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मिडिल क्लास को व्हाट्स ऐप मीम और टीवी की ग़ुलामी के अलावा कुछ नहीं चाहिए

दिल्ली : यह बात गलत है कि मिडिल क्लास को कुछ नहीं मिल रहा है। व्हाट्स ऐप मीम और गोदी मीडिया के डिबेट से उसका पूरा ख्याल रखा जा रहा है। उसके बच्चों की शिक्षा और नौकरियों पर बात बंद हो चुकी है। ताकि वे मीम का मीमपान कर सकें। उसके भीतर जितनी तरह की धार्मिक और ग़ैर धार्मिक कुंठाएं हैं, संकीर्णताएं हैं उन सबको खुराक दिया गया है। जिससे वह राजनीतिक तरीके से मानसिक सुख प्राप्त करता रहा है। ख़ुद यह क्लास मीडिया और अन्य संस्थाओं के खत्म करने वाली भीड़ का साथ देता रहा, अब मीडिया खोज रहा है। मिडिल क्लास में ज़रा भी खुद्दारी बची है तो उसे बिल्कुल मीडिया से अपनी व्यथा नहीं कहनी चाहिए। उसे सिर्फ मीम की मांग करनी चाहिए।"


 


 अमरीका में 36,000 पत्रकारों की नौकरी चली गई है या बिना सैलरी के छुट्टी पर भेज दिए गए हैं या सैलरी कम हो गई है। कोविड-19 के कारण। इसके जवाब में प्रेस फ्रीडम डिफेंस फंड बनाया जा रहा है ताकि ऐसे पत्रकारों की मदद की जा सके। यह फंड मीडिया वेबसाइट दि इंटरसेप्ट चलाने वाली कंपनी ने ही बनाया है। इस फंड के सहारे पत्रकारों को 1500 डॉलर की सहायता दी जाएगी। एक या दो बार। इस फंड के पास अभी तक 1000 आवेदन आ गए हैं।


 


वैसे अमरीका ने जून के महीने में 100 अरब डॉलर का बेरोज़गारी भत्ता दिया है। अमरीका में यह सवाल उठ रहे हैं कि सरकार को बेरोज़गारों की संख्या को देखते हुए 142 अरब डॉलर खर्च करना चाहिए था ।


 


भारत का मिडिल क्लास अच्छा है। उसे किसी तरह का भत्ता नहीं चाहिए। बस व्हाट्स एप में मीम और वीडियो चाहिए। टीवी पर गुलामी।


 


भारत में एडिटर्स गिल्ड, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को कम से कम सर्वे तो करना ही चाहिए कि कितने फ्री-लांस, पूर्णकालिक, रिटेनर, स्ट्रिंगर, अंशकालिक पत्रकारों की नौकरी गई है। सैलरी कटी है। उनकी क्या स्थिति है। इसमें टेक्निकल स्टाफ को भी शामिल किया जाना चाहिए। पत्रकारों के परिवार भी फीस और किराया नहीं दे पा रहे हैं।


 


 


 


ख़ैर ये मुसीबत अन्य की भी है। प्राइवेट नौकरी करने वाले सभी इसका सामना कर रहे हैं। एक प्राइवेट शिक्षक ने लिखा है कि सरकार उनकी सुध नहीं ले रही। जैसे सरकार सबकी सुध ले रही है। उन्हीं की क्यों, नए और युवा वकीलों की भी कमाई बंद हो गई है। उनकी भी हालत बुरी है। कई छोटे-छोटे रोज़गार करने वालों की कमाई बंद हो गई है। छात्र कहते हैं कि किराया नहीं दे पा रहे हैं।


 


इसका मतलब यह नहीं कि 80 करोड़ लोगों को अनाज देने की योजना का मज़ाक उड़ाए। मिडिल क्लास यही करता रहा। इन्हीं सब चीज़ों से उसके भीतर की संवेदनशीलता समाप्त कर दी गई है। जो बेहद ग़रीब हैं उन्हें अनाज ही तो मिल रहा है। जो सड़ जाता है। बल्कि और अधिक अनाज मिलना चाहिए। सिर्फ 5 किलो चावल और एक किलो चना से क्या होगा।


 


यह बात गलत है कि मिडिल क्लास को कुछ नहीं मिल रहा है। व्हाट्स ऐप मीम और गोदी मीडिया के डिबेट से उसका पूरा ख्याल रखा जा रहा है। उसके बच्चों की शिक्षा और नौकरियों पर बात बंद हो चुकी है। ताकि वे मीम का मीमपान कर सकें। उसके भीतर जितनी तरह की धार्मिक और ग़ैर धार्मिक कुंठाएं हैं, संकीर्णताएं हैं उन सबको खुराक दिया गया है। जिससे वह राजनीतिक तरीके से मानसिक सुख प्राप्त करता रहा है।


 


 


 


 


 


ख़ुद यह क्लास मीडिया और अन्य संस्थाओं के खत्म करने वाली भीड़ का साथ देता रहा, अब मीडिया खोज रहा है। उसे पता है कि मीडिया को खत्म किए जाने के वक्त यही ताली बजा रहा था।मिडिल क्लास में ज़रा भी खुद्दारी बची है तो उसे बिल्कुल मीडिया से अपनी व्यथा नहीं कहनी चाहिए। उसे सिर्फ मीम की मांग करनी चाहिए। कुछ नहीं तो नेहरू को मुसलमान बताने वाला मीम ही दिन बार तीन बार मिले तो इसे चैन आ जाए।


 


खुद्दार मिडिल क्लास को पता होना चाहिए कि प्रधानमंत्री ने उसका आभार व्यक्त किया है। ईमानदार आयकर दाताओं का अभिनंदन किया है। ऐसा नहीं है कि आप नोटिस में नहीं हैं। -रवीश कुमार


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