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क्या अन्तर होता है भारतीय दंड संहिता 1860 (IPC) एवं भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 (CRPC)  में 

गाजियाबाद : आजकल कोरोना वायरस के चलते समाचारों  में   प्रतिदिन नियम उल्लंघन  पर भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 144, भारतीय दण्ड संहिता 1860 की धारा 188, 269, 270, 271 तो कभी महामारी रोग अधिनियम 1897 की धारा 2, 3, 4 यदा कदा सुनने एवं पढ़ने को मिल रही है ।विधि विशेषज्ञों एवं जानकारों के अतिरिक्त  अन्य आम सामान्यजन भारतीय दंड संहिता 1860 एवं भारतीय दण्ड प्रक्रिया  संहिता 1973 के नाम में काफी समानता होने के कारण इनकी धाराओं  में  विभेद नहीं  कर पाते हैं । कभी- कभी इन दोनो संहिताओं की धाराओं को एक ही संज्ञान लेते हैं  यहाँ पर हम आम सामान्यजन की भाषा  में इस विभेद को परिभाषित  करेंगे -


-  भारतीय दंड संहिता 1860 एक व्यापक कानून, जो भारत में आपराधिक कानून के वास्तविक पहलुओं को शामिल करता है। 1833 के चार्टर एक्ट के तहत 1834 में स्थापित भारत के पहले कानून आयोग की सिफारिशों पर भारतीय दंड संहिता (आई.पी.सी.) 1860 में अस्तित्व में आया। इस संहिता  को 1जनवरी, 1862 में ब्रिटिश शासन के दौरान प्रभावी किया गया था और  यह पूरे तत्कालीन अंग्रेजों के लिए लागू था।


- भारतीय दण्ड  प्रक्रिया  संहिता 1973 आपराधिक कानून के क्रियान्यवन के लिये मुख्य कानून,  एवं भारत में सन् 1973 में पारित हुआ तथा 1 अप्रैल  1974 से लागू हुआ।


- भारतीय दंड संहिता 1860 को एक संयम कानून के रूप में  जबकि, आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973  को प्रक्रियात्मक कानून के रूप में जाना जाता है ।


-  मानव व्यवहार  द्वारा विधि विरुद्ध किया गया प्रत्येक  कृत्य (अपवादों को छोड़कर)अपराध की संज्ञा और उसके परिणाम को दंड कहा जाता है।
जिन व्यवहारों को अपराध माना जाता है उनके बारे में और प्रत्येक अपराध से संबंधित दंड के बारे में ब्योरा मुख्यतया आइपीसी में दिया गया है।


-  जब कोई अपराध कृत्य होता है  तो सदैव दो प्रक्रियाएं होती हैं, जिन्हें पुलिस अपराध की जांच करने में प्रयोग करती है। एक प्रक्रिया पीड़ित के संबंध में और दूसरी आरोपी के संबंध में होती है।
भारतीय दण्ड  प्रक्रिया  संहिता 1973 अर्थात् CRPC में इन दोनों प्रकार की प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है। दंड प्रक्रिया संहिता के द्वारा ही अपराधी को दंड दिया जाता है ।


- दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की इन दिनों चर्चित धारा-
              
             - धारा 144 -
- दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा 144 एक ‌‌डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, सब-‌डी‌विजनल मजिस्ट्रेट या किसी अन्य कार्यकारी मजिस्ट्रेट को राज्य सरकार की ओर से किसी विशेष स्‍थान या क्षेत्र में एक व्यक्ति या आम जनता को "विशेष गतिविधि से दूर रहने" या "अपने कब्जे या प्रबंधन की किसी संपत्ति के संबंध में कोई आदेश लेने के लिए" आदेश जारी करने की शक्ति देती है। धारा 144 लगाने का आदेश "मजिस्ट्रेट" निम्न ‌स्थितियों पर रोक लगाने के लिए दे सकता है- 
1- किसी भी व्यक्ति को कानूनी रूप से नियोजित करने में बाधा हो, परेशानी हो या चोट आने की आशंका हो। 
2 - मानव जीवन को, स्वास्‍थ्य और सुरक्षा पर संकट हो। 
3- अशांति, दंगा या उत्पीड़न की आशंका हो। 
यह आदेश एक विशेष व्यक्ति, व्यक्ति के समूह या आम जनता के खिलाफ पारित किया जा सकता है। एक-पक्षीय (ex-parte) आदेश भी पारित किया जा सकता है। गौरतलब है कि *जगदीश्वरानन्द बनाम पुलिस कमिशनर* 1983 Cri.LJ 1872 , के मामले में यह कहा गया था कि धारा 144 का सार परिस्थिति की तात्कालिकता है एवं इसके प्रभाव को कुछ हानिकारक घटनाओं को रोकने में सक्षम होने की संभावना एवं सक्षमता से समझा जा सकता है। 


- भारतीय दंड संहिता 1860 की इन दिनों चर्चित
188, 269, 279, 271 धाराएं -


                  - धारा 188- 
लोक सेवक द्वारा विधिवत रूप से प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा ।
दण्ड विधान- 
(अ)-  यदि ऐसी अवज्ञा- विधिपूर्वक नियुक्त व्यक्तियों को बाधा, क्षोभ या क्षति, अथवा बाधा, क्षोभ या क्षति का जोखिम कारित करे, या कारित करने की प्रवॄत्ति रखती हो, तो उसे किसी एक अवधि के लिए सादा कारावास की सजा जिसे एक माह तक बढ़ाया जा सकता है, या दौ सौ रुपए तक के आर्थिक दण्ड या दोनों से दण्डित किया जाएगा;
(ब)- और यदि ऐसी अवज्ञा मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा को संकट कारित करे, या कारित करने की प्रवॄत्ति रखती हो, या उपद्रव या दंगा कारित करती हो, या कारित करने की प्रवॄत्ति रखती हो, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे छह माह तक बढ़ाया जा सकता है, या एक हजार रुपए तक के आर्थिक दण्ड या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
                                 
                    - धारा 269 -
उपेक्षापूर्ण कार्य जिससे जीवन के लिए संकटपूर्ण रोग का संक्रम फैलना संभाव्य हो। 
दण्ड विधान-
धारा उल्लंघन पर वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।
                        
                - धारा 270 -
परिद्वेषपूर्ण कार्य, जिससे जीवन के लिए संकटपूर्ण रोग का संक्रम फैलना संभाव्य हो।
दण्ड विधान- 
धारा उल्लंघन पर वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।
                  
                -  धारा 271-
इस धारा में  करन्तीन (Quarantine) के नियम की अवज्ञा से सम्बंधित प्रावधान है। यह वह प्रावधान है, जो जब लॉकडाउन ऑपरेशन में हो, तब लागू हो सकता है।
दण्ड विधान- 
धारा उल्लंघन पर इस प्रावधान के तहत, छह महीने तक का कारावास या जुर्माने या दोनों से दण्डित किया जा सकता है ।
(करन्तीन (Quarantine) का तात्पर्य, एक अवधि, या अलगाव के एक स्थान से है, जिसमें लोग या जानवर, जो कहीं और से आए हैं, या संक्रामक रोग के संपर्क में आए हैं, उन्हें रखा जाता है।)
               
                 -  इन्हें  भी जाने -
       
        - महामारी अधिनियम1897 -- 
ख़तरनाक महामारी के प्रसार की बेहतर रोकथाम के लिए निर्मित कानून ।


                         - धारा 2 -
जब राज्य सरकार का किसी समय यह समाधान हो जाए कि पूरे राज्य या उसके किसी भाग में किसी खतरनाक महामारी का प्रकोप हो गया है, या होने की आशंका है तब राज्य सरकार यदि यह समझती है कि मौजूदा विधि के साधारण उपबंध इसके लिये पर्याप्त नहीं हैं, तो वह ऐसे उपाय कर सकेगी या ऐसे उपाय करने के लिये किसी व्यक्ति से अपेक्षा कर सकेगी या उसके लिये उसे सशक्त कर सकेगी और जनता द्वारा या किसी व्यक्ति द्वारा या व्यक्तियों के किसी वर्ग द्वारा अनुपालन करने के लिये किसी सूचना द्वारा ऐसे अस्थायी विनियम विहित कर सकेगी जिन्हें वह उस रोग के प्रकोप या प्रसार की रोकथाम के लिये आवश्यक समझे तथा वह यह भी अवधारित कर सकेगी कि उपगत व्यय (इसके अंतर्गत प्रतिकर, यदि कोई हो तो) किस रीति से और किसके द्वारा चुकाए जाएंगे। 


- अधिनियम की इस धारा के 2 सब-सेक्शन हैं. इनमें कहा गया है कि जब केंद्रीय सरकार को ऐसा लगे कि भारत या उसके अधीन किसी भाग में महामारी फ़ैल चुकी है या फैलने का ख़तरा है, तो रेल या बंदरगाह या अन्य तरीके से यात्रा करने वालों को, जिनके बारे में ये शंका हो कि वो महामारी से ग्रस्त हैं, उन्हें किसी अस्पताल या अस्थायी आवास में रखने का अधिकार होगा ।
                           
                         - धारा 3 -
महामारी अधिनियम 1897 की धारा-3 जुर्माने के बारे में है. इसमें कहा गया है कि महामारी के संबंध में सरकारी आदेश न मानना अपराध होगा. इस अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता  की धारा188 के तहत मिल सकती है सजा ।
                         
                 - धारा 4-
इस अधिनियम की धारा 4 क़ानूनी सुरक्षा के बारे में हैं । जो अधिकारी इस अधिनियम को लागू कराते हैं, उनकी क़ानूनी सुरक्षा भी यही अधिनियम सुनिश्चित करता है ।यह धारा सरकारी अधिकारी को विधिक सुरक्षा दिलाता है. कि अधिनियम लागू करने में अगर कुछ उन्नीस-बीस हो गया, तो अधिकारी की ज़िम्मेदारी नहीं होगी l यह जानकारी सिविल कोर्ट गाजियाबाद अधिवक्ता प्रमोद ए आर निमेष ने दी


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