दोस्तों जिस जिंदगी के अंत का पता नहीं कब मौत आ जानी है फिर हम बेईमान और पापी क्यों बनते जा रहे हैं ! एक बार श्री गुरु नानक देव जी ने अपने दोनों शिष्यों से सवाल किया की मौत को कितनी दूर समझते हो पहले शिष्य ने कहां आज का सूरज निकला देख लिया कल का देखेंगे या नहीं पता नहीं, गुरु नानक देव जी ने कहा मौत इतनी दूर नहीं, गुरुजी ने जब दूसरे शिष्य मर्दाना से पूछा तू बता भाई मौत कितनी दूर है मर्दाना ने कहा दो पहर बीत चुके हैं बाकी के दो पहर बीते गे या नहीं पता नहीं, श्री गुरु नानक देव जी ने कहा तुम भी मौत को बहुत दूर समझते हो,
श्री गुरु नानक देव जी ने कहा हम आदमी है, एक दमी सांस आया तो जिंदा अगला सांस नहीं आया तो मौत, हमारा एक सांस जो एक गिट 4 उंगली बस हमारी जिंदगी और मौत में बस इतना अंतर है.
यानी दोस्तों हमारी जिंदगी और मौत में एक गिट और चार उंगली का ही अंतर है, सांस वापस जाएं ना जाए
दोस्तों हमारी जिंदगी हमारी मौत में सिर्फ 14 इंच ही दूर है और हम जिंदगी ऐसे जीते हैं जैसे हमें पता है कि अभी इतने साल और हमको जीना है, जबकि हमारी जिंदगी मौत का फासला सिर्फ 14 इंच ही है ना, जाने कब ये स्वास खत्म हो जाए, परमात्मा ने कितने स्वास लिखकर हमें धरती पर भेजा है यह हमें मालूम नहीं मगर सारे संसार में हम अपना ही कब्जा करना चाहते हैं,
दोस्तों लूट धोखा फरेब हेरा फेरी यही हमने जिंदगी का मकसद बना लिया फिर भी हम थकते नहीं, इतना सब करने के बाद भी हम परमात्मा से मांगने मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे रोजाना जाकर मांगने के लिए खड़े हो जाते हैं !
दोस्तों परमात्मा ने हमें धरती पर इंसान बना कर भेजा क्या हमने कभी परमात्मा का शुक्रिया अदा किया !
दोस्तों परमात्मा ने हमें इंसानी चोला दिया और हम काम पशुओं से भी नीचता वाले कर जिंदगी बसर करते हैं, हमारी जिंदगी लालच से भरी जिंदगी बन सी गई है,
दोस्तों सभी पशु पक्षी उस परमात्मा पर यकीन करते हैं जबकि उनके पास कोई सोच और समझ भी नहीं होती हमें परमात्मा ने सोच भी दी हम अपना भला बुरा सोच सकते हैं, मगर हम सोचना नहीं चाहते ?
दोस्तों जो हम देखते हैं वही सीखते हैं *मनजीत*
दोस्तों जब कि हर इंसान को पता है कि हमें गिनती के स्वास मिले हैं यह हमें पता है, परमात्मा कि दी जिंदगी पर कब्जा कर बैठ गए जैसे हमें दुनिया से जाना ही नहीं !
दोस्तों महात्मा बुद्ध ने महल से बाहर निकल देखा कि एक बुजुर्ग बीमार व्यक्ति को जो चल नहीं पा रहा था फिर एक व्यक्ति को अर्थी पर जाते हुए देख विचलित हो गए और महल छोड़ सत्य की खोज में निकल पड़े, सत्य ही परमात्मा है ज्ञान जब आ जाए जिस दिन आ गया उस दिन आप महान बन जाओगे,
दोस्तों पशु पक्षी जानवर जीव जंतु जिनके पास सोच नहीं फिर भी वह परमात्मा पर भरोसा करते हैं तो हम इंसानों होकर उस पर भरोसा क्यों नहीं करते, सेवकों ने 1 दिन संत जी से कहा कुछ लंगर बचा लेते हैं सुबह का मौसम खराब होने का अंदेशा है संत जी ने कहा जाओ पेड़ पर चढ़कर देखो किसी पक्षी के घोसले में कि उसने कुछ बचा कर रखा है, शिष्य ने जब देखा तो कुछ नहीं, दोस्तों पशु पक्षी भी परमात्मा पर भरोसा करते हैं कि जिस परमात्मा ने आज दिया वह कल भी देगा, दोस्तों एक इंसान ऐसा है जिसे पता है कि परमात्मा ही पालनहार है, मगर फिर भी हम उस पर भरोसा नहीं करते एक आध दिन तो क्या हमने अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए भी जमा करना शुरू कर दिया और उसी जमा के चक्कर में हम बेईमान बन गए पाप करने लगे पाप भी इतना कि हम अपना पराया भूल गए हमें लूट की आदत पड़ गई ?
दोस्तों जिस जिंदगी का पता नहीं कि हमें कितने स्वास मिले और कितने हमारे बीत गए और कब यह सांसे समाप्त हो जाएंगी पता नहीं मगर हम पापी बन गए अपना पराया भी भूल हम पाप कमा रहे हैं.
दोस्तों जो पाप हम कमा रहे हैं उसका हिसाब भी हमें देना होगा *मनजीत*
दोस्तों अगर हम परमात्मा की राह चलें तो यही जिंदगी जो एक बोझ के साथ हम जी रहे हैं वह सब्र में खुशियों के साथ जीवन जी सकते हैं,
दोस्तों अगर दोस्ती करनी है तो परमात्मा से करो *मनजीत*
दोस्त ये दुनिया चलन हार है हमने सबने चले जाना है, जो धरती पर आया है उसने एक दिन जाना है, फिर आम आदमी हो या देवी देवता
दोस्तों जब चले ही जाना है तो बेईमान क्यों बने,
*मनजीत*
दोस्तों 84 लाख जूनी में से सुंदर जुनी इंसान और हम इंसान बनकर भी बेईमान, जबकि हमें परमात्मा की राह चल एक यादगार जिंदगी जीनी चाहिए.
अगर इंसानी चोला पहन कर भी हम अध्यात्म की जिंदगी नहीं जीते तो हमारे और जानवरों में क्या अंतर, इंसान हो तो इंसान बनकर जियो,
दोस्तों मैं आपका अच्छा दोस्त *मनजीत* बोल रहा हूं जो भी आर्टिकल आपके सामने आ रहा है यह परमात्मा की राह का एक पन्ना है जिसे आपके भाई के द्वारा लिखा गया है इसे अवश्य पढ़ा करें अगर आप पढ़ेंगे तो परमात्मा से जुड़ेंगे पर मैं आपको परमात्मा से जोड़ने आया हूं आपका भाई हूं आपका दोस्त हूं* सरदार मंजीत सिंह आध्यात्मिक एवं सामाजिक विचारक**
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