइयों से लड़ने का प्रण कर लिया। वे नगर पालिका के चेयरमैन व आर्नररी मजिस्ट्रेट भी रहे लेकिन वह पद उन्हें आकर्षित नहीं कर सका।
पेरियार, ई0वी0 रामा सामी के जीवन पर भगवान बुद्ध के द्वारा किये गये मानवता के कल्याण का प्रभाव भी था, इसलिए इन्होने घर-बार छोड़ समाज को जगाने तथा उनके कष्ट दूर करने में पूरी ताकत से संघर्ष में लग गये। उनका मानना था मानव के दुःख का कारण अज्ञानता है। उनका दृढ मत है कि जनता के अज्ञान, अंधविशवास की नींव पर स्वर्ग, नरक, पुनर्जन्म, भाग्य व भगवान की कल्पना का सहारा लेकर उन्हें मानसिक गुलामी में फंसाया गया है। भगवान बुद्ध की तरह ही पेरियार जी ईश्वर, आत्मा को असत्य मानते हैं। वह ऐसा तर्कवादी समाज चाहते थे जिसकी सोच वैज्ञानिक हो। वे वर्ण व्यवस्था, जाति-पांत, ऊँच-नीच व अस्पृश्यता के घोर विरोधी तथा समता मूलक समाज बनाने के पक्षधर थे। पेरियार जी अज्ञानता को दूर करने का मार्ग शिक्षा, मन की निर्मलता को माना तथा किसी अच्छे कार्य को करने के लिए दृढ निश्चय पर बल दिया। पेरियार का अर्थ पवित्र आत्मा है, जो उनके कार्य के अनुरूप ही है।
वे मद्यपान व नशा मुक्त समाज चाहते थे इसलिए उन्होंने अपने बाग के एक हजार ताड़ी के पेड़ कटवा दिये, सूदखोर जो जनता का शोषण करते थे उनके भी विरोधी थे खुद अपने 50,000 रुपये (पचास हजार रुपये) के प्रोनोट जला दिये थे। सनातन धर्म के पाखण्ड, अन्धविश्वास, स्वर्ग, नरक, देवता, भगवान का जब वह विरोध कर रहे थे कि उनसे कुछ महानुभावों ने पूछा कि आप हिन्दू धर्म को छोड़कर कोई और धर्म में डा0 अम्बेडकर की तरह जाना चाहते है तो उन्होंने उत्तर दिया कि मै हिन्दू धर्म में रहते हुए इसके अन्दर व्याप्त मिथ्या सिद्धान्त, झूठ और अन्धविश्वास को जड़ से खत्म करने का प्रयत्न करूँगा।
पेरियार ई0वी0 रामा सामी पर बौद्ध धर्म का प्रभाव था उसी के अनुरूप उन्होंने देश, समाज को सन्देश दिया । उन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुए अपनी बात कहकर 24 दिसम्बर 1973 को शरीर त्याग दिया। एक रिपोर्ट में उन्हें आज के युग का पैगम्बर, लोकराज का सुकरात, समाज सुधार आन्दोलन का जनक, अज्ञानता, अन्धविश्वास, रूढ़िवाद, जाति प्रथा का दुश्मन कहा है। हम आशा करते है कि यदि ई0वी0 रामा सामी पेरियार नायकर के वैज्ञानिक तर्क के आधार पर एक कदम भी हम चल सकेगे तो देश, समाज का बहुत ही कल्याण होगा, समता और समानता, न्याय व बंधुत्व सुदृढ़ होगा। सामाजिक समता, राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, अध्यात्मिक क्रान्ति व नशा मुक्ति के लिए उनके द्वारा किए गए प्रयास तथा पेरियार ई0वी0 रामा सामी नायकर के सन्देश -
1. जिस धर्म ने तुम्हें नीच और अछूत बनाया उसे लात मार दो, थूक दो, उस विचार धारा पर, उसके मानने वालो का बहिष्कार करो, लोकतंत्र में उन्हें समर्थन न दो। 2. उन्होंने कहा कि भगवान की कल्पना धूर्त, चालाक लोगों के शैतानी दिमाग का सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक षडयंत्र है। 3. जिस देश में जाति प्रथा, छुआ-छूत व्याप्त है उसे जल प्रलय या अग्नि में नष्ट हो जाना चाहिए। 4. उन लोगो को कैसे बुद्धिमान कहा जाय, जिन्होंने अपना कीमती मत देकर ऐसे लोगो को निर्वाचित किया, जो अपने हित के लिए उन्ही का शोषण करते है। 5-देश को आजादी तभी मिलना मानना चाहिए जब ग्रामीण, किसान, मजदूर, शिल्पकार लोग जाति, धर्म, अन्धविश्वास और पाखण्ड से छुटकारा प्राप्त कर सम्मान जनक जीवन जीयेगे। 6-विदेशी अपने देश को विकास की उचाईयों पर पहुंचाकर दूसरे देशो का सहयोग कर रहे तथा अन्य ग्रहों पर सन्देश भेज रहे है। क्या हम बुद्धिमान है, जो श्राद्धों में पूर्वजों को खीर भेज रहे है, क्या खीर, पूडी का भोग उनको प्राप्त होगा। 7-हमने सभी कुओं को, सारे लोगो के प्रयोग के लिए खोला, होटलों और रेलवे के रेस्टोरेंट पर जातिवादी भेदभाव के विरुद्ध आन्दोलन किये, हमने ऊँच-नीच समाप्त करने के लिए आन्दोलन करते हुए जेल गये, यातनाएं झेली, हम कभी हताश नहीं हुए न हार मानी, हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहे, हमारा एक मात्र लक्ष्य सभ्य मनुष्य की तरह जीना है।
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