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85,000 से अधिक युवाओं को तैयार कर आजाद हिंद फौज का गठन किया सुभाष चंद्र बोस ने :रामदुलार यादव

 नेता जी, सुभाष चन्द्र बोस के जन्म दिन के अवसर पर विशेष 
      “तुम मुझे खून दोगे, हम तुम्हे आजादी देंगें” के नारे के साथ नौजवानों में नई उर्जा का संचार करने वाले, दूर दृष्टि, पक्का इरादा, कर्तव्य परायण व विलक्षण प्रतिभा के धनी नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी सन 1897 को एक प्रतिष्ठित बंगाली परिवार कटक नगर के उडीसा प्रान्त में हुआ था| इनके पिता ख्याति प्राप्त वकील व माता धार्मिक विचारों की महिला थी, बालक सुभाष पर माता-पिता के गुणों का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था|


उनकी प्रारम्भिक शिक्षा पी0ई0 मिशनरी स्कूल में हुई लेकिन वहां बाइबिल, ब्रिटेन का इतिहास, भूगोल पढ़ने में उनकी रूचि न देखकर इन्हें 1909 में रावेंशा कालेजियम स्कूल में प्रवेश दिलवाया गया| वहां पढाई करने के बाद आपका दाखिला कलकत्ता के रिनाउन्ड स्काटिस चर्च कॉलेज में हुआ, जहाँ 1918 में बी0ए0 की डिग्री प्राप्त की तथा विदेश जाकर पढाई में कठिन परिश्रम करके 1920 में आपने न केवल आई0सी0एस0 की परीक्षा पास की बल्कि पूरे परीक्षा वर्ग में चौथा स्थान प्राप्त किया|
    सुभाष चन्द्र बोस रामकृष्ण परमहंस व स्वामी विवेकानन्द के विचार व दर्शन से प्रभावित रहे| उनमे समाज, देश सेवा के अंकुर छात्र जीवन से ही विद्यमान रहे तथा अध्यात्म में भी उनकी गहरी रूचि थी| छात्र-जीवन में ही उत्तर भारत व पूर्वोत्तर भारत के धार्मिक स्थलों पर अध्यात्मिक ज्ञानार्जन के लिए जाते रहे तथा यथा सम्भव दीन, हीन की मदद करते रहे, लेकिन उनका मानना था कि अन्तिम लक्ष्य तो केवल थोड़ी बहुत समाज सेवा नहीं बल्कि राष्ट्र को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराकर, विदेशी शोषण विहीन समाज बनाकर नागरिकों को समान रूप से आर्थिक, राजनैतिक बराबरी दिलाकर, समानता, न्याय व भाईचारा कायम करना है| इसलिए उन्होंने 1921 में आई0सी0एस0 पद से त्याग पत्र दे दिया| उनके मित्र व शुभचिंतक इस तरह से इतने बड़े पद से त्याग पत्र देने से उनसे नाराज भी हुए लेकिन वे नहीं माने तथा कहा कि “एक ओर मेरे देशवासी गुलामी, शोषण, अन्याय सहकर विदेशी शासन की क्रूरता का शिकार हो रहे है, दूसरी ओर मै आई0सी0एस0 बनकर ठाट का जीवन यापन करूँ, उन्ही विदेशी शासकों के आदेश का पालन कर भारतीयों पर जुल्म अत्याचार करूँ, इतिहास व मेरी अंतरात्मा कभी माफ़ नहीं करेगी”|
   सुभाष चन्द्र बोस सन 1922 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से दर्शन शास्त्र की डिग्री लेकर भारत लौटकर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की| सुभाष चन्द्र बोस उस समय महात्मा गाँधी द्वारा चलाये जा रहे असहयोग आन्दोलन में कार्य करने के लिए स्वयं उनसे मिले तथा गाँधी जी को अपना पूरा समय व पूर्ण मनोयोग से कार्य करने का वचन दिया| कुछ समय बाद गाँधी जी के आग्रह पर आप कलकत्ता वापस चले गये वहां स्वतंत्रता सेनानी माननीय चितरंजन दास जी जो बंगाल “स्वराज पार्टी” के संस्थापक तथा भारत को आजाद कराने के लिए संघर्षरत थे उनके सानिध्य में कार्य किया| सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में विदेशी सत्ता के विरोध में आन्दोलन होते रहे तथा वे अनेकों बार जेल गये| जेल से छूटते ही वे राजनैतिक, सामाजिक, शैक्षणिक व धार्मिक कार्यों में भाग लेकर तथा अंग्रेजी साम्राज्य के विरोध में संघर्ष में इतने चर्चित हो गये थे कि सन 1930 में कलकत्ता की जनता ने उन्हें नगर निगम में मेयर निर्वाचित कर दिया|  मेयर निर्वाचित होकर नेता जी ने जनता की भलाई के लिए अभूतपूर्व कार्य कराया तथा यह नियम बनवाने में कामयाब रहे कि कलकत्ता नगर निगम किसी अंग्रेज अधिकारी का स्वागत नहीं करेगा| भारतीय नेता के स्वागत के लिए कानून बनवाया, सडकों, बग्रीचों के जो अंग्रेज अधिकारियों के नाम थे उसे तत्काल प्रभाव से हटवा दिया तथा भारतीय नेताओं के नाम से पार्कों, सडकों व स्कूलों के नामकरण की शुरुआत की| रात-दिन काम करने से नेता जी की तबियत ज्यादा ख़राब हो गयी, इलाज के लिए उन्हें विदेश जाना पड़ा| वहां पर भी आप चुप नहीं बैठे सन 1934 में आप इटली और जर्मनी के नेता मुसोलनी व हिटलर से मिले तथा भारत को आजाद कराने में सहयोग की अपील की| यूरोप में जो भारत के लोग रह रहे थे नेता जी छोटे-छोटे संगठन बना जोशीले भाषण देकर देश को स्वतंत्र कराने के लिए कार्यकर्ताओं को तैयार किया तथा यूरोप के नेताओं की सहानुभूति भी अर्जित की|
    
   1939 में गाँधी जी के विरोध के बाद भी सुभाष चन्द्र बोस के सामने गाँधी जी के उम्मीदवार पट्टाभि सीता रमैया थे, उनकी हार पर गाँधी जी ने स्वयं कहा कि सीता रमैया की हार गाँधी की हार है| इसी से सुभाष चन्द्र बोस की लोक प्रियता प्रमाणित हो जाती है| 


यह अधिवेशन नेता जी के जीवन में नये संघर्ष को जन्म दिया क्योंकि गाँधी जी के समर्थक सुभाष चन्द्र बोस को कार्य करने में सहयोग नहीं दे रहे थे, इसलिए नेता जी अपने दायित्यों का निर्वहन नहीं कर पा रहे थे, उन्हें कांग्रेस के अध्यक्ष पद से त्याग पत्र देना पड़ा|
 लेकिन सुभाष चन्द्र  बोस हार मानने वाले नहीं थे उन्होंने बामपंथी लोगों को संगठित कर नई पार्टी “फॉरवर्ड ब्लाक बनाने की योजना तैयार की” जब कांग्रेस पार्टी के नेताओं को पता चला कि सुभाष चन्द्र बोस नई पार्टी बना रहे है, उन्हें 6 वर्ष के लिए कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया| बिना किसी प्रक्रिया के नेता जी नौजवानों, किसानों, मजदूरों व बामपंथी विचारधारा के लोगों को पूरे देश में भ्रमण कर संगठित किया तथा आजादी के संघर्ष के लिए तैयार करने में लगे रहे|
      नेता जी ने अहिंसा के रास्ते को त्याग कर क्रान्तिकारी और आक्रामक रास्ता चुना| द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ गया था नेता जी ने यूरोप जाने का फैसला किया उन्होंने सोचा कि एक ओर अमेरिका व ब्रिटेन है दूसरी ओर इटली व जापान है| हम जर्मनी और जापान की सहायता से ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाकर उन्हें भारत छोड़ने पर मजबूर करेंगें| वे 16 जनवरी 1941 को पठान का वेश बनाकर घर से निकल गये, पेशावर पहुंचकर मूक, बधिर मोहम्मद जियाउद्दीन बनकर जर्मनी पहुंचे| जर्मनी दूतावास के लोगों से मिलकर आजाद हिन्द सरकार व आजाद हिन्द रेडियो स्टेशन का गठन किया, प्रसारण करने के लिए जर्मनी सरकार सहमत हो गई| यूरोप में आप आस्ट्रेलियन महिला के साथ रहे तथा ईमीलाई से शादी की| सन 1942 में बेटी अनीता का जन्म हुआ| नेता जी इसके बाद भी नौजवानों को संगठित करते रहे तथा 85 हजार से अधिक युवाओं को तैयार कर आजाद हिन्द फ़ौज का गठन किया| उनका मानना था कि भारत के नजदीक पहुंचकर ब्रिटिश सेना पर आक्रमण करेंगें, इसलिए जापान सरकार ने अंडमान निकोबार द्वीप नेता जी को सौंप दिये| आजाद हिन्द फ़ौज व जापानी सेना मिलकर भारत की सीमा पर युद्ध करने लगी| इसी बीच अमेरिका ने हिरोशिमा व नागासाकी पर बम्ब बरसा दिया अपार क्षति हुई इन देशों ने अपनी हार मान ली थी| सुभाष चन्द्र बोस का भारत आजादी का सपना टूट गया| सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फ़ौज भंग कर दी तथा सन 1945 में बमबर्षक विमान द्वारा टोकियो के लिए प्रस्थान किया लेकिन बीच में ही वायुयान दुर्घटनाग्रस्त हो गया| भयंकर विस्फोट के कारण आग लगने से 4 लोग अस्पताल में काल कल्वित हो गये, नेता जी उनमे एक थे जो भारत को आजादी दिलाने में शहीद हुए| नेता जी की मृत्यु भी रहस्यमयी है| भारत सरकार ने अनेकों जाँच दल बनाया लेकिन परिणाम शून्य ही रहा|
   नेता जी चाहे शरीर से हमारे साथ नहीं हैं लेकिन उनकी अध्यात्मिक सोच जबलपुर जेल से अपने मित्र को  लिखे पत्र में परिलक्षित होती है उन्होंने कहा कि मेरी राय में जीवन का कोई मूल्य उसी हद तक है जिस हद तक किसी विचार को आदर्श मानकर उसके लिए जिया जाय| लेकिन किसी एक लक्ष्य के लिए सम्पूर्ण जीवन को अर्पित कर देना आसान नहीं है अनवरत आजीवन साधना की आवश्यकता है, आत्म त्याग के लिए उत्साह, निष्ठा और लगन की आवश्यकता होती है हो सकता है इन तीनों के होने पर भी सत्य का साक्षात्कार न हो और सत्यानुभूति के बिना मनुष्य जीवन भटकाव में पड सकता है, सत्यानुभूति एक दिन में नहीं होती इसकी साधना लगातार प्रयत्न और लम्बे समय की अपेक्षा करती है| “हमें जीवन भर दोहरी साधना करनी होगी सत्य के साक्षात्कार करने की साधना तथा उसके अनुरूप जीवन जीने की साधना” नेता जी का मानना था कि सत्य के अनुसार जीवन जी सकने के लिए मनुष्य में असाधारण निर्भीकता और साहस होना चाहिए और कष्ट सहन तथा त्याग की असीम क्षमता होनी चाहिए| वर्तमान पीढ़ी के लिए यह सन्देश है| देश, समाज के लिए किये गये बलिदान, संगठन बनाने की उर्जा, रात-दिन कार्य करने की लगन, नौजवानों में प्रेरणा का कार्य करेगी| उनके द्वारा लिखित पुस्तक “दी इन्डियन पिलिग्रीन्स (भारतीय तीर्थ यात्री) व द इन्डियन स्ट्रिगल” देश वासियों का मार्ग दर्शन करते रहेंगें|
                                                                                      लेखक:
                                                                                   रामदुलार यादव
                                                                                सदस्य उ0प्र0 कार्यकारिणी 
                                                                                    समाजवादी पार्टी


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