23 मार्च 2020 सरदार भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव के बलिदान दिवस पर विशेष:-
23 मार्च 1931 सरदार भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव की शहादत को सलाम:-राम दुलार यादव
सरदार भगत सिंह के सहयोगी शिवराम हरि राजगुरु, सुखदेव समकालीन थे|
भगत सिंह का जन्म 27 अक्टूबर 1907 को जनपद लायलपुर, के बंगा गाँव में हुआ था| क्रान्तिकारी परिवार में पैदा हुए भगत सिंह लाहौर के नेशनल कालेज में शिक्षा प्राप्त की, कालेज में ही सुखदेव उनके मित्र बन गये थे| भगत सिंह ने कम उम्र में ही राजनीति, अर्थशास्त्र, दर्शन शास्त्र, विज्ञान का अध्ययन कर लिया था| प्रखर बुद्धि, विलक्षण प्रतिभा के कारण हर विषय का वह गहन अध्ययन कर तर्क की कसौटी पर विचार कर निर्णय लेते थे| उनकी रूचि पाश्चात्य लेखकों की रचनाओं को पढ़ने, पूर्व क्रांतिकारियों के बारे में चर्चा, कूका विद्रोह, गदर पार्टी का इतिहास, करतार सिंह के बारे में बात करते हुए कि उन्होंने कितना कष्ट झेला, उनकी आंख भर आती थी|
महान क्रान्तिकारी सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 को नोधरा गाँव जनपद लुधियाना में हुआ था, वे विलक्षण व्यक्तित्व के धनी, देदीप्तमान चेहरा, साक्षात् सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति थे, उनके चाचा देशभक्त जेल की सजा भोग चुके थे, उन्ही से प्रभावित हो वे भारत माता की आजादी के दीवाने हो गये| वे कुशल संगठन कर्ता के साथ-साथ पार्टी के आदर्शों के लिए सतत प्रयत्नशील रहते थे| भगत सिंह के प्रति उनके मन में आदर, अपनापन, प्रेम व सम्मान था वे उनके घनिष्ट मित्रों, सहयोगियों में से थे|
विनोदी स्वभाव के धनी, जन्मजात विद्रोही, अदम्य साहसी शिवराम हरि राज गुरु का जन्म खेडा गाँव, चाकण कस्बे में पूना के निकट 24 अगस्त 1908 को हुआ था| पिता का देहान्त हो जाने के कारण, वे अपने बड़े भाई के साथ पूना चले गये वहीँ मराठा स्कूल में उन्हें प्रवेश दिलवाया गया| उनका मन पढ़ने में नहीं लगता था एक दिन भाई ने उन्हें धमकाते हुए कहा कि यदि तुम्हे पढना नहीं है तो, घर से निकल जाओ| वे 15 वर्ष की उम्र में ही घर से भाग गये| कठिनाइयों का सामना करते हुए वह कशी पहुंचे, संस्कृत पाठशाला में शिक्षा ग्रहण करने लगे, भाई को पता चल गया तो वह उन्हें पांच रुपये महीना देने लगा, लेकिन खर्च न चलने के कारण एक शिक्षक के यहाँ पढ़ने के बाद जो समय मिलता सेवा करने लगे, लेकिन शिक्षक खाने के पैसे देने के कारण उनसे अत्याधिक काम लेता, शोषण करता रहा इन्हें दरिद्रता, गरीबी, भूख, पीड़ा, दर्द का एहसास हुआ| अब राज गुरु को प्राइमरी में ड्रिल मास्टर की नौकरी मिल गयी यहीं पर इनका परिचय क्रान्तिदल के सदस्यों से हुआ, बनारस क्रान्ति का केन्द्र था वह उसके विधिवत सदस्य बन गये|
भगत सिंह के मन में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध अग्नि धधक रही थी वे लाहौर से कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी के “प्रताप अखबार” में कार्य करने लगे, वहीँ उनकी मुलाकात चंद्रशेषर आजाद, बटुकेश्वर दत्त जैसे महान क्रांतिकारियों से हुई| सशस्त्र क्रान्ति के लिए सभी “हिन्दुस्तानी, समाजवादी प्रजातंत्र सेना” के सिपाही बनकर कार्य करना शुरू किया| भगत सिंह, सुखदेव ने राम प्रसाद बिस्मिल को जेल से छुड़ाने का प्रयास दो बार किया लेकिन सफल न हो सके| शिव वर्मा को समझाते हुए भगत सिंह ने कहा कि “सशस्त्र क्रान्ति का उद्देश्य स्वतंत्रता है, न कि अंग्रेजों व देश द्रोहियों का क़त्ल करना”| इसके लिए धारदार संगठन की आवश्यकता है| 1926 में भगत सिंह, भगवती चरण वोहरा, यशपाल ने लाहौर में “नौजवान सभा” का गठन किया| इसका उद्देश्य जन-जागरण कर क्रांति के विचार का प्रचार करना था, क्रांतिकारियों का मानना था कि शोषण, गरीबी, असमानता, परतंत्रता यहाँ सबसे बड़ी समस्या है| सामाजिक व आर्थिक स्वतंत्रता के बिना भारत को पूर्ण आजादी मिलना सम्भव नहीं है, सरदार भगत सिंह का कहना था गुलामी के विरुद्ध अंग्रेजों से लड़ना हमारी पहली लड़ाई है परन्तु अन्तिम लड़ाई शोषण के विरुद्ध है|
30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन भारत आया| लाहौर में कमीशन के विरुद्ध प्रदर्शन में लाठी चार्ज होने के कारण लाला लाजपत राय शहीद हो गये| इस घटना ने क्रांतिकारियों को उद्द्वेलित कर दिया उन्होंने निर्णय कर लिया कि हम लोग साण्डर्स का वध कर लाला लाजपत राय जी की शहादत का बदला लेकर ही रहेंगें यह प्रस्ताव भगत सिंह का था साण्डर्स की हत्या कर भगत सिंह ने कहा कि “हमें खेद है कि हमने हत्या की लेकिन देश की स्वतंत्रता व मनुष्य के द्वारा मनुष्य पर हो रहे अन्याय व शोषण के लिए यह आवश्यक था| कुछ समय बाद मजदूरों की देश व्यापी हड़ताल को ख़त्म करने के लिए ब्रिटिश सरकार ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल, पब्लिक सेफ्टी बिल असेम्बली में रखना चाहती थी लेकिन सभी राजनीतिक पार्टियाँ इसका विरोध कर रही थीं| भगत सिंह ने योजनावद्ध तरीके यह प्रस्ताव पास करवा लिया, कि जैसे ही यह काला कानून असेम्बली में रखा जाय, हम बम फेंककर इस गूंगी, बहरी सरकार के मंसूबे पर पानी फेर देंगें| भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त ने जैसे असेम्बली में प्रवेश कर साम्राज्यवाद का नाश हो, इन्कलाब जिंदाबाद, सर्वहारा वर्ग जिंदाबाद का जयकार लगाते बम फेंका और पर्चे भी फेंकने लगे उस पर लिखा था “बहरों के लिए जोरदार धमाका” क्रांति के बारे में भगत सिंह के विचार आज भी अति महत्वपूर्ण है, उन्होंने कहा कि “क्रांति का अर्थ खून बहाना या प्रति हिंसा करना नहीं है बल्कि सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन करने की तीब्र इच्छा है| असेम्बली बम कांड में उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी, उन पर 10 जुलाई 1929 को फिर से मुक़दमा चलाया गया वे समय-समय पर अंग्रेजी सरकार की झूठी, अन्याय पूर्ण व ढोंगी न्याय व्यवस्था का पर्दाफाश करते रहते थे| जेल में क्रांतिकारियों के साथ शोषण व अन्याय का विरोध राज गुरु, सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त व भगत सिंह करते रहते थे| 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव को फांसी की सजा दी गयी| महान बीर क्रन्तिकारियों ने हँसते हुए फांसी का फंदा चूम लिया| देश की आजादी सामाजिक शोषण, अन्याय का प्रतिकार करते हुए बलिदान दे दिया| उनका मानना था हमारा उद्देश्य एक न एक दिन अवश्य पूरा होगा|
सरदार भगत सिंह ने किताब लिखी थी “मै नास्तिक क्यों हूँ” उन पर साम्यवाद के जनक मार्क्स, सफलता पूर्वक क्रांति करने वाले लेलिन तथा अन्य लेखकों के पढ़े प्रगतिशील विचार का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा| 1926 तक वह जान गये थे कि सारी दुनिया को चलाने, बनाने और नियंत्रित करने वाली सर्व शक्तिमान परम सत्ता के अस्तित्व का सिद्धान्त निराधार है| यदि ईश्वर सर्व व्यापी व सर्वज्ञ है, तो उसने ऐसी दुनिया क्यों बनाई जहाँ पीड़ा है, दर्द है, बेबसी है, शोषण है, असमानता है, नफ़रत है| एक भी प्राणी पूर्णत: संतुष्ट नहीं है, वह धर्म, क्या धर्म हो सकता है जिसने विश्व में करोड़ों लोगों को मौत के घाट उतार, असमानता पैदा की| अशिक्षित व गरीब होना सबसे बड़ा पाप है, इसे भी धर्मांध ईश्वर प्रदत्त मानते हैं, यह मानवता के साथ धोखा है| उनका मानना था कि मानसिक श्रम करने वाला, शारीरिक श्रम करने वाले से श्रेष्ठ न माना जाय| आंख मूंदकर किसी बात को मत मानो, विज्ञान व तर्क की कसौटी पर कसकर ही मेरा भी अनुसरण करो, अंधभक्ति, अन्धानुकरण, अंधश्रद्धा से दूर रहकर मानवता व देश, समाज के कल्याण के लिए कार्य करो, जिससे देशवासी गरिमामय जीवन जी सकें| यही उनके लिए इन्कलाब, जिंदाबाद, अमर बलिदानियों के लिए सार्थक स्मरण होगा|
लेखक:-
राम दुलार यादव, शिक्षाविद
अध्यक्ष
लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट
0 टिप्पणियाँ