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योग करने का तभी लाभ होगा जब हमारी सोच सकारात्मक हो : डॉ नीतू जैन

महर्षि पंतजलि ने कहा है की मन की एकाग्रता व कर्म कि कुशलता ही योग है :रामदुलार यादव


 


साहिबाबाद : 21 जून 2020 को लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट द्वारा आयोजित “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” के अवसर पर मानव जाति को शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ्य रखने के लिए ज्ञानपीठ केन्द्र 1, स्वरुप पार्क जी0टी0 रोड


साहिबाबाद के प्रांगण में डा0 नीतू जैन प्राकृतिक चिकित्सक के मार्ग दर्शन में योग के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए, योग की विधि, करने के लाभ के बारे में बताया तथा योगाभ्यास करवाया गया| इस अवसर पर उन्होंने कहा कि योग करने से हमें तभी लाभ होगा, जब हमारी सोच सकारात्मक होगी, हम अपने परिवार, समाज तथा देश में प्रेम पैदा कर सद्भाव, भाईचारा कायम करेंगें,


यदि हम नकारात्मक विचार अपने मन में लायेंगें भेदभाव, नफ़रत का वातावरण पैदा करेंगे तो हम चाहे जितना भी योग कर लें इसका कोई किसी प्रकार का लाभ हमें नहीं मिलेगा, उन्होंने कहा कि हम जो भी आसन करें शुरू में हमारा शरीर जितना सहन कर ले आसानी से उतना ही करें, ज्ञानपीठ पर स्कन्ध आसन, वज्रासन,


मुद्रायें, कलर थैरपी, योगा, प्राणायाम, भुजंगासन, एक्यूप्रेशर के बारे में विस्तार से चर्चा कर इनके लाभ भी बताये| स्कन्ध आसन हमारे सभी जोड़ों और मांसपेशियों को, वज्रासन पाचन तन्त्र को, मुद्रायें शक्ति वर्धक है, प्राणायाम प्राण शक्ति को बढाता है, भुजंगासन से ब्लड शुगर, वजन कम करने में, एक्यूप्रेशर से हमारी सारी बीमारी प्राकृतिक रूप से ठीक होने लगाती है| उन्होंने कहा कि हमें समाज में सन्देश देना स्वस्थ्य शरीर में ही स्वस्थ्य दिमाग रहता है| इन उपरोक्त क्रिया को करने की ओर लोगों को प्रेरित करें, इससे सकारात्मक उर्जा प्राप्त होती है|


  लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट के अध्यक्ष राम दुलार यादव ने डा0 नीतू जैन का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि “महर्षि पतंजलि” सबसे पहले ऋषि हैं जिन्होंने भारत में योग के बारे में विस्तार से बताया, उनका मानना था कि “चित्त वृत्ति निरोध: योग:” मन को साधना ही योग है, चंचल मन को एकाग्र करना, इधर, उधर भटकने न देना, किसी एक वस्तु में स्थिर करना ही योग है, महर्षि ने अष्टांग योग, यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि एक सूत्र दिया कि कर्म की कुशलता का नाम भी योग है, योग: कर्मसु, कौशलम| महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” ने “वह तोडती पत्थर” कविता में योग की इसी विधि का चित्रण किया है, उन्होंने लिखा है कि श्रमिक महिला एकाग्रचित हो काम कर रही है: 


                             वह तोड़ती पत्थर, 


                                   मैंने देखा, उसे इलाहाबाद के पथ पर,


                                  श्याम, तन, वर वधा यौवन, नत नयन, प्रिय कर्मरत मन, 


                             गुरु हथौड़ा, हाथ करती बार-बार प्रहार, 


                                                  वह तोड़ती पत्थर,  


   हमें जिस काम पर लगाया जाय उसे कुशलता पूर्वक करना चाहिए तभी परिणाम अच्छा होगा, योग दिवस पर मै आप सभी का धन्यवाद करता हूँ| प्रमुख रूप से डा0 नीतू जैन प्राकृतिक चिकित्सक, संजू शर्मा, दयाल शर्मा, पूनम तिवारी, अमर बहदुर यादव, हरिशंकर यादव, विजय भाटी, राम दुलार यादव, शम्भू यादव उपस्थित रहे|


                                                                                   


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