धर्म परिवर्तन पर बोले अधिवक्तागण स्वेच्छा से चलो बुद्ध की ओर
गाजियाबाद: भारतीय संविधान के मूलाधिकार, अनुच्छेद 25 ‘धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार’ के तहत स्वेच्छा से बौद्ध धम्म, उसकी संस्कृति व जीवन पद्धति पथ को स्वीकार करने वाले सामाजिक रूप से पिछड़े अनुसूचित जाति के परिवार की साम्राज्यवादी सामंतवादी पूंजीवादी व पाखंडवादी शक्तियों से शारिरिक मानसिक सामाजिक धन सम्पत्ति की सुरक्षा व राजनेतिक साजिशों एवं षडयंत्रों से संरक्षण के लिए जाने के सम्बन्ध में ज्ञापन*
सादर अवगत करना है कि भारत के संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक पंथ-निरपेक्ष समाजवादी लोकतांत्रिक राज्य घोषित किया गया है। प्रस्तावना के अनुसार भारत के सभी नागरिकों को "विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना" की स्वतंत्रता होगी। भारतीय संविधान के अंतर्गत भारत के प्रत्येक नागरिकों को अनुच्छेद 25 के अनुसार "लोक व्यवस्था, सदाचार, स्वास्थ्य और भाग 3 के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए सभी व्यक्तियों को अंत: करण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक़ होगा"।
*अनुच्छेद 25 में ना केवल नागरिकों को, बल्कि देश के सभी व्यक्तियों, निवासियों को अपने धर्म को मानने और उसका प्रचार करने की स्वतंत्रता का अधिकार देता है जो लोक व्यवस्था, सदाचार, स्वास्थ्य और मूल अधिकारों वाले भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते है ताकि भारतीय संविधान का उद्देश्य फलीभूत हो सके।*
माननीय राष्ट्रपति महोदय जी, आपका ध्यान विशेषतः भारतीय संविधान की प्रस्तवना (उद्देशिका) पर आकृष्ट करते हुवे, कहना उचित होगा कि भारतीय संविधान की प्रस्तवना जिसके आरंभिक शब्द "हम, भारत के लोग,....." में निहित है ।*
*जहाँ अनुच्छेद 25 व्यक्तिगत रूप से धर्म की स्वतंत्रता प्रदान करता है, वहीँ अनुच्छेद 26 "धार्मिक समूह" के रूप में अपने धर्म से संबंधित कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता देता है. अनुच्छेद 26 के अनुसार "लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए प्रत्येक धार्मिक समुदाय या उसके किसी अनुभाग को निम्नलिखित मूल अधिकार होंगे, अर्थात
1.धार्मिक और पूर्त प्रयोजनों के लिए संस्थाओं की स्थापना और पोषण का,*
2.अपने धर्म विषयक कार्यों का प्रबंध करने का,*
3.चल और अचल संपत्ति को अर्जित करने और उसके स्वामित्व का, और*
4. एसी संपत्ति का विधि के अनुसार प्रशासन करने का अधिकार होगा.*
भारतीय संविधान की आत्मा , प्रस्तवना (उद्देशिका) के अनुसार -*
हम, भारत के लोग, भारत को एक [संपूर्ण प्रभुत्व-सम्पन समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य] बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिको को :
सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्राप्त करने के लिए, तथा उन सब में व्यक्ति को गरिमा और [राष्ट्र की एकता और अखंडता] सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढसंकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर,1949 ई० (मिति मार्गशीष शुक्ला सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते है।'*
माननीय राष्ट्रपति महोदय जी,*
*भारतीय संविधान संग प्रस्तवना (उद्देशिका) की नियति "हम भारत के लोगो में निहित है"I भारत की मूल संस्कृति श्रमण संस्कृति है, गुरु शिष्य आधारित संस्कृति है, जिसमें जीवन पद्धति चुनने की आजादी हैI भारतीय श्रमण संस्कृति में धर्म उपदेश है, आदेश नहीं I धर्म जीवन पद्धति है, जीवन पथ है, जिसको व्यक्ति स्वेच्छा से धारण करता है धर्म के आधार पर सामाजिक राजनीतिक व्यवस्था गुलामी की शोषण की व्यवस्था किसी पर थोपी नहीं जा सकती, धर्म संस्कृति और पंथ चुनने की आजादी भारतीय संविधान देता है।वैश्विक स्तर पर व पूरे देश में साम्राज्यवादी ,पाखंडवादी, पूंजीवादी व सामंतवादी गैरबराबरी की सामाजिक धार्मिक ताकतों के शोषण ,अन्याय व अत्याचार के खिलाफ समता समानता बंधुत्व एवं करुणा मैत्री भाईचारा की स्थापना के लिए, सम्मान से जीवन जीने एवं मानव अधिकारों के लिए सामाजिक स्तर पर क्रांति के लिए गंभीर वैचारिक चिंतन हो रहा है भारत सहित संसार में सभी व्यक्ति सम्मान सुरक्षा व समान अवसर चाहते है कोई व्यक्ति असमानता गैरबराबरी नहीं चाहता सभी सवतांत्रता समानता व बंधुत्व पर आधारित भाईचारे पर आधारित सामाजिक, आर्थिक व संविधानिक शासनिक एवं प्रशासनिक राजनीतिक लोकतांत्रिक व्यवस्था चाहता है ?*
*वैश्विक स्तर पर एवं पूरे देश में आज साम्राज्यवादी, सामंतवादी, पूंजीवादी एवं धार्मिक पाखंडवाद के शोषण अन्याय एवं अत्याचार के विरुद्ध एकजुट होकर अपने मूल बौद्ध धर्म में वापसी हो रही है,जीवन में, जीवन का बोध हो रहा है।*
*जीवन में सामाजिक, आर्थिक ,राजनीतिक व मानसिक स्तर सुधारने के लिए संवैधानिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए बौद्धिक स्तर पर मानसिक स्तर पर वैचारिक स्तर पर बौद्ध धर्म संस्कृति और मानवता वादी वैचारिक सिद्धांतों की पुनरजागृति हो रही है पूरे देश में आज लोग पाखंडवाद से मुक्ति के लिए, बौद्ध धर्म और उसकी वैज्ञानिक जीवन शैली, जीवन पद्धति को अपने घरों में पुन: जागृत कर रहे है बौद्ध धर्म की जीवन पद्धति को पुन: घरों में वापसी कर रहे हैं ।* *बौद्ध धर्म में अपनी पुरातन जड़ों को तलाश रहे हैं ?*
वर्तमान में देश में लोग धार्मिक व जातीय आधार पर अंधभक्ति के उपासक बन रहे हैं जिस कारण देश में अराजकता का जो माहोल तैयार हो रहा है वो देश के नागरिको व समाज के लिए अभिशाप साबित होगा I जोकि प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय संविधान एवं प्रस्तवना की नियति के विरुद्ध है।
हाल में जातीय उत्पीडन से त्रस्त उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद के गाँव करहेरा में अनुसूचित जाति (वाल्मीकि समाज) के पवन के परिवार सहित अन्य 50 परिवार के 256 सद्स्स्यों ने स्वेच्छा से बौद्ध धम्म स्वीकार किया है I जिसके उपरान्त उपरोक्त परिवारों को स्थानीय लोगों द्वारा नाजायज प्रेषण किया जा रह हैI बिना साक्ष्यों के आधार पर परिवार पर गैर जिम्मेदाराना व अमर्यादित बयान जारी कर मानसिक व सामाजिक शोषण किया जा रहा है I
उक्त संवेधानिक तथ्यों एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुवे, माननीय राष्ट्रपति महोदय जी से विनम्र निवेदन है कि तत्काल प्रभाव से वर्तमान में सार्वजनिक रूप से घट रही धार्मिक व जातीय घटनाओ पर अंकुश लगाया जाये व उपरोक्त परिवार को संरक्षण प्रधान किया जाये जो कि राष्ट्रहित व लोक कल्याण में है।
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