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जीवन अधूरा सा बिन पापा के : नरेंद्र राठी


 


 


जीवन अधूरा सा बिन पापा के,


निर्जीव सा, जीवन सारा बिन पापा के,


हिम्मत और विश्वास थे पापा,


उम्मीद ओर आस थे पापा,


अंदर से अगर निराश थे पापा,


बाहर से हर्षो-उल्लाश थे पापा,


अनुभवों का पिटारा थे,


गिरते का सहारा थे पापा।


पापा शोहरत थे मेरी,


मेरी दौलत थे पापा,


प्यारा सा अहसास थे पापा,


सर को सहलाते हाथ थे पापा।


पापा प्रभु का उपकार थे,


मेरी जिंदगी श्रंगार थे पापा,


मेरे संस्कार थे पापा,


मेरा अहंकार थे पापा,


सफलता का मंत्र थे पापा,


सुखी जीवन का यंत्र थे पापा,


पापा दिल के नर्म थ तो,


बाहर से गर्म थे पापा,


तुफानो में दीवार थे,


न्याय की तलवार थे पापा,


कभी मेरा एक खिलौना थे,


पेट पर सुलाते बिछोना थे,


मेरा अरमान थे पापा,


विशाल आसमान थे पापा।


मेरे अंधकार में प्रकाश थे,


निराशा में आस थे पापा,


भगवान से फरियाद थे,


कष्टो में फौलाद थे पापा,


बड़े दयालु इंसान थे,


मेरा ईमान थे पापा,


धूप में मेरी छांव थे,


मेरे मजबूत पांव थे पापा,


मेरे ठाठ थे पापा,


दुखो की काट थे पापा,


मैं पतंग,वो डोर थे पापा,


मचाते शोर थे,


कभी जबान से कठोर थे,


ह्रदय से भाव विभोर थे पापा,


झुर्रियों में लिखी तकदीर थे,


भगवान की एक तस्वीर थे पापा,


पापा थे जिंदगी थी प्यारी सी ,


अब लगती भारी भारी सी,


पिता बिन सब वीरान सा 


लगता सब शमशान सा,


करते नमन,करते वंदन,


चरणों मे चढ़ाए सुमन,


प्रभु सबके बने रहे पापा,


उनका कौन,जिनके नही रहे पापा।


जहाँ भी हो बना रहे आशीर्वाद पापा,


हमको मिलता रहे सदा,


आपका प्यार दुलार पापा,


जीवन अधूरा है सा बिन पापा के,


निर्जीव सा सारा जीवन बिन पापा के।।


                                  लेखक


                               नरेंद्र राठी


सदस्य--अखिल भारतीय कांग्रेस


सदस्य--उपभोक्ता परामर्शदात्री समिति,उत्तर रेलवे(भारत सरकार)


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