एक काया आत्मा से विनती कर रही है हे आत्मा मेरी काया आपसे बहुत प्रेम करती है तू मुझे छोड़ कर ना चले जाना हे आत्मा मेरी काया की तभी तक कीमत है जब तक तू मेरे साथ है जब तक तू मेरे शरीर में है अगर तू चली गयी तो यह लोग दुनिया वाले मुझे फूक देंगे जला देंगे आत्मा ने कहा मैं मानती हूं कि तुम मुझे प्रेम करते हो मगर मैं हुकुम के अंदर हूं जब तक बुलावा नहीं आता मैं तेरे साथ हूं चाहे 70 साल हो जाएं या फिर 80 या इससे भी ज्यादा मगर जिस वक्त हुकम आ गया l
बुलावा आ गया तो मैं तुझे बताए बिना चली जाऊंगी इससे पूर्व भी मैं अनेको अलग-अलग काया में रह चुकी हूं जिंदगी और मौत परमात्मा को पता है कब तक किस काया के साथ रहना है ये परमात्मा को पता है मगर यह सब पढ़कर सुनकर भी हम जागते नहीं हमारे अंदर चेतना नहीं जागती इंसान अपने आप को कितना ताकतवर समझे वह भी निकलती की आत्मा को रोक नहीं पाता हम अच्छे कार्य करते हैं परमात्मा की वाणी का गुणगान करते हैं तब भी हमें मरना है धरती पर जिसने भी जन्म लिया उसे एक दिन जाना अवश्य है कब यह परमात्मा को पता है यह शरीर जो परमात्मा ने इंसान के रूप में दिया इस काया को अच्छे कामों में लगाएं सेवा करें मददगार बने सेवा के यह पल ही हमारे साथ जाने हैं इंसान की कीमत तभी तक है जब तक उसमें आत्मा निवास करती है ना तो यह शरीर हमारा है और ना ही यह आत्मा हमारा अधिकार दोनों पर नहीं इंसान को आत्मा से जुड़ कर रहना चाहिए शरीर की सेवा तो बहुत हो चुकी शरीर से नहीं आत्मा से प्यार करो यानी परमात्मा की इबादत परमात्मा की पूजा परमात्मा के बनाए जीवो से प्यार करना गरीबों की सेवा भूखे को खाना खिलाना सत्य के मार्ग पर चलना समाज में खुशियां बांटना यही सेवा करने वाले से परमात्मा भी प्रेम करता है बार-बार लिखता हूं यह शरीर नाशवान है इस शरीर से नहीं आत्मा से प्यार करो मनजीत छल कपट की जिंदगी त्याग दो हक मारना बंद करो लूट बंद करो क्यों यह सब साथ नहीं जाएगा यह शरीर जिस पर हम गर्व कर रहे हैं एक दिन साथ छोड़ जाएगा जब शरीर साथ छोड़ जाएगा तब होगी असली परीक्षा उस परीक्षा में पास होना चाहते हो तो सेवा करो सेवा ही उत्तम रा ह है परमात्मा तक पहुंच बनाने की दुनिया में बहुत सारे उदाहरण मिलते हैं महापुरुषों ने दुनिया त्यागने से पूर्व इस समाज को संदेश दे दिया था कि कल प्रातः हम शरीर त्याग देंगे उन महापुरुषों को परमात्मा के चरणों में निवास मिल गया उन्हें बार-बार तन नहीं बदलना पड़ता वह महापुरुष परमात्मा के हुकुम के मानने वाले हैं परमात्मा से उनकी दोस्ती होती है इसलिए उन्हें शरीर त्यागने का फर्क नहीं पड़ता आओ दुनिया को संदेश दे की आत्मा से प्यार करो शरीर की सेवा नहीं आत्मा से प्रेम करो आत्मा से प्रेम करो आत्मा से प्रेम करो ना काया हमारी है और ना उस में निवास करने वाली आत्मा सरदार मंजीत सिंह आध्यात्मिक एवं सामाजिक विचारक
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