दिल्ली: किया है ना "योगी" जी , बिल्कुल किया है , बस इस उपकार को महसूस करने के लिए दिल चाहिए , इस उपकार को समझने के लिए दिमाग चाहिए।
पाकिस्तान ना जाने वालों के इस देश पर उपकार तो इतने हैं कि उसे उतारने में भगवा गिरोह की सात पुश्तें भी कम पड़ जाएँगी।
सोचो कि सब यदि पाकिस्तान चले गये होते तो "ब्रिगेडियर उस्मान" भारत नहीं पाकिस्तान की ओर से लड़ रहे होते और फिर अपनी जान देकर पाकिस्तान की फौज को "नौशेरा" से पीछे कर देने वाला नौशेरा का शेर "ब्रिगेडियर उस्मान" पाकिस्तान की तरफ से सेना लेकर श्रीनगर पहुँच जाता तो क्या होता ? पर ऐसा नहीं हुआ , और तब भी नहीं हुआ जब पाकिस्तान ने ब्रिगेडियर उस्मान को अपने यहाँ बुलाया और पाकिस्तानी सेना का सर्वोच्च पद देने का आफर दिया। पर ब्रिगेडियर उस्मान ने अपने भारत के लिए अपनी जान की शहादत देकर काश्मीर को बचाया और देश पर उपकार किया।
सब पाकिस्तान चले जाते "छोटा फंटा" जी तो वीर अब्दुल हमीद भी पाकिस्तान चले गये होते और पाकिस्तान की तरफ़ से भारत के विरूद्ध लड़ रहे होते और फ़िर पंजाब का क्या होता ? जो पंजाब पाकिस्तान सेना के लगभग कब्ज़े में आ गया था पर सामने अपने देश भारत का एक सपूत खेमकरण सैक्टर के आसल उत्ताड़ में एक साधारण सी तोप लेकर पूरी पाकिस्तानी सेना के सामने खड़ा हो गया , एक एक करके पाकिस्तान के 15 टैंक तबाह किए और अपनी शहादत देकर अपने पंजाब को बचाया और पाकिस्तान की 1965 के युद्ध में हार का कारण बना। यह भी देश पर पाकिस्तान ना जाने वाले का उपकार है।
सब पाकिस्तान चले जाते तो हैदराबाद के निज़ाम उस्मान भी अपनी सारी दौलत लेकर पाकिस्तान चले जाते "छोटा फंटा" जी , तो चीन से 1967 में लड़ने के लिए भारत को 5 टन सोना कौन देता ? यह वही निज़ाम उस्मान हैं कि जब देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री देशवासियों से चीन से युद्ध लड़ने के लिए भीख माँग रहे थे तब निज़ाम उस्मान ने इस देश को चीन से लड़ने के लिए 5 टन सोना दान कर दिया था।
पाकिस्तान ना जाने वालों ने इस देश पर कितने उपकार किए हैं ? यह कितने गिनाऊँ ?
एपीजे कलाम का कारनामा गिनाऊँ कि जिन मिसाईलों पर देश इतराता है ना वह एपीजे के पाकिस्तान चले जाने पर पाकिस्तान की होंतीं और उनके लिए गरज रहीं होतीं , बिसमिल्लाह खान की जिन शहनाई पर देश इतराता है वह पाकिस्तान में बजीं होतीं।
पाकिस्तान ना जाकर एहसान नहीं किया ? किया है एहसान भारत-पाक युद्ध (सन 71) में शहीद हुए वीर-चक्र मेजर महमूद हसन खान और कारगिल में शहीद हुए जीडीआर रमजान खान ने अपने देश के लिए शहीद होकर।
पाकिस्तान ना जाकर देश पर कैसे उपकार किया है "योगी" जी , यह देखना है तो झुंझुनूं जिले के गांव धनूरी चले जाईए जहाँ गाँव के हर घर से देश के लिए शहीद होने वाला एक नाम मिलेगा और यह सब पाकिस्तान नहीं जाने वाले हैं।
इसी गाँव में अपने देश की तरफ़ से लड़ते हुए प्रथम विश्व युद्ध में धकरीम बख्स खान, करीम खान, अजीमुद्दीन खान और द्वितीय विश्व युद्ध में ताज मोहम्मद खान, इमाम अली खान शहीद हुए थेे।
देश को जब जब शहादत की ज़रूरत पड़ी है , पाकिस्तान ना जाने वालों ने अपनी शहादत दी है , यह इस मुल्क पर उनका किया उपकार ही है जो अंग्रेज़ों के तलवे चाटने वाले , उनके मुखबिर , उनके गवाह और उनके वादामाफ "वीर" देश के गद्दार नहीं समझेंगे।
*कितने उपकार गिनाऊँ योगी जी?*
गिनाते गिनाते आपकी सरकार जाने का समय आ जाएगा पर उपकार खत्म नहीं होगा। अभी यह सोचो कि बिना काश्मीर , बिना पंजाब , बिना मिसाईल के यह देश कैसा होता।
फिल्म तबला सरंगी की बात करना मेरे उसूल के खिलाफ है वरना अगर यह सब भी लिख दूँ तो आप खुद समझ सकते है ।
यद्धपि देश पर शहीद होकर भी कोई उपकार नहीं करता , मैंने तो बस आपकी भाषा में जवाब दिया , ऐसे ही दो चार उपकार अपने संघी कुनबे का ही बता दो "योगी " जी।
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