पार्ट 2- लॉक डाउन खुलने के बाद की तस्वीर आज से ज्यादा भयानक हो सकती है मनजीत लॉक डाउन रहा तो भूख से ज्यादा मौतें हो सकती हैं नारायण मूर्ति के बयान से अपने लेख की शुरुआत नारायणमूर्ति के उस बयान से करता हूं जिसमें उन्होंने कहा कि लॉक डाउन रहा तो भूख से ज्यादा मौत हो सकती हैं देश की टॉप सॉफ्टवेयर कंपनियों में शामिल इंफोसिस के संस्थापक एन आर नारायणमूर्ति का कहना है कि देश में अगर लाख डाउन जारी रहा तो जितने लोग करोना वायरस की बीमारी से इनकी मृत्यु होगी।
उससे कहीं ज्यादा भूख और कुपोषण से मर सकते हैं उन्होंने कहा ब्रिटेन जैसे विकसित देशों की तुलना में भारत के करो ना के कारण मृत्यु दर काफी कम है स्वस्थ व्यक्तियों को रोजगार पर लौटने वह अस्वस्थ लोगों की देखभाल हो वहीं दूसरी तरफ आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने अपने बयान में इस वक्त की आर्थिक तंगी की मार में सबसे ज्यादा पीड़ित गरीब तबके को बताया यहां हमें मध्यमवर्ग को भी जोड़ना चाहिए मध्यमवर्ग में जो निम्न आय वाले लोग हैं उन्हें हम नजरअंदाज नहीं करना चाहिए हमारी सरकारों को भी मध्यम वर्ग के बारे में ध्यान देना चाहिए मध्यमवर्ग ना तो अपने को गरीब कह पा रहा है मगर जल्द वह ज्यादा पीड़ित वर्ग में मानता हूं भले ही मेरी बात ना तो सरकार को अच्छी लगेगी और ना ही मध्यम वर्ग के उच्च लोगों को मगर फिर भी मैं बार-बार अवगत कराता रहूंगा आरबीआई के पूर्व गवर्नर राजन ने आगे का अर्थव्यवस्था जल्द खोलनी चाहिए क्योंकि हमारे पास दूसरे देशों की तरह मजबूत व्यवस्था नहीं है दोस्तों 22 मार्च 2020 से शुरू हुए लाख डाउन जो 3 नई से आगे बढ़ सकता है तारीख आगे बढ़ने की ज्यादा संभावना है सरकार से फिर एक बार अपील करता हूं आप गरीबों की संख्या देश आबादी का 20% मानते हैं जो शायद गलत है गरीब वर्ग की संख्या को 40 से 45% मानकर चलें कम आय वाले व्यक्तियों को भी इसमें जोड़ना होगा करोना वायरस की वजह से मजदूर वर्ग भी पीड़ित है जिसमें 40% लोग अपने घरों को पलायन कर चुके हैं आज फिर उस तस्वीर को दोहराता हूं कि आज लाखों लाखों हर प्रदेश के नागरिक दूसरे प्रदेशों में फंसे हैं और भूख से पीड़ित हैं जितना भी सरकार दावे करें हम भोजन दे रहे हैं मगर शायद पूरा नहीं कर पा रहे दिल्ली में गुरुद्वारा कमेटी लगभग दो लाख लोगों की पालना कर रही है कमेटी को मैं सलाम करता हूं हमारे शहर को देखी तो कुछ समाजसेवी संस्था जुटी हैं मगर कितना सच का पता नहीं अखबारों में तो बहुत सारी संस्था काम कर रही है अगर मैदान में उतर जाएं तो शायद हर गरीब का भला हो जाए प्रशासन भी चुका है कंट्रोल रूम भी खोल रखा है मगर कितनी कामयाबी मिल रही है यह प्रशासन बता सकता है मैं फिर भी सभी संस्थाओं का वह प्रशासन का धन्यवाद करता हूं कि इस बुरे वक्त पर मदद के लिए आगे आए आप एक बात और ध्यान दिलाना चाहता हूं जो 40% मजदूर गांव की तरफ चला गया क्या वह लॉक डाउन खुलने के तुरंत बाद काम पर आ जाएगा शायद नहीं शायद जल्दी में नहीं स्थिति सामान्य हो जाने में वक्त लगेगा तब तक जो मजदूर गांव चला गया उसका आना मुश्किल सा लगता है लॉक डाउन खुलने के बाद स्थिति को सामान्य होने में वक्त लग जाएगा आज भले ही हम घरों में हैं हम अपनी पीड़ा किसी दूसरे को नहीं सुना पा रहे मगर खुलने के बाद जेब में पैसा नहीं होगा खाते में पैसा नहीं होगा हो सकता है हम उस वक्त चिल्लाने लगे जोर जोर से मेरे इस लेख से किसी को पीड़ा पहुंचती है तो मैं सॉरी बोलता हूं अपनी बात को समाप्त करता हूं इस उम्मीद के साथ सरकार मध्यमवर्ग की मजबूरी के बारे में भी सोचे गी पूर्व गवर्नर राजन ने कहा गरीबों की मदद के लिए 65000 करोड चाहिए जो सरकार कर सकती है मैं इसमें मध्यम वर्ग के गरीब भी जोड़ें जाने चाहिए ऐसा चाहता हूं तब कितने हजार करोड़ चाहिए यह सरकार को सोचना है धन्यवाद सरदार मंजीत सिंह सामाजिक एवं आध्यात्मिक विचारक
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