दिल्ली : चाहे कोई भी देश हो मानव श्रम के नियोजन की समस्या सभी देशों में है जिन देशों का मानव श्रम का नियोजन सबसे अच्छा है वो विकसित देश है जिनका मानव श्रम का नियोजन ख़राब है वो विकास शील देश है मानव श्रम का अपव्यय ज्यादातर विश्वास प्रथाओ परंपराओं के कारण होता है जानवर को आप जबरदस्ती पीटकर भी काम करवा सकते हो क्योकि उसमे कोई चेतना नहीं होती लेकिन मनुस्य से केवल नियोजन के द्वारा उचित मार्गदर्शन व समायोजन के द्वारा ही काम करवाया जा सकता है
भारतीय बेरोजगारी सबसे अधिक मानव श्रम के कुसमायोजन का परिणाम है भारत में आज इतने संसाधन है कि 125 करोड़ लोगों के लिए शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार की सारी आवस्यकताएँ पूरी की जा सकती है लेकिन
मानव श्रम व संसाधनों का ऐसा दुष्चक्र भारत में बना हुवा है की जो मेहनत करता है उसे पूरी मजदूरी नहीं मिलती है और जो किसी प्रकार का कोई काम नहीं करता वो बेईमानी करके समाज को लूट लेता है और इस दुष्चक्र को और भी भयंकर बना देता है ..
आजहमारे देश की हालत ऐसी है की हमारे देश के लोग पैसा कमाकर उसे रीतियों प्रथाओ और परम्पराओ और धार्मिक कर्म कांडो पर खर्च करते है उन्हें न तो अपने जीवन से न ही आने वाली पीढ़ियों के जीवन से कोई सरोकार नहीं है
ब्रिटेन की संसद में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब बजट पेश किया जा रहा था तो बजट की सारी मदों में कटौती की गयी लेकिन शिक्षा के मद में कोई कटौती नहीं की गयी और जब सांसदों ने विरोध किया तो खुद प्रधानमंत्री ने कहा की पूल अगर टूट गए है लड़ाई में तो दुबारा बनाये जा सकते है लेकिन एक पीढ़ी अगर बगैर शिक्षा के तबाह हो गयी तो उसे फिर नहीं बनाया जा सकता
शिक्षा ही समाज की नींव होती है शिक्षा एक ऐसा हथियार है जिससे क्रांति की जा सकती है समाज में आमूल चूल परिवर्तन किया जा सकता है नया समाज बनाया जा सकता है
ठीक इसी प्रकार भारतीय संसद में शिक्षा के बजट को लेकर कोई बात ही नहीं होती है हमारी कितनी ही पीढ़ियां अब तक तबाह हो चुकी है और आगे कितनी होगी ये कहा नहीं जा सकता
और बेरोजगारी का भी मूल कारन अशिक्षा ही है भारत के लगभग 90% शिक्षित लोग उस क्वालिटी शिक्षा से बहुत दूर है जो रिसर्च करके कुछ नया ज्ञान पैदा किया जा सके और समाज को विकसित किया जा सके भारतीय बेरोजगार कहलाना केवल एक मजबूरी के सिवा कुछ भी नहीं है युवाओं के पास शिक्षा भी है लेकिन संसाधन के नाम पर कुछ भी तो नहीं शुरुआत करे तो कैसे करे
और भारतीय बेरोजगारी केवल और केवल मानव श्रम की भयंकर बर्बादी है यहाँ शिक्षा काम रोजगारी बेरोजगारी लोकतंत्र धर्म और नौकरशाही साथ साथ चलते है और उसका प्रभाव यह होता है की कोई भी औसत भारतीय रोजगार तकनिकी रूप से कुशल हो ही नहीं पाता है और भारत के लगभग सभी लोग अपनी आजीवीका निर्वहन के लिए लगभग 5 प्रकार का औसत काम करते है जिनमे लघु उद्योग और अपनी सामाजिक व्यवस्था के कुछ काम धार्मिक काम और परम्पराये प्रमुख है ..
जब कोई भी औसत भारतीय टिककर एक भी काम नहीं करता है वो बहुत सारे काम एक साथ करता है तो उसकी दक्षता बिलकुल ही घट जाती है और वो कोई भी काम में व्यावसायिक रूप से कुशल नहीं हो पाता है और ढंग से नहीं कर पाता है और सबसे बड़ी मजबूरी यह हो जाती है की जिस काम में उसकी इच्छा है उसमे कोई मुनाफा या लाभ नहीं है तो उसे दूसरा काम भी करना पड़ता है मजबूरी में इसलिए भी बेरोजगारी का दुष्चक्र और भी भयानक और भयंकर हो जाता है
भारत का सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी का लगभग पूरा ही निवेश प्रथाओ परम्पराओं और धार्मिक विश्वासों पर ही होता है शिक्षा विज्ञानं नवाचार और भविस्य हमारा कुछ होता ही नहीं है
आज देश में लगभग 30 लाख करोड़ का विदेशी निवेश है क्योकि हमारी खुद की तो सारी पूँजी विश्वासों प्रथाओ और परम्पराओ में लगा है इसलिए fdi ही बचता है विकाश करने के लिए जो लोग पैसा लगाते है वो भारी मुनाफा भी कमाते है और अपने देस ले जाते है फेसबुक ट्विटर गूगल कंप्यूटर मोबाइल भारत के नहीं है लेकिन भारत में चल रहे है ट्विटर के ट्वीट को ज्यादा फ़ैलाने के पैसे लगते है और भारतीय नेताओ का पैसा सोशल मीडिया पर ज्यादा फोकस रहता है
हमारे अपने उद्योग और नवाचार हम कर ही नहीं पाते है क्योकि हम आजाद है आजाद लोगो का नियोजन बहुत मुश्किल होता है ..मानव श्रम की भयंकर बर्बादी होती है और बेरोजगारी पैदा हो जाती है
दुनिया में अगर कही नरक है तो वो भारतीय शिक्षित बेरोजगारों के पास है न तो वे पढाई छोड़कर कोई काम कर पाते है और न ही पूरी पढाई कर पाते है क्योकि सरकार का शिक्षा बजट तो लगातार घट रहा है और बेरोजगार शिक्षा के व्यापार में टिक ही नहीं पाते है और शिक्षा के व्यापार में पिछड़ जाते है प्रतियोगी परीक्षाओ में शिक्षा के व्यापार को नहीं समझ पाते है और असफल और निराश हो जाते है उन्हें हर वक्त अपने आत्म सम्मान और आत्म विश्वास से समझौता करना पड़ता है रिस्तेदार नातेदार परिवार यहाँ तक समाज भी उस बेरोजगार से सवाल करना सुरु कर देता है लेकिन उसका आत्म विश्वास इतना मर जाता है की सवाल तो उसे पूछना चाहिए उस गिरे हुवे समाज से लेकिन बेरोजगार इतना निराश हो जाता है की वो भीड़ भी उससे सवाल करती है जिसके पास कोई चेतना नहीं है चाहे ईमित्र से फॉर्म भरवाना हो फोटो स्टेट कराना हो विश्वविद्यालय के फॉर्म हो या प्रतियोगी परीक्षाओ के बेरोजगारों से भयंकर पैसे वसूले जाते है
कोचिंग क्लासेज हो या लाइब्रेरी हो किताब खरीदना हो बेरोजगारों का बहुत ही बूरा हाल होता है लेकिन फिर भी वो हिम्मत नहीं हारता है प्रतियोगी परीक्षा देने धक्के खा खा कर 300 400 किलोमीटर दूर जाता है
और इन सभी बातो का अगर सार निकाला जाये तो केवल मानव श्रम का कुसमायोजन है मानव श्रम की बर्बादी है वो नौकरशाही भी कोई काम की नहीं हो सकती जिसमे भर्ती होने के लिए 400 किलोमीटर दूर जाकर सवालों के जवाब देने पड़ते है भारत के सारे नेता तो समाज से कटे हुवे है उन्हें पता नहीं है लाल और हरी मिर्च का तो बेरोजगारी क्या होगी उन्हें तो कुछ भी पता नहीं है उनका ऐस और आराम दिनों दिन बढ़ रहा है बेरोजगार तो किसी दुसरे ग्रह के एलियन है उनके लिए तो ....और बेरोजगारी और बेरोजगारों की भीड़ उनके लिए कोई राजनितिक मुद्दा नहीं है
भले ही बेरोजगार शिक्षित हो लेकिन राजनितिक चेतना तो धर्म के कारण सोइ हुयी रहती है वे किसी से कोई सवाल नहीं पूछ पाते और खुद सवाल बनकर रह जाते है भारत में इतने संसाधन आज मौजूद है की सभी के लिए रोजगार पैदा किया जा सकता है लेकिन उन संसाधनों का भारत के ही लोगो ने ऐसा दुष्चक्र बनाया हुवा है की भारत के लोग केवल अपने मानव श्रम को बर्बाद ही करते है उसका ढंग से नियोजन करके किसी प्रकार का कोई नवाचार नहीं कर पाते ..
आज अमेरिका चीन रूस फ़िनलैंड नीदरलैण्ड जितने भी विकसित देस है उनकी अगर मानव श्रम नियोजन को लेकर तुलना की जाये तो भारत कहीं पर भी नहीं है इन विकसित देशों की विशेसता केवल इतनी सी है की ये लोग मानव श्रम का सुसमयोजित नियोजन करते है और शिक्षा व नवाचार पर अधिक निवेश करते है और रीतियों प्रथाओ परम्पराओ पर कम खर्च करते है
जबकि भारत इसका उल्टा करता है और बर्बादी के कगार पर खड़ा है और तो और जब भी कोई सुधार की बात करता है तो भारत को धर्म और अध्यात्म का देस कहकर बर्बाद होने की पैरवी करता है और सुधार का विरोध करता है ये भारत की सबसे बड़ी विडंबना है
बेरोजगारी के और भी कारण है जैसे जनसँख्या विस्फोट ..अगर भारत में भी 70 के दशक में नसबन्दिया नहीं हुयी होती तो आज भारत दुनिया का सबसे विकित राष्ट्र बन गया होता ..
आज उन नसबन्दियों के बावजूद जनसँख्या विस्फोट तेजी से हो रहा है .....जो भारत की सभी समस्याओ की मूल वजह है
इसके आलावा हमारी शिक्षा प्धति केवल सैद्वांतिक है व्यावहारिक बिलकुल भी नहीं है स्कूलों में बच्चो को सबसे पहले 3-4 भाषाएँ सिखाई जाती है फिर वो इतिहास पढ़ाया जाता है जो इतिहास इतिहास नहीं केवल एक रहस्य है ...और फिर बच्चो पर बचपन से ही धर्म के झूठे विश्वास और परम्पराये जबरदस्ती थोपी जाती है फिर उनके पास वैज्ञानिक चेतना विज्ञानं सच्चाई गणित और तर्क करने व समझने के लिए दिमाग में जगह ही नहीं बचती है
एक औसत भारतीय बचपन से ही सँघर्ष में ही होता है एक अजीब प्रकार का द्वंद्व उसके चारो और बना हुवा मिलता है और उस द्वंद्व का परिणाम ये होता है की कोई भी भारतीय अपने जीवन में सही निर्णय नहीं कर पाता है और पूरे समाज के ही अस्तित्व को चुनौती देना सुरु कर देता है .....
और अंत में मैं यही कहना चाहता हु की भारत को अगर विकसित देस बनाना है बेरोजगारी गरीबी भूखमरी को ख़त्म करना है तो इसका एक ही उपाय है मानव श्रम का सुसमयोजित नियोजन ........
और भारत में आज हो रही मानव श्रम की भयंकर बर्बादी को रोकना होगा ....
अगर आप भी राष्ट्र निर्माण में हमारे सहयोगी बनना चाहते हो तो हमारे ज्ञान को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे ताकि हम भी विकसित बन सके .....बेहतर समता मूलक समाज का निर्माण कर सके ....
नवरतन जांगिड़
(समाजशास्त्री)
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