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कोरोना काल में पत्रकारों की स्थिति- परिचर्चा

दिल्ली: मदरलैंड वॉइस समाचार पत्र द्वारा कोरोना काल मे पत्रकारों की स्थिति पर परिचर्चा के रूप में मंथन वेवनार के माध्यम से किया गया।


इस मंथन में विषय का को समुद्र मंथन की तरह मथा गया। मदरलैंड वौइस् के संपादक संजय उपाध्याय के संयोजन में नरेंद्र भंडारी, महासचिव वर्किंग जर्नलिस्ट्स, ऑफ इंडिया, मनोज कुमार मिश्र , राष्ट्रीय अध्यक्ष, नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स( i) , प्रदीप महाजन, वी के शर्मा, देवेंद्र सिंह तोमर और देवेंद्र पंवार ने भाग लिया, जिसका वीडियो सोशल मीडिया में उपलब्ध है।
   पूरी परिचर्चा सुनने के बाद कुछ बातें प्रतिध्वनित हुई।
जिस मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है वह पत्रकारों को झाड़ पर चढ़ाने जैसा है। लगभग 90 प्रतिशत पत्रकार अभावों में जीते हैं। अधिस्वीकृत पत्रकार मुट्ठीभर है। पत्रकार नाम इतना प्रतिष्ठित है कि कोरोना काल के तालाबंदी समय मे वह अपना और अपने परिवार का गुजरबसर कैसे करे। क्या चौथे स्तंभ के प्रतिष्ठित लोग गली मोहल्लों में बेसहारा या अभावग्रस्त लोगों की तरह लाइन में खड़े हो जांय। जो मीडिया हाउस हैं वे अब मीडिया की बजाय बिजनेस हाउस की तरह हो गए हैं। इन लोगों को (अधिस्वीकृत को छोडकर)  मीडिया कार्ड तक सरकार की ओर से मुहैया नही किये गए हैं। दिल्ली सरकार अनेक ऐसे श्रमिक वर्ग को कोरोना काल मे आर्थिक सहायता दे रही है जिनका रोजगार दुष्प्रभावित हुआ है। इस वर्ग को कई तरह की कठिनाई से गुजरना पड़ता है। वैसे तो पत्रकार बुद्धि जीवी हैं, लेकिन जिन्हें समझना चाहिए वे न तो बुद्धिजीवी मानते हैं और न श्रमजीवी। इन लोगों की प्रतिष्ठा इतनी बड़ी है कि ये अपना दुखड़ा किसी से कह भी नही सकते। सच बात तो ये भी है कि पांच बुद्धिजीवी पत्रकार किसी एक विषय पर एकमत नही हो पाते है। कोई न कोई ऐसा टपकेगा जो मंत्रियों और सरकार से अपने संबंधों को व्याख्यायित करने लगेगा, बेचारा जो कम वेतन भोगी पत्रकार है उसकी कौन सुने। कहीं कुछ हो जाय तो रिपोर्टिंग के लिए गया पत्रकार पीटा भी जाता है, ऐसा पत्रकार काम पर न लौट पाए तो घर जाने का नोटिस मिलते देर नही लगती। इसे सुनते हुए ये लगा कि मीडिया की स्वतंत्रता मीडिया हाउस के लिए तो है लेकिन जो उसके लिए काम करते हैं उनके लिए कुछ भी नही।
   ये मेरी निजी राय है कि जो धंधेबाज लोग मीडिया में हैं मीडिया की स्वतंत्रता का आनंद वे लेते हैं। अंदर की कहानियां बहुत ही बदसूरत हैं उनकी। हरियाणा सरकार ने कोरोना काल मे घोषणा की है कि वे पत्रकारों को दस लाख रुपये का बीमा कवर देगी जिसमें सभी पत्रकार शामिल हैं। पत्रकार भी कोरोना योद्धा की तरह सूचनाओं को जन जन तक पहुंचाने के काम मे लगे हुए हैं उन्हें भी कोरोना योद्धा माना जाना चाहिए। इसमें एक झोल जरूर आएगा कि योद्धा मालिक को माना जाय या रिपोर्टर को, कहावत है काणी के व्याह में सौ लफड़े।
  कुछ भी हो परिचर्चा गंभीर थी। सभी का योगदान उत्तम था। ऐसी चर्चाएं बाजारवादी मीडिया में सुनने को नही मिलती, आकाशवाणी और दूरदर्शन पर अभी यह गंभीरता बची हुई है। सभी प्रतिभागियों के साधुवाद।


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