गाजियाबाद : इस दुनिया की रचना करने वाला परमात्मा है, दुनिया में जितने भी जीव जंतु पशु पक्षी नदी नाले चांद सूरज पहाड़ समुंद्र सभी को परमात्मा ने बनाया और उनकी पालना भी परमात्मा करता है,
सृष्टि की रचना करते वक्त कुछ चीजें परमात्मा ने अपने पास रख ली जन्म और मरण परमात्मा के हाथ है, इंसान ने कब जन्म लेना है कौन सी जून में लेना है यह परमात्मा के हाथ है, इसी तरह मरण भी परमात्मा के हाथ है कब किसको कितने स्वास मिलने हैं या मिले हैं यह सब परमात्मा को पता है !
इंसान जब धरती पर आता है उसका जन्म मरण परमात्मा के हाथ में ही होता है ग्रंथों में लिखा है उसके भाग्य का फैसला परमात्मा उसके कर्मों के हिसाब से करता है.
परमात्मा ने अपने हाथ सुख और दुख दोनों ही उसके हाथ है, किसको कितना सुख और दुख मिलना है यह परमात्मा ही जानता है,
परमात्मा ने अपने हाथ यश अपयश परमात्मा के हाथ है किस इंसान को कितना यश देना है और या अपयश देना है यह परमात्मा को पता है,
इंसान की किस्मत भी परमात्मा ही लिखता है,
इंसान के पिछले या इस जन्म के गुणों कर्मों के हिसाब से ही उसकी जिंदगी की सांसे चलती है,
आपके पिछले जन्मों के अच्छे कर्मों का भी लेखा-जोखा परमात्मा के पास होता है जो जन्म दर जन्म चलता है,
एक बार दो दोस्त रोजाना शाम को एक साथ घर से निकलते और कुछ दूरी पर रास्ते अलग अलग हो जाते हैं एक संतों के डेरे पर चला जाता सत्संग करता और जो प्रवचन होते हैं उन्हें ध्यान से सुनता और अपनी जिंदगी में अमल करता,
दूसरा दोस्त वैश्या के कोठे पर चला जाता नाच गाना सुनता
एक दिन दोनों दोस्त जब वापस आ रहे थे तो एक को ठोकर लगी जख्मी हो गया जो संतों के डेरे जाता था वहीं दूसरा जो नाच गाना सुनने जाता उसे ठोकर लगी तो उसे एक सोने की मोहर मिली
दोनों ने अगले दिन संत जी से इस घटना का जिक्र किया संत जी ने कहा जहां तुम्हें ठोकर लगी और जहां तुम्हें सोने का सिक्का मिला
दोनों वहां गए जहां जिस को चोट लगी तो वहां एक रस्सी का टुकड़ा मिला दूसरे को जहां सोने का सिक्का मिला था वहां एक फटी थैली मिली
दोनों फिर संत के पास आए जिस को रस्सी मिली थी, संत जी ने कहा पिछले जन्मों के कर्मों के अनुसार तुम्हें इस जन्म फांसी मिलनी थी, मगर इस जन्म के कर्मों को देखते तुम्हें सिर्फ चोट तक की सजा मिली,
वही दूसरे को पिछले जन्मों के कर्मों के अनुसार सोने की से भरी सिक्कों की थैली मिलनी थी मगर इसके गलत कर्मों की वजह से धीरे-धीरे घट कर एक मोहर तक रह गई,
दोस्तों हमें जो मिलता है हमारे कर्मों के अनुसार मिलता है मगर ऐसा भी नहीं हम अपनी मेहनत से सत्य के मार्ग पर चलने पर सब्र में जिंदगी जीने पर गरीबों की मदद करने पर हमारा भाग्य बदल भी जाता है,
हमारे गुण व अवगुणों का फैसला परमात्मा करता है,
दोस्तों इंसान अपनी राह बदल भी सकता है हम लूट बेईमानी की राह छोड़ मददगार की जिंदगी जीने लगे तो हमारे गुनाह माफ भी हो जाते हैं,
दोस्तों परमात्मा हमें जन्म देकर भूलता नहीं बलिक हमारी पालना भी वही करता है, किसको कितना देना है उसे ही पता है कई बार हमें अचानक परमात्मा कुछ ज्यादा दे दे तो खुशी में फूल जाते हैं दोस्तों पिछले जन्म के कर्मों के बाद इस जन्म में भी आप मददगार की जिंदगी जीते हैं तो परमात्मा आपको अचानक कुछ ज्यादा दे सकता है,
दोस्तों यह परमात्मा की लीला है कब किसको राजा बना दे कब भिखारी ये तो उसे ही पता है,
दोस्तों आज आपको बता रहा हूं आपके अच्छे कर्म आपकी किस्मत भी बदल सकते हैं, *मनजीत*
हर समय हर वक्त परमात्मा की रजा में जीने वाला इंसान खुशियां पा जाता है दोस्तों, खुशियां पैसे से नहीं आती खुशियां मिलती हैं मददगार की जिंदगी जीने से जिंदगी को सेवा ही माध्यम बनाया जिस ने
दोस्तों लूट की दौलत कभी खुशी नहीं देती हां दिखावा देती है, उस दिखावे को देखा लोग सोचने लगते हैं बहुत खुशहाल है मगर ऐसा होता नहीं अंदर से उससे जायदा पीड़ा में दूसरा नहीं,
दोस्तों परमात्मा ने भले ही जन्म मरण सुख दुख यश अपयश भले ही उसके हाथ हो मगर अच्छा इंसान हर वक्त परमात्मा की रजा में रहता है सब्र में जीता है उसे परमात्मा खुशी देता है और कभी दुख भी आ जाए तो वह इंसान उसे परमात्मा का प्रसाद समझ उसका शुक्रिया करता है,
दोस्तों भले ही सब कुछ परमात्मा के हाथ है मगर उसके बावजूद ईमान की जिंदगी इंसानियत की जिंदगी जीने वाले के हाथ ऐसा कार्य कराता है कि रहती दुनिया तक लोग उसे याद रखते हैं,दोस्तों आओ ऐसी जिंदगी जिए जो हमारे हाथ है जिसे जी कर हमें लोग याद रखें ,दोस्तों अच्छी राह हमारी जिंदगी में बदलाव लाती है,
दोस्तों जब भी किसी गरीब को मुस्कुराते हुए देखता हूं तो समझ लेता हूं खुशियों का ताल्लुक दौलत से नहीं यह उसी परमात्मा की लीला है आओ उसकी राह चलें, दोस्तों आखिर में फिर एक बार कह रहा हूं दुनिया की रचना करने वाले परमात्मा ने भले ही हमारी किस्मत लिखी हो मगर हम अपने कर्मों से उसे बदल भी सकते हैं: सरदार मंजीत सिंह अध्यात्मिक एवं सामाजिक विचारक*
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