दिल्ली :चरण वंदना के साथ भावनात्मक रिश्ता जोड़ कर अपनी बात रखने के अंदाज से देश की जनता कोई पहली बार रूबरू नहीं हुई है| जब भी जनता से यह रिश्ता बना तभी वह ठगी गई, क्या देश ने सुभाष चंद्र बोस के ड्राइवर के मंच पर पैर छूते नहीं देखा उसके बाद उनका क्या हुआ यह किसने जाना | इस संकट काल में भी कहां है मार्गदर्शक, कहां है बघेला व तोगड़िया जिनकी उंगली पकड़कर राजनीति की राह पकड़ी | स्वर्गीय शास्त्री जी के घर जाकर कम से कम यही प्रेरणा ली होती कि जिन्होंने एक रेल दुर्घटना के साथ ही रेल मंत्री पद ही त्याग दिया और आज के रेल मंत्री रेलों की लेटलतीफी के कारण भूख प्यास से मरने वाले मजदूर और उनके परिवारों के प्रति संवेदना के बजाय बेशर्मी के साथ गलत बयानी से देश को गुमराह कर रहे हैं|
ऐसा नहीं कि पिछले 6 सालों में कुछ नहीं हुआ, परियोजनाओं के उद्घाटन के शतक लगे परंतु धरातल पर पहुंचते-पहुंचते टूट गई या बहुत पिछड़ गई | यह बात अलग है कि पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा शुरू की गई योजनाओं को अपनी बताकर जनता के सामने परोस दिया | सब सही होता तो ना तो बेरोजगारी बढ़ती और ना ही जीडीपी – माइनस पर पहुंचती |
सत्तर साल के इतिहास को काला बताकर अपने दल के साथ साथ सभी विरोधी दलों की सरकारों को नकारा बताया जाता रहा | मजदूरों, गरीबों, मजलूमों के लिए कुछ करने की इच्छा शक्ति को नेहरू जी से सीखना चाहिए था, 1954 में जब कानपुर में उन्होंने मजदूरों की रिहायशी इलाकों व घरो को देखकर कहा था यह दुर्भाग्य है कि हमारा श्रमिक जानवरों से भी बदतर स्थिति में रहता है | कानपुर में ही लेबर कॉलोनी बनाने का आदेश दिया और 1957 में दो मंजिले 25000 क़्वाटर बनाकर नॉमिनल किराए पर मजदूरों को दिए गए | शास्त्री नगर लेबर कॉलोनी एशिया की सबसे बड़ी कॉलोनी कहलाई | कानपुर के साथ देश के अन्य औद्योगिक नगरों में श्रमिक कॉलोनी बनी, बड़े बड़े उद्योगपतियों ने भी अपने श्रमिकों के लिए क़्वाटर बनवाये| अगर इस यज्ञ को सरकारों ने नजरअंदाज न किया होता तो संभवत इस महामारी मैं स्लम एरिया से मजदूर भागने पर मजबूर ना होता | वर्तमान सरकार ने भी गरीबों के लिए मकान बनाने की योजना बनाई कुछ तो बने कुछ में काम बंद हो गया अग्रिम एक लाख रूपए लेकर महंगे मकान बना कर देना और अब रिक्त पड़े मकानों को महंगे किराए पर देने की योजना क्या बेचारे गरीब मजदूरों के साथ न्याय है |
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