गाजियाबाद : आम जन की जिंदगी मैं और मेरा तक सिमट गई धीरे-धीरे इंसान इतना स्वार्थी हो गया कि उसे अपने व अपने परिवार के अलावा कुछ भी नजर नहीं आता या ये कहें वो देखना भी नहीं चाहता,
इसी स्वार्थ की वजह से हमारी सोच भी छोटी होती जा रही है, हम लालची हो गए, अगर कहीं कुछ बांटा जा रहा है तो पहले तो मुझे, फिर मेरे परिवार को, इसके आगे इंसान ने सोचना ही बंद कर दिया, मैं और मेरा शब्द हमें बेईमान बना रहा है क्योंकि यह मैं और मेरा का स्वार्थ हमें गुनाह करने पर भी मजबूर कर रहा है, बात ये भी सच है कि हम गुनाह करने को भी तैयार हैं मगर हम अपने को बदलना नहीं चाहते ?
दोस्तों पहले परिवार संयुक्त परिवार या कुटुम होते थे हम धीरे-धीरे अकेले होते जा रहे हैं, परिवारों का टूटना भी मैं और मेरा की वजह से हो रहा है, संयुक्त परिवार में अगर किसी पर संकट आ जाता था तो सभी मिलकर उसका साथ देते थे मदद करते थे तो वह समस्या खत्म हो जाती थी, कई बार बड़े से बड़ा संकट भी एक दूसरे की मदद से हल हो जाता है
संयुक्त परिवार यानी खुशियों का खजाना,
*मनजीत*
आज की जिंदगी ही बदलती जा रही है, हमारी संस्कृति कुटुंब संयुक्त परिवार की रही है मगर आज हम एक दूसरे के साथ नहीं है अकेला ही जीवन जीना चाहते हैं,
मैं और मेरा हमें गुनाह की राह पर ले जा रहा है, मगर हम चुपचाप उसी राह पर चलने को तैयार हैं.
संयुक्त परिवार में गमी आ जाए तब भी एक दूसरे के सहयोग से सहन कर लेते थे मगर आज ऐसा नहीं, मदद करना तो दूर मजाक और उड़ाते हैं !
दोस्तों यही मजाक भी हमें कमजोर कर रहा है और यही मजाक एक दिन लौट कर भी आ जाता है तब वह भी खुश होते हैं जिनकी तकलीफ में हम खुश हुए थे,
दोस्तों यह भी देखा गया हम अपने परिवार को जोड़ते नहीं या ये कहें जोड़ना नहीं चाहते मगर हम समाज जोड़ों का नारा लगाते रहते हैं, समाज तो जुड़ जाएगा पहले मैं और मेरा से तो बाहर निकलो तभी तो हम और हमारा होगा,
दोस्तों इंसान को लगता तो है कि मैं और मेरा हमारे अकेले परिवार के लिए ठीक है,
इंसान अपने सीमित दायरे में जी कर खुश है इंसान की फितरत हो गई रुपया चाहिए उसके लिए भले ही मुझे कितने ही अपनों का त्याग करना पड़े छोड़ना पड़े हम लूट की राह पर चल अकेले होते जा रहे हैं, मगर अपनों से नहीं बाहर वालों से बना कर हम अपने को महान समझने लगते हैं,
दोस्तों धोखा देने की कोई सीमा नहीं धोखा देने वाले रुपए के लिए किसी हद तक गिर सकते हैं और हमें शर्म भी नहीं इंसान ने कभी सोचा है जो लूट मैं कर रहा हूं क्या यह साथ जाएगी, क्या लूट का रुपया हमारे लिए सुख लाएगा तो हम गलत सोचते हैं लूट धोखा फरेब के बाद आने वाला रुपया हमें कभी सुख नहीं दे सकता कभी शांति नहीं दे सकता !
परमात्मा की राह चलकर ही हम खुशियां पा सकते हैं दोस्तों कभी आपने देखा गरीब आदमी क्यूं सुकून में रहता हूं वो परमात्मा की रजा में रहता है जो परमात्मा ने दिया उसी में खुशी से जीवन व्यतीत करता है, उसे परमात्मा पर भरोसा है, लालच इंसान को इतना अंधा बना देती है कि वह अपना पराया भूल जाता है,
परमात्मा की राह पर चलना अपने लिए सुख और स्वर्ग के दरवाजे खोलना जैसा है समाज को चाहिए धोखा देने वाले दूसरों का हक मारने वालों का बाय काट करें ,
दोस्तों हमें अपनी जिंदगी को स्वर्ग बनाने का प्रयास करना चाहिए प्रयास करना चाहिए मैं और मेरा नहीं हम और हमारा तक हमें अपनी सोच बनानी चाहिए, इस जिंदगी को हम जी रहे हैं इसके अंत का तो पता नहीं कब होगा कब हो जाएगा मगर हम लूट के सहारे सो बरसों का सामान इकट्ठा करते जा रहे हैं दोस्तों आओ समाज जोड़ो अभियान चलाएं इस अभियान को चलाने का भी तभी लाभ है जब मैं और मेरा से आगे बढ़ेंगे, आर्टिकल आपको कैसा लगा अपने विचार अवश्य दें दोस्तों, आपका अच्छा दोस्त *मनजीत* बोल रहा हूं परमात्मा की राह नामक एक पन्ना जो आपके पास भेजता हूं अवश्य पढ़ा करें पढ़ेंगे तो परमात्मा से जुड़ेंगे परमात्मा की राह जीवन को आसान बनाती है.*सरदार मंजीत सिंह आध्यात्मिक एवं सामाजिक विचारक*
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