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मजदूरों पर बढ़ते उत्पीड़न और सरकार के मजदूर विरोधी कदमों के खिलाफ ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं ने श्रम कार्यालय नोएडा पर प्रदर्शन कर दिया ज्ञापन

नोएडा केंद्र व प्रदेश सरकार द्वारा उद्योगपतियों के पक्ष में मजदूर विरोधी श्रम कानूनों में किए जा रहे संशोधनों कार्य के घंटे बढ़ाने और कोविड-19 महामारी की आड़ में श्रमिकों के मौलिक अधिकारों पर किए जा रहे हमले के विरोध में 3 जुलाई 2020 को ट्रेड यूनियनों ने संयुक्त रूप से देशव्यापी विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया गया। उक्त आह्वान के तहत नोएडा में इंटक, एटक, एच एम एस, सी आई टी यू, एक्टू, यूटीयूसी, यू पी एल एफ, नोएडा कामगार महासंघ, आई सी टी यू, आदि ट्रेड यूनियनों के कार्यकर्ताओं ने श्रम कार्यालय सेक्टर 3 नोएडा पर प्रदर्शन कर उप श्रम आयुक्त श्री पी के सिंह को प्रधानमंत्री भारत सरकार और मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश सरकार को संबोधित ज्ञापन सौंपा।


प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए ट्रेड यूनियन नेता संतोष तिवारी, नईम अहमद, आरपी सिंह, राम सागर, राममिलन सिंह, सुधीर त्यागी, उदय चंद्र झा, रूद्र मणि पांडे, जितेंद्र कुमार, गंगेश्वर दत्त शर्मा ने कहां की श्रम कानूनो के बदलावों में सबसे ज्यादा खतरनाक बात यह है कि काम करने के घंटे को 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे करने का निर्णय लिया जा रहा है, कॉरपोरेट ताकतों को फायदा पहुंचाने के लिए मज़दूरों को मुफ्त में उन के हाथों में दिया जा रहा है, जो कि उन्हें आभासी दासता की ओर ले जाएगा, जब की वो पहले से ही तालाबंदी के कारण नौकरियों जाने, मजदूरी के नुकसान और बेदखली को झेल रहे हैं। उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र, बिहार और ओडिशा आदि दक्षिणपंथी राजनीतिक दलों भाजपा, कांग्रेस (आई), जेडीयू और बीजेडी के नेतृत्व वाली आठ राज्य सरकारे इस प्रभाव में लाने के लिए पहले ही अध्यादेश या कार्यकारी आदेश ला चुके हैं। , मध्य प्रदेश सरकार ने दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम में संशोधन किया है ताकि सुबह 6 बजे से रात 12 बजे तक दुकानें खोले।


वक्ताओं ने कहा कि विश्व आर्थिक मंदी और कोरोना लॉकडाउन के इस समय के दौरान स्पेन, इटली व ब्रिटेन सहित विभिन्न पूंजीवादी देशों में स्वास्थ्य, परिवहन, रेलवे जैसे विभिन्न क्षेत्रों के समाजीकरण की मौजूदा प्रवृत्ति के विपरीत, मोदी सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था को नकारा निजीकरण के चरम दक्षिणपंथी सुधारों की ओर धकेल रही है उसकी शाख को खतरे में डाल कर । यह आरएसएस-भाजपा गठबंधन की राजनीति की अंतर्राष्ट्रीय वित्त पूंजी के प्रति दासता को दर्शाता है।


ऐसे समय में जब कॉरपोरेट कॉरिडोर के भीतर भी समझदार लोग उद्योग और बाजार को बढ़ावा देने के लिए, मेहनतकश वर्गों की क्रय शक्ति को बढ़ाने के लिए उन के हाथों में सीधे नकद हस्तांतरण की आवश्यकता व्यक्त कर रहे हैं, अनुसंधान एवं विकास, रेलवे और रक्षा क्षेत्र सहित सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण के लिए कानून लाया जाना, पहले से ही डूबती भारतीय अर्थव्यवस्था को तबाह कर देगा।


उन्होंने मांग करते हुए कहा कि सभी गैर-करदाता परिवारों के लिए लॉकडाउन अवधि के दौरान 7500 रुपये प्रति माह नकद हस्तांतरण करने, सभी प्रवासी श्रमिकों को उनके घर तक पहुंचने के लिए मुफ्त परिवहन प्रदान करें, सभी के लिए भोजन सुनिश्चित करें, राशन के सार्वभौमिक वितरण, सभी को मजदूरी का और रोजगार की कोई छंटनी पर रोक और सभी के लिए मजदूरी का वितरण, सभी खेत मजदूरों के लिए 300 रुपये प्रति दिन मजदूरी के साथ 200 कार्य दिवस,जनपद के मजदूरों की लंबित समस्याओं का समाधान कराने सहित विभिन्न मांगों को रखा।


ट्रेड यूनियन ने प्रधानमंत्री को चेतावनी दी है कि अगर न्यूनतम मजदूरी और न्यूनतम फसल मूल्य के अधिकारों के लिए कॉरपोरेट हाउंड को रोकने की मांग पर ध्यान नहीं दिया गया तो मजदूर वर्ग और किसान दोनों मिल कर तीखे संघर्ष को छेड़ेगे। भारत के लोग जो बहादुराना संघर्षों के माध्यम से ब्रिटिश साम्राज्यवादी शासन को उखाड़ने वाली गौरवशाली परंपरा के वारिश है, कभी भी आरएसएस-भाजपा समर्थित मोदी सरकार को उन द्वारा कड़े संघर्षो से अर्जित मौलिक अधिकारों को छीनने की अनुमति नहीं दे।


 


 


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