इंग्राहम इंस्टीट्यूट गर्ल्स डिग्री काॅलेज में किशोरावस्था एक अवलोकन विषय पर टाॅक का आयोजन संकल्प स्वास्थ्य जागरूकता अभियान द्वारा किया गया कार्यक्रम का आयोजन
गाजियाबाद: संकल्प स्वास्थ्य जागरूकता अभियान द्वारा इंग्राहम इंस्टीट्यूट ऑफ गर्ल्स डिग्री काॅलेज में ‘किशोरावस्था एक अवलोकन‘ विषय पर टाॅक का आयोजन किया गया। जिसमें मैक्स अस्पताल वैशाली की चिकित्सकों ने छात्राओं को किशोरावस्था के बारे में जागरूक किया।
मुख्य अतिथि रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक 3012 के डिस्ट्रिक गवर्नर 2020-21 रोटेरियन अशोक अग्रवाल, संकल्प स्वास्थ्य जागरूकता अभियान के चेयर डा.धीरज भार्गव, काॅलेज की प्रिंसिपल सरिता शर्मा ने गणेश वंदना के साथ कार्यक्रम की शुरूआत की।
मैक्स अस्पताल वैशाली की मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार की वरिष्ठ सलाहकार डा.संजीता कुंडू ने छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि किशोरावस्था एक ऐसी अवस्था है जो बच्चों के जीवन में बदलाव लाती है। यह वही अवस्था है जिसमें हार्मोन्स के कारण शारीरिक परिवर्तन से किशोर और किशोरी के बीच अंतर दिखता है। ऐसे में बच्चों में स्वयं निर्णय लेने की इच्छा होती है किंतु उचित अनुचित के बीच भेद करते हुए सही निर्णय लेने की क्षमता 25 वर्ष की उम्र में आती है, जब दिमाग पूर्ण रूप से विकसित होता है। उन्हें अपने लक्ष्य का ध्यान रखते हुए भटकाव से दूर रहना चाहिए। निजी बातें अभिभावकों से साझा करनी चाहिए चाहे वो लव अफेयर से संबंधित हो या किसी अन्य कार्य से। अभिभावकों से सलाह-मशविरा जरूर करें। अभिभावक ही आपको सही सलाह देंगे। क्योंकि किशोरावस्था एक ऐसा उम्र है जिसमें छात्र भटककर किधर भी जा सकता है। अभिभावकों को भी ऐसी अवस्था में अपने बच्चों को अधिक समय देने के साथ ही उनके साथियों और मोबाइल, कंप्यूटर आदि पर भी ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि आपके पास 24 घंटे होते है उनमें से आप 7 घंटे काॅलेज व 8 घंटे सोने में निकल जाते है। इसके बाद आपके पास मात्र 9 घंटे बचते है इनमें से चार घंटे मोबाइल, टीवी, कंप्यूटर, सोशल मीडिया में निकल जाते है। एक घंटा नहाने-धोने में चले जाते है और जो समय बचता है उसमें अपने बेस्ट फ्रैंड बनाने, मैं कैसी लग रही हूं, मैं दूसरे से सुंदर कैसे लगू आदि इन कामों में निकल जाते है। हमें अपने समय का सदुपयोग करना है। सोशल मीडिया समय नष्ट करने के साथ दिमाग भी खराब करते है। हमें एक टाइम शेडयूल बनाना होगा। तभी हमारी लाइफ अच्छी चलेगी।
डा. अंजुल सेठ ने भी छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि किशोरावस्था में किशोर या किशोरी न तो बच्चा रह जाता है और न ही वह वयस्क होता है। अभिभावक भी अपनी सुविधानुसार कभी उसे बच्चे की तरह, तो कभी बड़ों की तरह ट्रीट करते हैं, इस वजह से वह काफी कंफ्यूज्ड रहते हैं, उसके मन में कई तरह की जिज्ञासाएं होती हैं, जिसका जबाव पाने के लिए वे लालयित रहते हैं, ऐसे में उनसे गलतियां होने की संभावना भी काफी अधिक होती है। उन पर सबसे ज्यादा प्रभाव उनके पीयर ग्रुप यानी कि दोस्तों का होता है, उम्र की यह अवस्था कुछ ऐसी होती है कि किशोरों को दुनिया का हर इंसान सही नजर आता है, सिवाय अपने पैरेंट्स के। ऐसी स्थिति में उन्हें सही राह दिखाने के लिए अभिभावकों को बेहद संयम और सूझ बरतने की जरूरत होती है।
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