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माता नरेन्द्र बब्बर की श्रद्धाजंलि सभा वैदिक साधन आश्रम में सम्पन्न

-कीर्तिशेष माता नरेन्द्र बब्बर की श्रद्धांजलि सभा-


 


94 वर्षीय माता नरेन्द्र बब्बर विगत 26 वर्षों से वैदिक साधन आश्रम तपोवन में निरन्तर निवास कर रही थीं। इससे पूर्व वह व्यास आश्रम हरिद्वार में निवास करती थी। माता जी ने तपोवन आश्रम में सन् 1965 के लगभग आना आरम्भ किया था। रेलवे विभाग से अपने पति की सेवा निवृत्ति के बाद यह दम्पत्ति आश्रम में रहने लगे और पतिदेव की मृत्यु के बाद भी माताजी आश्रम में रहती रहीं। माता जी एक साधिका का जीवन व्यतीत कर रहीं थीं। इस समय माता जी की आयु 94 वर्ष 4 माह थी। माता जी आश्रम की सभी गतिविधियों में भाग लेती थी। साधना, स्वाध्याय एवं यज्ञों सहित विद्वानों के उपदेश सुनने में माता जी की विशेष रुचि थी। आश्रम निवासियों तथा आश्रम मे ंआने वाले आगन्तुकों के प्रति भी माता जी स्नेहपूर्ण व्यवहार करती थी। दिनांक 12-7-2020 को माता जी का अपने पुत्र श्री अश्विनी बब्बर जी के दिल्ली-गुड़गांव स्थित निवास पर निधन हो गया था। दिल्ली में दिनंाक 13-7-2020 को उनका वैदिक रीति से अन्तिम संस्कार किया गया। बृहस्पतिवार दिनांक 16-7-2020 को उनके पुत्र अश्विनी बब्बर जी अपने पुत्र-पुत्री व पारिवारिक जनों के साथ वैदिक साधन आश्रम तपोवन पधारे। उन्होंने माता जी की स्मृति में आश्रम की पर्वतीय ईकाई जो वनों से आच्छादित है, वहां तीन आम्र के वृक्ष लगाये तथा मुख्य आश्रम में भी अंजीर का एक वृक्ष लगाया। इसके बाद आश्रम में माता जी के प्रति एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया जिसमें कुछ लोग उपस्थित हुए।


 


आश्रम के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी ने गायत्री मंत्र का पाठ कराकर सभा को आरम्भ किया। उन्होंने बताया कि माता जी आश्रम में लगभग 30 वर्ष तक रहीं। माता जी विदुषी महिला थी। ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज माता जी के मन व जीवन में बसते थे। शर्मा जी ने कहा कि उन्होंने माता जी को देहरादून में अनेक अवसरों पर यज्ञों की ब्रह्मा के रूप में प्रतिष्ठित देखा। उनका मन्त्रोच्चार बहुत शुद्ध था। दूसरे लोग मन्त्रोच्चार तथा कर्मकाण्ठ की विधियों में गलती करते थे तो माता जी उन्हें मन्त्र का शुद्ध उच्चारण सिखाती थी। शर्मा जी ने कहा कि माता जी को उन्होंने 20 वर्ष पूर्व अखिल भारतीय महिला आश्रम, देहरादून के उत्सव में यज्ञ की ब्रह्मा के रूप में देखा था। उनका माता जी से पहला परिचय वहीं पर हुआ था। शर्मा जी वैदिक साधन आश्रम से सन् 2006 से जुड़े। तब से वह निरन्तर माता जी से मिलते रहे और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते रहे। शर्मा जी ने कहा कि माता जी सरल हृदय की महिला थी। माता जी सभी आश्रमवासियों तथा ऋषिभक्तों का सम्मान करती थीं। माता जी समय समय पर शर्मा जी को अपने कक्ष में ले जाकर चाय बनाकर भी पिलाती थीं। माता जी का ऐसा व्यवहार सभी लोगों के प्रति था। उन्होंने कहा कि माता जी की स्मृति लम्बे समय तक उनके मन व मस्तिष्क में बनी रहेगी। 


 


इसके बाद देहरादून के एक कालेज के सेवानिवृत प्रवक्ता श्री मिश्रा जी ने श्रद्धांजलि सभा को सम्बोधित किया। श्री मिश्रा ने कहा कि मेरा माता जी से विशेष परिचय तो नहीं रहा परन्तु मैं जब जब आश्रम आता था तब तब माता जी के दर्शन करता था। इस प्रकार मेरा उनसे 2-3 वर्षों से सम्पर्क व परिचय था। उन्होंने कहा कि माता जी का जीवन वेद एवं समाज के लिए समर्पित था। उन्होंने बताया कि जब भी कोई व्यक्ति यज्ञ करते समय किसी प्रकार की त्रुटि करता था तो माता जी उसको टोकती थी। माता जी को कर्मकाण्ड का ज्ञान व अनुभव था तथा वह कर्मकाण्ड को शुद्ध रीति से करने की पक्षधर थी। मिश्रा जी ने बताया कि माता जी को मस्तिष्क आघात आने से कुछ दिन पूर्व वह अरोड़ा जी से मिलने आश्रम आये थे। तब वह माता जी से भी मिले थे। माता जी ने उनका व परिवार का कुशल क्षेम पूछा था। माता जी की इस 94 वर्ष की आयु में स्मरण शक्ति बहुत अच्छी थी। वह किसी बात को भूलती नहीं थी। 94 वर्ष की आयु में स्मृतियों का बने रहना आश्चर्यजनक है। श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी ने इसके बाद अपना एक संस्मरण प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि कुछ वर्ष पूर्व उनके निवास पर वेद पारायण यज्ञ हो रहा था। आर्यसमाज के एक पुरोहित वहां यज्ञ करा रहे थे। माता जी ने उनका मन्त्रोच्चार अशुद्ध होने पर उन्हें टोका था। इसके बाद माता जी ने ही मन्त्रपाठ किया था। शर्मा जी ने कहा कि माता जी का वेद पाठ बहुत शुद्ध था। शर्मा जी ने बताया कि माता जी ने एक इण्टर कालेज की प्रधानाचार्या निर्मला शर्मा जी को वेद पाठ करना सिखाया था। शर्मा जी ने कहा कि माता जी ने जीवन में अनेक विद्वानों के उपदेश सुने व यज्ञों में भाग लिया। उन्होंने जो सुना व देखा, उसे अपने जीवन में धारण किया था। 


 


आश्रम के पुरोहित वा धर्माचार्य पं. सूरतराम जी ने कहा कि मरने के बाद भी जीवात्मा का जन्म होता है। उन्होंने कहा कि जन्म लेना उसका सफल होता है जो अपने वंश एवं कुल का देश व समाज में यश स्थापित करता है। पं. सूरत राम जी ने कहा कि माता जी के परिवार ने उनकी निष्ठापूर्वक पूरे मनोयोग से सेवा की। परिवार के वृद्ध लोगों की सेवा करने पर बच्चों को जो आशीर्वाद मिलता है वह अवश्य रंग लाता है। आचार्य सूरत राम जी ने प्रश्न किया संसार में सच्चा लाभ क्या है? इसका उत्तर देते हुए उन्होंने बतया कि गुणी विद्वानों की संगति करना ही जीवन में लाभ कहलाता है। माता जी कहा करती थी कि उन्होंने जो सीखा है वह विद्वानों की संगति व उनको सुनकर सीखा है। पं. सूरत राम जी ने बताया कि आर्यसमाज के यशस्वी संन्यासी, आश्रम के संस्थापक सदस्य व प्रेरक महात्मा आनन्द स्वामी जी माता जी को इस आश्रम में लाये थे। माता जी अपने पति के रेलवे विभाग में सेवाकाल के दिनों में अजमेर में रहीं और वहां परोपकारिणी सभा से जुड़ी रहीं। वहां भी वह यज्ञ एवं उपदेशों में भाग लेती थी। आचार्य जी ने यह भी बताया कि माता जी को स्वामी विद्यानन्द विदेह जी व उनके उपदेशों के प्रति गहरी श्रद्धा व आस्था थी। 94 वर्ष की आयु में भी उनका मन्त्रोच्चार शुद्ध था। वह सबको यज्ञ करने तथा स्वाध्याय करने की प्रेरणा किया करती थी। उन्होंने कहा कि माता जी सबको प्रातः व सायं दोनों समय यज्ञ करने की प्रेरणा किया करती थी। माता जी का जीवन सबके लिये प्रेरणादायक है। आचार्य जी ने यह भी बताया कि वह तथा आचार्य आशीष जी जब भी कहीं बाहर जाते थे तो माता जी उन्हें नाश्ता कराती थी और रास्ते के लिये भोजन बनाकर भी देती थी। 


 


श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी ने बताया कि 94 वर्ष की आयु में भी माता जी स्वाध्याय किया करती थी। आश्रम में जो भी कार्यक्रम हुआ करते थे उसमें वह बैठा करती थी। वह बताती थी कि उनकी नई बातों को जानने की इच्छा है जिस कारण वह सभी विद्वानों के प्रवचनों को ध्यान सुना करती थी। शर्मा जी ने माता जी के पुत्र श्री अश्विनी बब्बर जी को अपने परिवार में वैदिक परम्पराओं को बढ़ाने की प्रेरणा की। इसके बाद इन पंक्तियों के लेखक मनमोहन कुमार आर्य ने भी माता जी को अपनी श्रद्धांजलि दी। 


 


माता नरेन्द्र बब्बर जी के सुपुत्र श्री अश्विनी बब्बर जी ने भी सभा को सम्बोधित किया। उनका गला भर आया जिससे वह कुछ बोल नहीं सके। वह बोलने की कोशिश करते रहे परन्तु बोल नहीं पाये। अन्त में उन्होंने कहा कि आप सबने आश्रम में माता जी को बहुत प्रेम दिया है। मैं आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद करता हूं। इसके बाद श्री ज्ञानचन्द अरोड़ा जी ने भी माता जी को अपनी कविताओं में बहुत ज्ञानवर्धक बातें कहते हुए श्रद्धांजलि दी। अन्त में पं. सूरत राम जी ने शान्ति पाठ कराया। कार्यक्रम में आश्रमवासी एवं कुछ माता जी के भक्त उपस्थित थे। ओ३म् शम्।


 


-मनमोहन कुमार आर्य


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