दिल्ली: जब पूरी दुनिया में कच्चे तेल के दाम अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ चुके हैं, तो ऐसे में अपने-अपने स्तर पर पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाने का राज्य सरकारों का फैसला हैरान करने वाला है। सामान्य-सी बात है कि जब भी पेट्रो उत्पादों पर कोई कर लगाया जाता है, तो किसी न किसी रूप में उसका असर आम जनता पर ही पड़ता है। कर लगाने का अभिप्राय ही जनता की जेब से पैसा खींचना है। हाल में कई राज्य सरकारें मूल्य वर्धित कर यानी वैट बढ़ा कर आम जनता पर भारी बोझ डालने की दिशा में बढ़ चली हैं।दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों ने अपने यहां पेट्रोल और डीजल पर वैट बढ़ा दिया है। इससे पहले असम और तेलंगाना भी यह कदम उठा चुके हैं। इन राज्यों में पेट्रोल दो रुपए और डीजल सात रुपए प्रति लीटर से भी ज्यादा महंगा हो गया है। दूसरे राज्य भी इसी नक्शेकदम पर चलने को तैयार बैठे हैं। हाल में केंद्र सरकार ने भी विशेष और अतिरिक्त उत्पाद शुल्क की मद में पेट्रोल पर दस और डीजल पर तेरह रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी का अप्रत्याशित फैसला किया है। ऐसे में यह आसानी से समझा जा सकता है कि इस बढ़ोतरी का बोझ किस पर पड़ेगा और खजाना किसका भरेगा।
इस वक्त पूरी दुनिया में कच्चे तेल का बाजार इतिहास की सबसे बड़ी गिरावट झेल रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले तीन महीने में कच्चा तेल छप्पन डॉलर से गिर कर बाईस डॉलर प्रति बैरल तक आ चुका है, यानी करीब साठ फीसद तक की गिरावट। अप्रैल में भारत की तेल कंपनियों ने उन्नीस डॉलर प्रति बैरल के भाव से कच्चा तेल खरीदा था। ऐसे में भी पेट्रोल और डीजल के दाम नहीं घटाने का तेल कंपनियों का फैसला सवाल खड़े करता है।आज भी पेट्रोल और डीजल के दाम कमोबेश वहीं के वहीं बने हुए हैं जहां दो-तीन महीने पहले थे। उल्टे, अपना खजाना भरने के लिए राज्य सरकारों ने वैट बढ़ाने जैसा जनविरोधी फैसला करने में कोई संकोच नहीं किया। सवाल है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारी गिरावट का आमजन को कोई फायदा क्यों नहीं मिलना चाहिए।ऐसा पहली बार हुआ है जब केंद्र ने पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क एक साथ इतना ज्यादा बढ़ाया है। हालांकि कहा यह जा रहा है कि इससे इनके खुदरा दामों पर कोई असर नहीं होने वाला और इस बोझ को तेल कंपनियां सस्ते दाम में समायोजित करेंगी, यानी सस्ते दाम के फायदे का एक हिस्सा सरकार के खजाने में पहुंचेगा। यह सही है कि अभी देश कोरोना महामारी संकट और इससे अचानक बिगड़े आर्थिक हालात से निपटने में लगा है, केंद्र और ज्यादातर राज्यों की माली हालत किसी से छिपी नहीं है।
इसलिए राज्य राजस्व जुटाने के लिए पेट्रो उत्पाद और शराब का ही सहारा लेने को मजबूर हैं। राज्यों की चिंता अभी यह नहीं है कि पेट्रोल-डीजल महंगा से होने से महंगाई बढ़ेगी, बल्कि उनकी फिक्र जैसे-तैसे पैसा जुटाने की है, ताकि सरकार के जरूरी काम चल सकें।
लेकिन सरकारों को यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि पेट्रोल-डीजल महंगा होने का सीधा और पहला असर माल-ढुलाई पर पड़ता है और रोजमर्रा की जरूरत वाली चीजें महंगी होती हैं। इस वक्त लोगों के पास वैसे ही पैसे नहीं हैं, घर चलाना मुश्किल हो रहा है, ऐसे में पेट्रोल-डीजल महंगा होने से आमजन की कमर और टूटेगी।
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