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धर्म में आस्था रखने वाले लोग अक्सर मनोकामना की इच्छा की पूर्ति के लिए परमात्मा वाहेगुरु के आगे विनती प्रार्थना यानी अरदास करते हैं, अरदास एक शक्ति है, एक प्रेरणा है: सरदार मंजीत सिंह 

गाजियाबाद : इंसान अपनी पीड़ा दर्द दुख सुख शुक्रराना सभी के लिए अपने परमात्मा वाहेगुरु के आगे अरदास करता है, आप गुरद्वारा साहिब पहुंच गुरुद्वारा ग्रंथि साहब से कहकर अपनी गमी खुशी के लिए अरदास करवाते हैं मगर कई बार आपका दर्द दुख गहरा होता है, जितनी आपकी पीड़ा है दुख दर्द है उतना ग्रंथि साहिब, पंडित या मौलवी नहीं समझ पाते महसूस नहीं कर पाते आपकी पीड़ा आप ही अच्छी तरह से समझ पाते हैं उस समय आप खुद गुरु के आगे नतमस्तक हो आपकी अरदास जल्द सुनी जाएगी, आपकी पीड़ा का दर्द सच्ची दरगाह तक जल्द पहुंचेगा, आपको अरदास नहीं करनी आती मगर फिर भी अगर पीड़ा भरी आंसुओं से भीगी आंखें से शीश झुका कर आप गुरु के आगे खड़े हो जाते हैं आप किसी धर्म से हैं परमात्मा एक है आप मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा किस धर्म को मानते हैं सिर्फ अपनी पीड़ा दुख दर्द के लिए सिर्फ परमात्मा के आगे झुक कर अरदास करें वो आपका दर्द जानता है आप सिर्फ परमात्मा से विनती करें प्रार्थना करें अरदास करें दुआ मांगे वो सब की सुनता है चाहे मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा किसी पवित्र स्थल पूजा स्थल इबादत गाह जाकर विनती करें


वाहेगुरु सब जानता है उसे सब पता है, वाहेगुरु आपके हर दुख दर्द में आपके साथ रहता है वाहेगुरु अपने चाहने वालों की हर समय मदद करता है अंग संग रहता है !


अरदास का पहला अक्षर ही यही है अ का अर्थ है अंतर्यामी वो सब जानता है, उससे कुछ छुपा नहीं, आपके दुख और सुख सब के बारे में उसे पता है उसे अपनी पीड़ा से भरी अरदास आप खुद अच्छी तरह से कर सकते हैं, क्योंकि जो दर्द तुम्हें है उसका ज्ञान भी तुम्हें है तुम उसको भली-भांति समझ रहे हो सिर्फ उसके आगे शीश झुका कर खडे हो जाओ आपकी बात खुद ब खुद उस परमात्मा के पास पहुंच जाएगी !


परमात्मा तो अंतर्यामी है आप के दर्द को सुनता है जानता है आपकी अरदास अवश्य सुनेगा, 


अरदास का दूसरा अक्षर र का अर्थ रखवाला परमात्मा सब का रखवाला है, परमात्मा का भरोसा सबसे बड़ा भरोसा है, परमात्मा ने तेरी उस समय भी रक्षा की जब तू मातृ गर्भ में था, उल्टा लटका था, तब भी उस वाहेगुरु ने तेरी रक्षा की, अब भी तू उस पर भरोसा कर वो तेरी हर जगह रक्षा करेगा, तेरे अंग संग रहता है परमात्मा के दिखाए रास्ते पर चलने वाले को डर नहीं सताता है क्योंकि परमात्मा उसकी रक्षा करता है जो उसके बनाए इंसानों की सेवा करता है उनके दुख सुख का भागीदार बनता है,


 सभी पूजा स्थल पवित्र स्थान है जहां हम अपने परमात्मा खुदा वाहेगुरु को याद करते हैं उसकी इबादत करते हैं अरदास का तीसरा अक्षर द है,


 द का अर्थ दाता पालनहार परमात्मा जिसने यह संसार बनाया प्राणी बनाए वह सब का पालन करता है, परमात्मा ने मातृ गर्भ में आपकी रक्षा की आपके जन्म लेने से पहले ही उसने आपकी भूख मिटाने के लिए आपके लिए मातृ दूध का इंतजाम कर दिया मां का खाया खाना आपकी जीविका बनी तो क्या धरती पर लाने के बाद क्या वो आपको रिजक नहीं देगा, इसलिए अरदास के तीसरे अक्षर द का अर्थ दाता जो आपका पालनहार है परमात्मा ने संसार को जीविका देने का वादा किया है सब को रिजक देने का वादा किया है परमात्मा दाता है !अरदास का आखरी अक्षर स है, स का अर्थ स्थान देने वाला सहारा देने वाला जन्म से दुख सुख में और इस संसार को छोड़ने के बाद भी परमात्मा तेरे अंग संग रहता है,


एक इंसान जब चला जाता है मर जाता है उसकी जब अंतिम अरदास होती है जबकि वो खुद वहां मौजूद नहीं होता मर चुका होता है, मालूम भी नहीं होता वो कहां गया उसको जला देने के बाद या दफनाने के बाद या पानी में बहा दिए जाने के बाद वह कहां गया फिर भी परिवार के लोग सगे संबंधी यार दोस्त उस अंतिम अरदास में परिवार के लोग उस परमात्मा से अरदास करते हैं, जिनके बारे में वो खुद नहीं जानते वो इस समय कहां है मगर फिर भी हम परमात्मा से अरदास करते हैं कि वाहेगुरु बिछड़ी आत्मा को अपने चरणों में स्थान दे, वाहेगुरु इंसान के जीते जी ही नहीं मरने के बाद भी आपको स्थान देता है, आपका सहारा बनता है वाहेगुरु के आगे अरदास करने से आपके सारे दुख समाप्त हो जाते हैं, परमात्मा जो अंतर्यामी है जो आप का रखवाला है जो दाता है रोजी रिजक देता है और जीते जी नहीं मरने के बाद भी आप का सहारा बनता है अगर आप परमात्मा के दिखाए रास्ते पर चलते हैं उसके बनाए इंसानों की सेवा करते हैं उनके दुख सुख में शामिल होते हैं एक सच्ची राह पर चलते हैं तो आप यकीन मान लें वो परमात्मा भी आपके साथ हैं आपके हर दुख सुख का साथी है आपको कहीं अकेला महसूस नहीं होने देता बस अपना दुख बयान करने के लिए अरदास करें अरदास करें अरदास करें


मेरा अन्न भी तू मेरा जल भी तू , तू है सब कुछ


मेरी शिकायत नहीं तूने ही दी जिंदगी तू ही पालनहार !


 *सरदार मंजीत सिंह आध्यात्मिक एवं सामाजिक विचारक*


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