8 मार्च अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2020 के अवसर पर विशेष:-
साहिबाबाद। संसार में अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाता है| विश्व में महिलाओं द्वारा किये गये विभिन्न क्षेत्रों में प्रशंशनीय कार्य के लिए महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंशा और आत्मीयता प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं के आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में समारोह के रूप में मनाया जाता है,
विदेशों में 1913, 1914 प्रथम विश्व युद्ध के समय रुसी महिलाओं द्वारा पहली बार शांति स्थापना के लिए तथा विश्व युद्ध में प्राण गंवाने वाले 2 लाख से अधिक सैनिकों के परिवारों को रोटी व अन्य सहायता दिलवाने के लिए आन्दोलन किया गया था|
न्यूयार्क शहर में 1909 में सबसे पहले महिला दिवस समाजवादी, राजनैतिक कार्यक्रम के रूप में आयोजित किया गया था| सोवियत संघ ने अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च के दिन को राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया था| हर वर्ष 8 मार्च का दिन अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है, विश्व के विकसित देशों में महिलाओं को समान शिक्षा तथा अवसर की समानता प्राप्त है, वह राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक हर क्षेत्र में सम्मान, प्रशंसा व समानता के साथ सफल जीवन जी रहीं हैं| इससे पहले वह भी हर तरह से शोषण की शिकार थी, शिक्षा व स्वावलंबन ने ही उन्हें आत्म निर्भर बनाया| अंतर्राष्ट्रीय जगत में भी बहुत से देश आज भी महिलाओं के अधिकारों के प्रति उदासीन हैं, उन्हें पूर्ण शिक्षा के साथ हर क्षेत्र में समान अवसर देने की आवश्यकता है|
हमारे भारत देश में वैदिक काल में मनीषियों, विद्वानों ने महिलाओं के सम्मान में कार्य किया, ऋषि, मुनि सपत्नी, जंगलों में कुटी में रहते हुए मानव कल्याण के लिए अनेक ग्रंथों का सृजन तथा समाज के उपयोग में आने वाली औषधियों की खोज की लेकिन पौराणिक काल आते-आते हमारे भारत में पितृसत्ता प्रधान समाज बन गया, इस काल में महिलाओं को शिक्षा से वंचित कर दिया गया, नारी जाति को ही न केवल शिक्षा से वंचित किया गया, शुद्र समाज जैसे पिछड़े, अति पिछड़े, दलित, शोषित समाज को भी शिक्षा नहीं दी गयी “स्त्री शूद्रौ नाधीयेताम” स्त्री और शूद्र को शिक्षा न दी जाय| पुरुष प्रधान समाज में मध्यकाल आते-आते स्त्री को वस्तु रूप में भोग्या मानने लगा उसके समस्त अधिकार, कर्तव्य पुरुष द्वारा निर्धारित किये जाने लगे वह लगातार शोषण का शिकार, अपमानजनक जीवन जीने के लिए बाध्य की जाने लगी| मठों और मंदिरों में “देवदासी” के रूप में उसे जीवन जीने के लिए शारीरिक, मानसिक शोषण का शिकार होना पड़ा, भूख, पीड़ा, दर्द, अपमान झेलती हुई वह अबला, सबला बनने का प्रयास करती तो उसे यातनाएं दी जाती, वह नारकीय जीवन जीने के लिए विवश थी|
आधुनिक भारत में महिलाओं के अधिकारों व यातनाओं से मुक्ति के लिए सफल प्रयास बंगाल में ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राम मोहन राय ने किया| सती प्रथा के समूल नाश के लिए ब्रिटिश सरकार से कानून बनवा विधिवत लागू करवाया| बाल विवाह, विधवा विवाह, सती प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए, समाज को जागृत करने का हर सम्भव प्रयत्न वह अपने जीवन काल में करते रहे| महात्मा गाँधी ने महिलाओं के सशक्तिकरण का भी प्रयास किया| उनका मानना था समाज में सद्भाव, भाईचारा, प्रेम, सहयोग बढ़ाने तथा सांप्रदायिक शक्तियों को हतोत्साहित करने में भी महिलाऐं महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं| 1921 में गाँधी जी के प्रयास से ही महिलाऐं राजनीति में आकर स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया, वे महिलाओं को आर्थिक दृष्टि से स्वावलंबी बनाना चाहते थे उन्होंने कहा कि तीन घन्टे धार्मिक स्थलों में समय देने के बजाय चरखे से सूत कातने से महिलाओं को आर्थिक लाभ होगा| गाँधी जी बाल विवाह के विरोधी, विधवा विवाह के पक्षधर रहे, डा0 भीमराव अम्बेदकर ने महिलाओं को पिता की संपत्ति में हिस्सेदारी दिलाई तथा शिक्षित होने पर जोर दिया, तभी वह पुरुष प्रधान समाज में गरिमामय, सम्मानजनक जीवन जी सकने में समर्थ हुई| डा0 राम मनोहर लोहिया ने, नर-नारी समानता की बात की तथा कहा कि अन्याय, अत्याचार का विरोध करते हुए महिलाओं को सामाजिक स्वतंत्रता के लिए अनवरत संघर्ष करना चाहिए, तभी उन्हें अधिकार प्राप्त होंगे, अन्याय से छुटकारा मिलेगा| प्रथम महिला शिक्षिका सावित्री बाई फूले, प्रथम शिक्षाविद, महिलाओं की मुक्तिदाता रहीं, अपने पति ज्योतिवा राव फूले के साथ मिलकर बाल विवाह, विधवा पुनर्विवाह, छुवाछूत जैसी कुरीतियों तथा महिलाओं में व्याप्त अंधविशवास, पाखण्ड, रूढ़िवाद के विरोध में संघर्ष किया बिना किसी आर्थिक मदद के स्वयं इन्होने 18 विद्यालय खोलकर महिलाओं में शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया|
आज आधुनिक भारत में बेटियों का दर्द बार-बार, प्रतिदिन देश, समाज को शर्मसार कर रहा है, चाहे वह शिक्षा केन्द्र, आश्रम, सार्वजानिक स्थल, अनाथालय, आश्रयस्थल हो, रेलों में भी महिलाऐं सुरक्षित नहीं हैं| 21वीं सदी में हर क्षेत्र में सफलता के शिखर को चूमती बेटियों को अपमान की आग में गुजरते हुए स्वयं को पवित्र सावित करने की चुनौती मिल रही है|
बेटियों को अप्रत्याशित घटनाओं से गुजरने पर मजबूर करना खुद उन्हें ही शर्मसार कर रहा है, लेकिन जो इस तरह का वातावरण पैदा कर रहे हैं, जरा भी शर्म, भय उन्हें नहीं आती| प्रकृति प्रदत्त सृष्टि की अद्भुत सबसे महत्वपूर्ण रचना अपने अस्तित्व को बचाने के लिए लगातार लड़ाई लड़ रही है| बहुत बार विकृत मानसिकता वाले, दुष्कर्मियों से संघर्ष करते हुए अपनी जान गंवानी पड़ती है|
आज बहुत जोर-शोर से “बेटी बचाओं, बेटी पढाओं” का नारा तथा महिला सशक्तिकरण की आवाज उठाई जा रही वहीं समाज में कन्या भ्रूण हत्या अब चोरी छिपे हो रही है, समाज कितना विकारग्रस्त, विचार शून्य हो गया कि वह यह नहीं सोचता कि बेटी नहीं होगी तो समाज में असंतुलन पैदा हो जायेगा| बेटियों की संख्या कम हो जाने के कारण सामाजिक व्यवस्था चौपट हो जायेगी, आज इक्कीसवीं सदी में महिलाओं के साथ दरिंदगी, छेड़-छाड़ की घटनाएँ लगातार बढ़ रही है, पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के प्रति पुरुषों को सोच बदलनी होगी|
आज भी धर्म की आड़ में स्वर्ग, मोक्ष का झूठा आडम्बर रच तरह-तरह की पौराणिक कहानी के माध्यम से तथाकथित अपने को सन्त व ईश्वर का दूत कहने वाले महिलाओं का हर-तरह से शोषण कर रहे हैं, वह इसलिए अपनी योजना में सफल हो जाते हैं कि वे अच्छी तरह जानते हैं कि “महिला करुणा की सागर है, पाखण्ड, अंधविश्वास उसकी रग-रग में भरा है”, वह चालाक, धूर्त, लोभी, लालची, अनाचारियों के शब्द जाल, मायाजाल में लालच, अज्ञानता के कारण समर्पित हो जाती है, उसे यह नहीं मालूम कि कहीं न स्वर्ग है न कहीं ईश्वर व मोक्ष स्थल है, वैज्ञानिक युग में किसी तरह की ठगी का शिकार होना, अशिक्षा, भ्रम, भय व मानसिक गुलामी ही है| चालाक लोग महिला की कमजोरी का आकलन करते रहते हैं तथा मौका पाते ही अपने जाल में फंसा लेते हैं, दृढ निश्चय, शिक्षा, ज्ञान के द्वारा ही हम हर तरह के शोषण से मुक्त हो सकते हैं| अन्ध श्रद्धा तो, हमें गर्हित अवस्था में ही पहुंचाती है|
21वीं सदी महिलाओं की सदी तभी हो सकती है जब संसद और विधान सभाओं में 33% आरक्षण महिलाओं के लिए व्यवस्था की जाय| कानून बनाकर उन्हें राजनीतिक ताकत दी जाय, 33% आरक्षण में ही पिछड़े वर्ग की, दलित व आदिवासी महिलाओं को जो अभी शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ गयी हैं, अलग से आरक्षण की व्यवस्था की जाय| राजनैतिक गैर बराबरी दूर हो महिलाओं को जाति, धर्म से ऊपर उठकर अधिकार छीनने के लिए संघर्ष करना चाहिए| आज प्रसन्नता के साथ कहने में कोई संकोच नहीं है कि “महिलाऐं राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक क्षेत्र, कला, विज्ञान में सफलता के शिखर को चूम रही हैं, सेना में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं, अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस से प्रेरणा लेकर उन्हें और आगे बढ़ने के लिए संकल्प करना है वे तभी समता, सम्पन्नता के साथ गौरव मय जीवन जी सकती हैं|
लेखक:-
राम दुलार यादव, शिक्षाविद
अध्यक्ष
लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट
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