गाजियाबाद। गाजियाबाद नगर निगम के कुछ भ्रष्ट अधिकारियों के बल पर, डूंडाहेड़ा थाना विजय नगर क्षेत्र अंतर्गत लगभग 500 वर्ग गज जमीन स्थानीय बिल्डर को गुप्त आर्थिक करार के आधार पर सौपी जा चुकी है। विश्वस्त सूत्र एव प्राप्त साक्ष्य के अनुसार डूंडाहेड़ा के विभिन्न खसरा संख्याओं से लगभग 500 वर्ग गज जमीन स्थानीय बिल्डर की शक्ति एव नगर निगम प्रशासन की नपुंसकता का जीता जागता प्रमाण है किन्तु, स्थानीय सूत्रों की माने तो, स्थानीय बिल्डर ने क्षेत्रीय सुपरवाइजर से लेकर नगर निगम के कुछ उच्च अधिकारियों तक, सभी के पैरों में, रिश्वत के घुँघरू पहनाकर, अनारकली की तरह सल्तनत ए बिल्डर दरबार मे ठुमके लगाने पर विवश कर दिया है। इतना ही नहीं थाना विजय नगर क्षेत्र अंतर्गत बिहारी पूरा में नगर निगम की भूमि पर दबंग भू- माफियाओं ने जबरन कब्जा कर भव्य सुंदर बाजार एव घनी आबादी बसा दी किन्तु, सूत्रों के अनुसार, नगर निगम के सक्षम अधिकारी सर से लेकर पाँव तक रिश्वत की चादर लपेटे, धृतराष्ट्र की तरह हस्तनापुर की लुटती हुई मर्यादा का तमाशा देखते रहे। वर्ना क्या वजह हो सकती है कि, जिलाधिकारी गाजियाबाद, उपजिलाधिकारी गाजियाबाद, तहसीलदार एव लेखपाल की आख्या लगाने के उपरान्त भी, नगर निगम से अपनी ही जमीन नहीं खाली नहीं करवाई जा सकी कदाचित, ये नगर निगम का बिल्डर के प्रति, ठीक वैसा ही प्रेम हो सकता है जैसा कि द्वापर में ज्येष्ठ कुंतेय कर्ण ने दुर्योधन से ऋण के वसीभूत किया था। कर्ण को अपने मित्र दुर्योधन में कोई बुराई नहीं दिखाई देती थी, यदा -कदा कर्ण की आँखों मे दुर्योधन की बुराई आ भी गयी तो वह दुर्योधन से मिले राज्य अंग के वसीभूत, चाहकर भी दुर्योधन के विरुद्ध नहीं जा सकता था। बहराल, डूंडाहेड़ा ही नहीं अपितु, बिहारीपुरा में भी सैंकड़ों एकड़ नगर निगम की भूमि दबंग माफियाओं के कदमों में पड़ी, रिश्वत नामक दूतक्रीड़ा में सबकुछ हार चुके, निगम के अधिकारियों की तरफ द्रोपदी की ही तरह ललचायी आंखों से निहार रही है किंतु, निगम के अधिकारी अस्त्र शस्त्र रखे सर झुकाकर दबंग बिल्डर एव माफियाओं की ओर निहारते हुये याचना कर रहे हैं कि, उन पर दया की जाये एव निगम की पंचाली अर्थात नगर निगम की भूमि का चीर हरण रोक दिया जाये। क्या सच में नगर निगम भू माफियाओं के चुंगल से अपनी भूमि को मुक्त करवा पायेगा? यह सचमुच चिंतन एव प्रतीक्षा का विषय है।
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