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पुलिस सक्रियता के साथ न्याय प्रक्रिया में भी तेजी की जरूरत, देशभर की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या लाखों में

दिल्ली : दुष्‍कर्म और हत्या की हालिया घटनाओं से उपजे आक्रोश और चिंता के माहौल में केंद्र सरकार ने आवश्यक हस्तक्षेप करते हुए राज्यों को ऐसे मामलों में मुस्तैदी और कड़ाई से कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। शिकायत अक्सर यह की जाती है कि पुलिस महिलाओं के विरुद्ध हुए अपराधों का संज्ञान लेने, प्राथमिकी दर्ज करने और त्वरित जांच करने में देरी करती है या उसका रवैया लापरवाही का होता है।इस वजह से अपराधियों को पकड़ने और सबूतों को जमा करने में देरी हो जाती है। ऐसे में पीड़िता को समुचित न्याय नहीं मिल पाता है। इन समस्याओं को दूर करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपने निदेर्शों में ऐसे अपराधों के मामलों में तुरंत प्राथमिकी दर्ज करने को कहा है। जो अधिकारी ऐसा करने में असफल रहेंगे, उन्हें दंडित करने का प्रावधान भी किया गया है।पुलिस या तो अपराधियों के दबाव में या फिर पीड़िता की कमजोर पृष्ठभूमि और वंचना की वजह से शिकायत दर्ज नहीं करती है। यह भी देखा गया है कि पीड़िता या उसके करीबियों के बयानों को पुलिस गंभीरता से नहीं लेती है। मंत्रालय ने कहा है कि पीड़िता के संबंधियों के बयान को प्रासंगिक तथ्य के रूप में देखना होगा।


इस वर्ष के प्रारंभ में सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश का उल्लेख किया गया है कि अगर मृत्यु से पहले दिया गया बयान मानदंडों पर खरा उतरता है तो उसे इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि वह बयान मजिस्ट्रेट के सामने नहीं दिया गया था या उसे किसी पुलिस अधिकारी द्वारा सत्यापित नहीं किया गया है।


जांच में देरी भी न्याय की राह में सबसे बड़ी बाधा है। इसे दूर करने के लिए शिकायत दर्ज करने के साथ ही फोरेंसिक जांच के लिए सबूत जुटाने तथा दो महीने के भीतर अनुसंधान पूरा करने को कहा गया है।


पीड़िता की सहमति से मामले के संज्ञान में आने के चौबीस घंटे के भीतर चिकित्सक से जांच कराना भी आवश्यक होगा। निर्देश में साफ कहा गया है कि भले ही कठोर कानून बने और अन्य उपाय हों, लेकिन अगर पुलिस ही नियमों का पालन नहीं करेगी तो न्याय मिलना दूभर हो जाएगा और महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकेगी।महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की बढती संख्या को देखते हुए ऐसे निर्देशों और उनके अनुपालन की सख्त जरूरत है। राष्ट्रीय अपराध रेकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में ऐसे चार लाख से अधिक मामले सामने आए थे।पिछले साल औसतन हर दिन सत्तासी दुष्‍कर्म की घटनाएं हुई थीं। पीड़ितों में नवजात शिशु से लेकर वृद्ध महिलाएं तक शामिल हैं। जाहिर है, पुलिस सक्रियता के साथ न्याय प्रक्रिया में भी तेजी की जरूरत है। देशभर की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या लगभग ढाई लाख है।उम्मीद है कि राज्य सरकारें और पुलिस विभागों द्वारा गृह मंत्रालय के निर्देशों पर गंभीरता से अमल किया जाएगा।


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