दोस्तों जैन धर्म में साल में एक बार ऐसा भी पर्व आता है जिससे क्षमा या माफी मांग कर अपने वह सामने वाले का सम्मान का हिस्सा बन जाता है,
इस पर्व को सभी धर्म के मानने वालों को अपनाना चाहिए हम भी ना जाने साल में कितने लोगों को दुख पहुंचाते होंगे कितने लोग हमारी गलती से पीड़ा में जिंदगी बसर करते होंगे, हम कई बार गुस्से में अपने अहंकार में अपने पद की वजह से अपने पैसे की वजह से कई बार लोगों का अपमान कर देते हैं !
जो हमें नहीं करना चाहिए कई बार अपमान करने के बाद हमारे मन से यह आवाज आती है कि तुमने गलत किया तुम्हारे द्वारा की गलती की वजह से दूसरों का मन खराब हो वह टेंशन में रहे, कई बार सामने वाला व्यक्ति अपमान की वजह से अपनी जिंदगी भी गवा देता है, और हम अपनी झूठी शान या सामाजिक रुतबे की वजह से ऐसा गलत कदम उठा लेते हैं जिसका बाद में पछतावा होता है, हमारे अहंकार की वजह से किसी की मौत का कारण बन जाता है.
दोस्तों वैसे तो हर इंसान को सोच समझकर कोई शब्द निकालने चाहिए मगर मैं यह भी मानता हूं कई बार सामने वाले की किसी बात से रुष्ट होकर भी हम गुस्से में आकर ऐसे शब्द बोल जाते हैं जिसका बाद में गुस्सा शांत होने के बाद हम खुद भी पछतावा करते हैं, उसका फिर क्या, क्योंकि तीर कमान से निकल जाने के बाद वापस नहीं आता, फिर आपके पास एक ही चारा है माफी मांगना और अब तो अंग्रेजी में सिर्फ सॉरी बोल बात समाप्त हो जाती है, दोस्तों माफी मांगना और सॉरी बोलने में बड़ा फर्क है, बांसी शब्द हमारे मुख से देर में निकलता है जब ज्यादा ही बात आगे बढ़ जाए अन्यथा सॉरी शब्द हम जल्दी से बोल जाते हैं,
दोस्तों अगर गुस्से के वक्त हम संयम से रहे तो शायद गलती हो ही ना, मगर ऐसा करना मुश्किल सा होता है, हर इंसान यह गलती कर जाता है दोस्तों गुरुद्वारा साहिब में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के सामने खड़े होकर अरदास में मैंने पिछले 1 साल में जहां-जहां गलती की वह सब याद रहता है क्योंकि जब कभी हम किसी भी रुतबे में आकर गलती करते हैं तो हमें मालूम हो जाता है कि हमने गलती कर दी, फिर क्या शब्द निकले वापिस तो आते नहीं फिर बस माफी ही बचती है, मगर बहुत से लोग इतने अहंकारी होते हैं कि गलती करके भी माफी नहीं मांगते, वह व्यक्ति पैसा पद जाति के नशे में रहते हैं इसलिए उन्हें माफी शब्द कभी अच्छा नहीं लगा, भले ही मान लेते हैं गलती करके, माफी ना मांगना भी आपके दिल पर भारी बोझ बढ़ता जाता है, फिर आप अपने आप से बात कर माफी मांगते रहते हैं, फिर तो वह व्यक्ति नहीं परमात्मा ही माफ कर दे तो ठीक है, जब भी गुरुद्वारा साहिब में खड़े होकर माफी मांगता हूं आप यकीन माने भले ही मैंने अपने गुरु के सामने खड़े होकर माफी मांगी तो मेरी आवाज अगर गुरु सुनता है तो पुकार उस व्यक्ति तक भी जाती है, माफी मांगने से आप छोटे नहीं बन जाते, आप बड़े बनते हैं और किसी को माफ करना भी आसान नहीं फिर भी माफ करने वाला उससे भी ज्यादा महान बनता है,
दोस्तों मैं आपका अच्छा दोस्त *मनजीत* बोल रहा हूं आपसे जो भी बात बांटता हूं उसे जो प्रेरणा मिलती है, उसे अगर आप आगे बांटते हैं तो फल आप तक भी पहुंचता है.
सबसे छोटी क्षमा
तुम सही मैं गलत बात यहीं खत्म उत्तम क्षमा आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज
क्षमा प्रेम का परिधान है क्षमा विकास का विधान है, क्षमा सर्जन का सम्मान और नफरत का निदान है, क्षमा हमारे बड़े पन की निशानी है, क्षमा दिल की दिलेरी में दया की ज्योति है क्षमा दलेरी के दीपक में प्रेम की रोशनी है, आहिंसा की अंगूठी में मानवता का मोती है, मां और क्षमा दोनों एक हैं, क्योंकि क्षमा करने में दोनों नेक है दोस्तों मन में बैर रख माफी मांगते भी हैं तो उसे माफी नहीं कह सकते, यहां सामने वाला भी अगर मन में बैर रख करता है तो उसे भी माफ करना नहीं कहते,
दोस्तों क्षमा मांगना बहुत बड़ी दौलत है, हर इंसान में यह दौलत नहीं होती, कुछ लोग गलती करके भी गलती नहीं मानते उनका अहंकार उन्हें इस कदम को उठाने से रोकता है और आप गुस्से और भर जाते हैं जो करना है कर लेना देख लेना दोस्तों हम सब को यह शिक्षा से सीख लेनी चाहिए दोस्तों हर इंसान को इस पर्व को साल में कम से कम एक बार हो सके तो हर माह हर सप्ताह निभाना चाहिए जब तक समझ ले अगर आपको लगा कि गलती आप से हुई तो शमा मांगने में इंतजार क्यों ? इसलिए इस पर्व की राह चलने से आपकी जिंदगी में एक अनोखा सा बदलाव आएगा, सांसारिक जीवन जीते जहां और बहुत सी मुश्किलें होती हैं वहां एक यह और बड़ा कर क्यों बीमारियों को न्योता भेज रहे हैं,
दोस्तों क्षमा वाणी यानी मन से बैर की गांठ खोल देना या यह कह मन से बैर की गांठ खोलने का पर्व है,
दोस्तों को इस पर्व को हम सब मिलकर मनाया करें जैसे मीठी ईद पर हम गले मिलकर गिला शिकवा दूर करते हैं इसी तरह होली पर भी हम एक दूसरे के गले मिल गिला शिकवा समाप्त करते हैं उसी तरह जैन धर्म में भी क्षमा माफी पर्व मना कर अपने संबंधों को फिर एक बार अच्छा वह खुशबू भरा बनाते हैं,
दोस्तो आर्टिकल को अवश्य पढ़ा करें आपके पढ़ने के बाद अगर कुछ इंसानों को परमात्मा की राह से जोड़ पाया तो परमात्मा का शुक्रिया अदा करूंगा, परमात्मा की राह नामक किताब का एक पन्ना जो आपके भाई के द्वारा लिखा जाता है आओ फिर एक बार आपसे निवेदन करता हूं कि परमात्मा की राह से जुड़े
सरदार मंजीत सिंह आध्यात्मिक एवं सामाजिक विचारक*
0 टिप्पणियाँ