हमारे शास्त्र यज्ञ को श्रेष्ठतम कर्म बताते हैं। यज्ञ का अर्थ देवपूजा, संगतिकरण एवं दान होता है। यह तीनों मिलकर जीवन के श्रेष्ठतम कर्म बनते हैं। देवपूजा में चेतन व जड़ दोनों प्रकार के सभी देवताओं की पूजा की जाती है। विद्वान ही मुख्य देवता कहलाते हैं। ईश्वर भी देव व महादेव है। वह सभी देवों में प्रथम स्थान पर है। इसके बाद विद्वान, ऋषि-मुनि, योगी, तपस्वी, समाज सुधारक व रक्षकों सहित हमारे माता-पिता, आचार्य, अध्यापक, वेद प्रचारक तथा देशहित के कार्यों व सत्य निष्ठा से राज्य कार्य करने वाले सभी लोग विद्वान व देवों की श्रेणी में आते हैं। इनका सम्मान तथा इनकी यथायोग्य सेवा व सहायता करना देवपूजा कहलाता है। ऐसा करने से यह देव अपना ज्ञान व समस्त अनुभव का लाभ देश व समाज के लोगों को प्रदान करते हैं। इनसे इनके ज्ञान व अनुभवों को प्राप्त करना ही संगतिकरण कहलाता है। मनुष्य जीवन का उद्देश्य अविद्या को दूर करना, विद्या की प्राप्ति तथा उसका पात्र लोगों में विद्या वा वेद का प्रचार व प्रसार हुआ करता है।
विद्या एवं वेद-प्रचार दोनों समानार्थक व परस्पर पूरक शब्द व कार्य हैं। ऐसा करने से मनुष्य व समाज की उन्नति होती है। देश अज्ञान, अन्धविश्वास, पाखण्ड, मिथ्या अन्ध-परम्पराओं से मुक्त रहता है और जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति होती है। हमारे देश व समाज की वर्तमान समय में जो समस्यायें हैं उनका कारण समाज में अज्ञान से युक्त साम्प्रदायिक मत-मतान्तरों का होना, असत्य का त्याग न करना तथा सत्य को स्वीकार न करना है। सत्य का स्रोत ईश्वर एवं वेद ज्ञान है। हमारे ऋषियों के वेदानुकूल ग्रन्थ भी सत्य ज्ञान के स्रोत व कोश हैं। इनका स्वाध्याय व सेवन करना ही मनुष्य की न्यूनताओं व दुर्बलताओं को दूर कर इन्हें सच्चा मानव बनाता है। ऋषि दयानन्द ने इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन समर्पित किया था। गुरु विरजानन्द जी से अध्ययन पूरा करने के बाद उन्होंने अपना समस्त जीवन अज्ञान व अविद्या को दूर कर ज्ञान व विद्या के प्रसार में लगाया। इनका विरोध मत-मतान्तरों की अविद्यायुक्त मान्यताओं व सिद्धान्तों से था। यद्यपि वह ज्ञान का जो प्रकाश कर सकते थे, उन्होंने किया, परन्तु अज्ञान से ग्रस्त मतों व उनके अनुयायियों ने उनका विरोध ही किया। मत-मतान्तरों व उनके अनुयायियों ने सत्य का ग्रहण व असत्य का त्याग नहीं किया। वर्तमान समय तक भी मत-मतान्तरों ने अपनी अविद्यायुक्त बातों का त्याग नहीं किया है। यही कारण है कि हमारा देश आज अनेक संकटों से गुजर रहा है। सन् 2014 में एक योग्य भारतीय संस्कृति के प्रेमी देवपुरुष श्री नरेन्द्र मोदी जी का उदय हुआ था जिनके नेतृत्व में देश ने अनेक उपलब्धियां प्राप्त की हैं। उन्होंने देश द्वारा की गई पुरानी अनेक त्रुटियों का निवारण किया है। वृहद स्तर पर भ्रष्टाचार कम हुआ है। उनके नेतृत्व में देश ने अनेक कठोर एवं हितकारी निर्णय लिये गये हैं। यदि उन्हें मत-मतान्तरों और सत्ता प्राप्ति के लिये कुछ भी करने में तत्पर रहने वाले लोगों का भी सहयोग प्राप्त हो जाता तो देश विश्व का एक आदर्श देश बन सकता था।
वर्तमान समय में आर्यसमाज का प्रचार मन्द व शिथिल है। आज देश में कहीं वेद ईश्वरीय ज्ञान है और सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है, यह नाद सुनाई नहीं देता। इसके विपरीत मत-मतान्तर अपने अजेण्डों को क्रियान्वित करने में हर प्रकार से सक्रिय हैं जो भविष्य में आर्यजाति के लिये एक महान संकट का कारण बनेगा। पालघर में दो निर्दोष साधुओं व उनके चालक को लाकडाउन के चलते हजारों लोगों की भीड़ द्वारा निर्दयता से पीट कर मारने का घोरतम पाप किया जाता है जिसे दबाने व भुलाने की कोशिश की जाती है। इस पाप की पुनरावृत्ति रोकने के लिये देश में वह सक्रियता दिखाई नहीं देती जो एक सभ्य देश में दीखनी चाहिये। आर्यसमाज भी इस अवस्था को एक असहाय संगठन के रूप में देखता रहा है। उसकी ओर से कोई प्रतिक्रिया देखने व सुनने को नहीं मिली। ऐसा देश व समाज हमें प्रकाश की ओर ले जाने के स्थान पर अज्ञान व अन्धकार की ओर ले जाते हुए दिखाई देता है। इस अवस्था में हमें अपने ही कुछ लोगों को देश की प्राचीनतम आदि वैदिक संस्कृति से विमुख होकर विरोधियों के साथ खड़ा देखकर आश्चर्य एवं दुःख होता है। हृदय पीड़ा व आक्रोश से भरा है। पता नहीं चलता कि इस स्थिति में मौन रहने वाले हमारे देश के लोग अपने किन स्वार्थों व उद्देश्यों के लिये वेद विरुद्ध विचारों, मान्यताओं, कथनों व मतों के साथ खड़़े होते हैं और सत्य व न्याय की उपेक्षा करते हैं। यह सत्य व न्याय की रक्षा की दृष्टि से देश सहित वैदिक धर्म व संस्कृति के लिये एक खतरे की घंटी है।
अग्निहोत्र यज्ञ हमारे मन, आत्मा सहित वायु, जल व वातावरण को शुद्ध व प्रदुषण से मुक्त करता है। आज दिनांक 3-5-2020 को आर्यसमाज के सभी संगठन एक मत होकर प्रातः 9.30 बजे आर्य परिवारों में ‘‘घर घर यज्ञ” का आयोजन कर व करवा रहे हैं। यह एक उत्तम एवं प्रशंसनीय कार्य है। इससे लोगों में उत्साह उत्पन्न हुआ है। यज्ञ का वायु शुद्धि सहित सभी प्रकार के रोगों के निवारण में महत्वपूर्ण योगदान होता है। यज्ञ करने से रोग के किटाणु, विषाणु, कृमि, वायरस, बैक्टिरिया तथा जम्र्स आदि का नाश होता है। देश विदेश में आज आर्य व अनेक सनातनी बन्धु प्रातः 9.30 बजे यज्ञ करेंगे और ईश्वर से स्तुति प्रार्थना व उपासना सहित स्वस्तिवाचन, शान्तिकरण व यज्ञ के इतर मन्त्रों से प्रार्थना करेंगे तो निश्चय ही ईश्वर इसका संज्ञान लेगा और इसका यथोचित लाभ देश व विश्व में देखने को मिलेगा। ऋषि दयानन्द ने लिखा है कि मनुष्य को प्रार्थना करने के साथ अपने योग्य करने के सभी कार्यों, साधनों व उपायों को भी करना चाहिये। प्रार्थना व तदनुकूल कर्म के मिलने से अभीष्ट सफल होता है। आज का यज्ञ हमारा अभीष्ट सफल करेगा, ऐसी आशा हमें रखनी चाहिये। इस यज्ञ के साथ सरकार के स्तर पर सभी आवश्यक साधन व उपाय रोग के आरम्भ के समय से ही किये जा रहे हैं। देशवासियों को सरकार के आदेशों व निर्देशों का निष्ठापूर्वक पालन करना चाहिये व अधिकांश कर ही रहे हैं। ऐसा करके ही हम वर्तमान की कोरोना महामारी व संक्रमण पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
हम भी ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह देश व विश्व के सभी लोगों को प्रेरणा करें कि वह असत्य व अविद्या को छोड़कर सत्य और विद्या से युक्त वेद की शिक्षाओं को ग्रहण करें। ईश्वर आर्यसमाज के सभी नेताओं व विद्वानों को भी प्रेरणा प्रदान करें जिससे वर्तमान संकट के समय में वह अपने सभी मतभेद दूर कर वेद व ऋषि के कार्य ‘पूरे विश्व के लोगों को श्रेष्ठ विचारों व भावनाओं वाला मनुष्य बनाओं’ को पूरा करने के लिये मिलकर कार्य करें। आज का यज्ञ पूर्णतः सफल हो, हम इसकी ईश्वर से प्रार्थना व कामना करते हैं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
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