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भले ही शारीरिक रूप से जिंदा हो पर हम जिंदा भी मरे के बराबर हैं और कुछ मर कर भी जिंदा रहते हैं: सरदार मंजीत सिंह

गाजियाबाद : दोस्तों हम भले ही शारीरिक रूप से जिंदा हो मगर हमारी जिंदगी का अगर किसी को कोई लाभ नहीं है तो हम मरे के बराबर ही है, और जिस इंसान ने सिमरन को ही अपनी जिंदगी का आधार बना लिया हो वो जिंदा रहते हैं, जिन्होंने सेवा को ही जिंदगी का मकसद बना लिया वह कभी मरते नहीं, वह मर कर भी जिंदा रहते हैं, दोस्तों रोजाना लाखों लाखों लोग जन्म लेते हैं और लाखों ही मर भी जाते हैं, उनमें चंद लोग ही ऐसे होते हैं जो मर कर भी जिंदा रहते हैं, जिन्हें लोग याद करते हैं जो लोगों के दिलों में बस जाते हैं नाम सिमरन जपने सेवा करने वाले ही चंद लोग जिंदा रह पाते हैं, दोस्तों अगर परमात्मा ने यह इंसानी जीवन दिया है जो इंसान बन दूसरों के काम आओ, दूसरों की मदद करो, गुरु ग्रंथ साहिब जी में दर्ज है नाम जपो जी, ऐसे ऐसे ध्रुव प्रह्लाद जपियो जैसे दोस्तों भले ही परमात्मा ने हमें पीर पैगंबर बनाकर ना धरती पर भेजा हो मगर हम अपने कर्मों से पीर पैगंबर भी बन सकते हैं, यह सब हमारे हाथ है एक इंसान जब जन्म लेता है तो उसको संस्कार कैसे मिलते हैं उन्हीं संस्कारों के साथ ही वह आगे बढ़ता है, जैसा माहौल उस को मिलता है वही सब सीखता है, और आज जैसा माहौल है समाज में स्वार्थ का लूट का धोखा फरेब का यही हम सीखते हैं, फिर उसी तर्ज पर जिंदगी जीने लगते हैं, बहुत कम परिवार होंगे जो खुद संस्कारी होंगे और आने वाली पीढ़ी को भी संस्कार देते होंगे,


पूर्व में लोग परमात्मा के अनेकों नामों में से एक नाम परिवार में हर बच्चे के जन्म पर रखते थे ताकि उसका नाम पुकारते पुकारते हम भवसागर से पार हो जाए, एक सिख दशम पिता गुरु गोविंद सिंह जी के दरबार में आया उसने अपनी गलतियों की माफी मांगना चाही गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा जब तेरे घर बालक होगा तो उसका नामकरण में रखूंगा जब बालक हुआ तो दशम पिता ने उसका नाम नारायण रख दिया, अब उस सिख के पाप नारायण नारायण पुकारते पुकारते हैं धुल गए, दोस्तों परमात्मा का सिमरन बंदगी करने वाला इंसान अपनी जिंदगी में मददगार भी बनता है, दोस्तों संगत में जाने वाला बैठने वाला इंसान ही दूसरों के दुख दर्द को समझता है! जब हम संगत में बैठेंगे ही नहीं है तो हम दूसरों की तकलीफों को जानेंगे कैसे अगर जानेंगे नहीं तो मदद कैसे करेंगे, इंसान अगर धरती पर आकर भी अगर परमात्मा से नहीं जुड़ेगा तो और फिर कौन सी ऐसी जूनि है जिसके पास सोच और समझ हो, इंसानी जीवन को सभी जूनों में उत्तम माना गया है, हम इस जीवन को जी कर अपनी एक छाप भी छोड़ सकते हैं ताकि लोग मरने के बाद भी याद करें अन्यथा आने और जाने को तो बहुत दुनिया आती है और चली जाती है, अगर आप में साधना नहीं परमात्मा से मिलाप नहीं तो आप भी उसी श्रेणी में ही आते हैं, दोस्तों अगर तुम परमात्मा के सिमरन से जुड़ोगे तो भूखे मर नहीं जाओगे तो दोस्तों पर ध्यान से सुन ले रिजक देने का वायदा परमात्मा का है परमात्मा ही हमारा लालन पालन करता है, परमात्मा की राह चलने वाला इंसान की सारी तकलीफें परमात्मा हर लेता है और वह व्यक्ति हमेशा खुश ही नजर आता है, वह दूसरों को देख जीवन नहीं जीता बलिक इन सब बातों से दूर सुकून में जिंदगी बसर करता है दुनिया के नफे नुकसान से दूर बिना टेंशन वाली जिंदगी जीने वाला परमात्मा की राह पर कदम रखते ही वह सब पा लेता है, *दोस्तों मैं आपका अच्छा दोस्त मनजीत बोल रहा हूं* तो परमात्मा की राह पर कदम रखें परमात्मा की राह पर कदम रखते आप की झोली खुशियों से भर जाती है, दोस्तों दुनियावी जिंदगी जीने वाला अगर इंसानियत वं इंसाफ की जिंदगी जीता है तो वह सुकून की जिंदगी बसर करता है, अगर हम परमात्मा से जुड़ते हैं तो हम दूसरे लोगों के लिए भी जीवन जीते हैं और दूसरों के लिए जीवन जीने वाला व्यक्ति ही मर कर भी जिंदा रहता है, तो दोस्तों इंसान वही जो मर कर भी जिंदा रहे परमात्मा की राह नामक किताब का एक पन्ना आपके पास भेज रहा हूं पढ़ें और परमात्मा से जुड़े हैं यकीनन परमात्मा आप पर मेहरबान होगा ! और इंसानी जीवन जो मिला है उसका भरपूर आनंद उठाते हुए आप लोगों के बीच मददगार बनकर रहेंगे इस लेख को अगर आप पढ़ते हैं यकीनन पढ़ने के बाद आप परमात्मा से अवश्य जुड़ना चाहेंगे, आपका अच्छा दोस्त मनजीत सरदार मंजीत सिंह आध्यात्मिक एवं सामाजिक विचारक


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