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“ईश्वर की उपासना सब मनुष्यों का मुख्य कर्तव्यः डा. सोमदेव शास्त्री

वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून में सोमवार दिनांक 2- नवंबर 2020 से 7 दिवसीय सामवेद पारायण एवं गायत्री यज्ञ सहित भजन एवं सत्संग का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में  सामवेद पारायण एवं गायत्री यज्ञ सम्पन्न हुआ। यज्ञ के पश्चात पं. नरेशदत्त आर्य, पं. दीपचन्द आर्य तथा पं. रमेशचन्द्र स्नेही के ईश्वर तथा ऋषिभक्ति पर अनेक भजन हुए। कार्यक्रम में व्याख्यान देते हुए मुम्बई के प्रसिद्ध वैदिक विद्वान डा. सोमदेव शास्त्री ने कहा कि क्या परमात्मा मनुष्यों के पापों को क्षमा करता है? उन्होंने उत्तर दिया कि नहीं करता। उन्होंने पुनः प्रश्न किया कि फिर ईश्वर की भक्ति क्यों करें? आचार्य जी ने कहा कि पौराणिक बन्धुओं की मान्यता है कि यदि कोई मनुष्य गगा-गंगा शब्दों का उच्चारण कर ले तो उसके सभी पाप क्षमा हो जाते हैं। उनके ग्रन्थों में यह भी विधान है कि रात के सभी प्रकार के पाप प्रातः शिव मन्दिर में शिव की मूर्ति के दर्शन से दूर हो जाते हैं। आचार्य जी ने कहा कि जब तक हमारे देश में कर्म फल सिद्धान्त का प्रचार था तब तक मनुष्य पाप करने में भय करते थे। कर्म फल सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक मनुष्य को अपने किये हुए प्रत्येक कर्म का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है। विद्वान वक्ता ने कहा कि महाभारत के बाद मत-मतान्तरों का प्रचलन होने से पापों को करने में मनुष्यों की प्रवृत्ति बढ़ी है।


आचार्य डा. सोमदेव शास्त्री जी ने कहा कि आजकल देश में जो धार्मिक कथा व सत्संग होते हैं उसमें श्रोताओं की भारी भीड़ होने का कारण यही है कि वहां श्रोता अपने पापों को माफ कराने की भावना से जाते हैं। ऐसा विधान माना जाता है कि भागवत पुराण की कथा सुनने से करोड़ों जन्मों के पाप क्षमा या दूर हो जाते हैं। आचार्य जी ने पाप क्षमा होने संबंधी पौराणिक ग्रन्थों के श्लोकों को बोलकर सुनाया। आचार्य जी ने कहा कि यदि किसी जिले का कलेक्टर कुछ घंटे पाप करने की छूट दे दे और कहे कि उन्हें उनके अपराध का कोई दण्ड नहीं दिया जायेगा और इसके बदले उन्हें कलेक्टर के निवास पर आकर कुछ समय उसकी जय के नारे लगाने होंगे। ऐसी व्यवस्था में बहुत से लोग इसको स्वीकार कर पाप करेंगे और कलेक्टर की जय बोलेंगे। वैदिक विद्वान आचार्य डा. सोमदेव शास्त्री जी ने कहा कि परमात्मा कभी किसी मनुष्य के पापों को क्षमा नहीं करता। उन्होंने कहा कि मनुष्य को ईश्वर की भक्ति अपने पापों को क्षमा कराने के लिये नहीं अपितु अन्य कारणों व लाभों की प्राप्ति के लिये करनी चाहिये। उन्होंने कहा कि ईश्वर के सत्यगुणों को जानकर स्तुति करने से मनुष्य की ईश्वर व उसके गुणों से प्रीति, निरभिमानता तथा ईश्वर से सहाय की प्राप्ति होती है। ईश्वर की भक्ति करने से मनुष्य पर्वत के समान दुःख प्राप्त होने पर भी घबराता नहीं है। ऐसा होना कोई साधारण बात नहीं है।


आचार्य डा. सोमदेव शास्त्री जी ने कहा कि मनुष्यों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं का निवारण भी ईश्वर की भक्ति करने से होता है। आचार्य जी ने उदाहरण देकर बताया कि मनुष्य छोटी छोटी बातों के लिये आत्महत्या कर लेते हैं। उन्होंने कहा कि यदि हम परमात्मा की उपासना के निकट होते हैं तो हम उन्नति करते हैं और यदि उपासना से दूर होते हैं तो मृत्यु के निकट जाते हैं। परमात्मा से दूर रहने वाले व्यक्तियों को जीवन में निराशा व हताशा मिलती है। आचार्य जी ने कहा कि कुछ समय पहले गुड़गांव में एक सप्ताह में ही 25 से33 वर्ष की आयु के 7 लोगों ने आत्महत्या कर ली थी। यह सब धन सम्पन्न युवा थे। इन्हें किसी अपने व्यक्ति ने कुछ कह दिया तो उस छोटी सी बात पर आत्महत्या कर ली। यदि यह उपासना व स्वाध्याय करते होते, तो ऐसा करते न करते।


वैदिक विद्वान डा. सोमदेव शास्त्री जी ने कहा कि उपासना से जो शक्ति व मन की शान्ति मिलती है वह पचास हजार या1 लाख रुपये देकर भी बाजार से खरीदी नहीं जा सकती। बाजार में सहनशीलता बिकती नहीं है। अतः सहनशीलता अनमोल पदार्थ है जो मनुष्य को स्वाध्याय, ध्यान व ईश्वर की भक्ति व उपासना से ही प्राप्त होता है। आचार्य जी ने ऋषि दयानन्द के उस कथन की ओर ध्यान दिलाया जिसमें उन्होंने तर्कपूर्वक कहा है कि जो मनुष्य ईश्वर की उपासना नहीं करता वह कृतघ्न तथा महामूर्ख होता है। उन्होंने कहा कि ईश्वर के हमारे ऊपर असंख्य उपकार हैं अतः उसकी उपासना करना तथा उसके उपकारों को स्मरण कर कृतज्ञ होना हमारा आवश्यक कर्तव्य है। आचार्य जी ने इस क्रम में कहा कि हमें कोई दस बीस रुपये दे दे तो हम उसके प्रति कृतज्ञ होते हैं तथा उसका धन्यवाद करते हैं। परन्तु जिस परमात्मा ने हमें सब कुछ दिया है उसे भुलाये रखते हैं। आचार्य जी ने कहा कि जो मनुष्य ईश्वर की उपासना करते हैं वह ईश्वर पर किसी प्रकार का अहसान नहीं करते। उपासना करने से उपासक को ही अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। आचार्य जी ने कहा कि एक व्यक्ति को ठण्ड लगे तो वह अग्नि के पास जाता है। अग्नि को प्राप्त होने से वह अग्नि पर उपकार नहीं करता अपितु अग्नि से उपकृत व लाभान्वित होता है। इसी तरह से हम परमात्मा की उपासना करते हैं तो इस उपासना से परमात्मा को कोई लाभ नहीं होता अपितु हमें ही उपासना से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।


मनुष्य को कम से कम 1 घड़ी अर्थात् 24 मिनट ईश्वर की उपासना व ध्यान अवश्य करना चाहिये। इस विधान की ओर ऋषि दयानन्द ने हमारा ध्यान दिलाया है। ऋषि दयानन्द ने यह भी विधान किया है कि प्रत्येक मनुष्य को अपनी आय का शतांश अर्थात् एक सौवां भाग दान करना चाहिये। इस आय के सौवें भाग की यदि कोई चोरी करता है अर्थात् दान नहीं करता तो उस व्यक्ति को परमात्मा क्षमा नहीं करता। हमें देखना चाहिये कि यदि हम दान नहीं करेंगे तो हमारा वह धन अनेक अनावश्यक कार्यों में खर्च हो सकता है। ऐसा करके हम ईश्वर की आज्ञा भंग करने से सुरक्षित नहीं रहते। हमारे एक सौ रुपये की आय में एक रुपया परमात्मा का होता है। आचार्य जी ने कहा कि 24 घंटे के दिन में24 मिनट ईश्वर की उपासना का विधान ऋषि दयानन्द जी ने किया है। यदि हम उपासना करेंगे तो हमारा मन व बुद्धि ठीक रहेंगे। जो उपासना करते हुए इस नियम की अवहेलना करते हैं वह कृतघ्न व महामूर्ख होते हैं। आचार्य जी ने कहा कि जो मनुष्य प्रातः व सायं परमात्मा का ध्यान व उपासना नहीं करते उनसे सम्बन्ध नहीं रखने चाहियंे। हमें ईश्वर के उपकारों को मानना चाहिये। हम पर माता-पिता के भी उपकार हैं। इनके लिए प्रतिदिन हमें माता-पिता के पैर छूकर नमस्कार पूर्वक उनका सम्मान करना चाहिये।


वेदों के आचार्य डा. सोमदेव शास्त्री जी ने कहा कि हमें परमात्मा के गुणों को अपने जीवन में धारण करना चाहिये। जो मनुष्य परमात्मा का गुणगान तो करते हैं परन्तु उसके गुणों को अपने जीवन में नहीं उतारते उन्हें ऋषि दयानन्द ने भांड के समान कहा है। सब मनुष्यों को ईश्वर की तरह परोपकार व सदगुणों सहित धन आदि का भी दान करना चाहिये। ईश्वर के गुणों को धारण करने से ही हम परमात्मा के निकट बैठने के लायक होते हैं। परमात्मा के गुणों को धारण कर हमें उसे अपना मित्र, संखा व बन्धु बनाना चाहिये। हमारा साध्य परमात्मा पवित्र है अतः साधक को भी पवित्र होना चाहिये। आचार्य जी ने कहा कि यदि हमारा मन पवित्र नहीं होगा तो हम ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि परमात्मा निर्दोष अन्तःकरण में ही प्रकाशित होता है। यदि हमारा अन्तःकरण पवित्र होगा तभी हमें ईश्वर के दर्शन वा प्रत्यक्ष हो सकता है तथा हम ईश्वर के सत्यस्वरूप को देख सकते हैं। उपासक के अन्तःकरण की पवित्रता अत्यन्त आवश्यक है। आचार्य जी ने यह भी कहा कि उपासना प्रदर्शन की बात नहीं है। इसके आचार्य जी ने कई उदाहरण भी दिये। उन्होंने कहा कि जो दूसरों को दिखाने के लिए भक्ति करते हैं उनको ईश्वर प्राप्त नहीं होता। आचार्य जी ने कहा कि हमें सन्ध्या के लिए सन्ध्या करनी चाहिये, कोई हमें सन्ध्या करता हुआ देखे या न देखे। उन्होंने कहा कि यदि हम बीमार हों तो भी हमें सन्ध्या करनी चाहिये। विद्वान वक्ता आचार्य सोमदेव शास्त्री ने महात्मा मुंशीराम जी तथा पं. लेखराम जी के जीवन की एक घटना सुनाई। इस घटना में पं. लेखराम जी ने महात्मा मुंशीराम जी को कहा था सन्ध्या करना हमारा धर्म है। स्नान व अन्य कार्य तो बाद में भी हो सकते हैं। सन्ध्या समय पर तथा प्रत्येक स्थिति में की जानी चाहिये। पं. लेखराम जी ने यह भी कहा था कि स्नान करना शरीर का धर्म है। सन्ध्या करना आत्मा का धर्म है। इसे हर स्थिति में करना है।


आर्यसमाज के शीर्ष विद्वान डा. सोमदेव शास्त्री जी ने कहा कि परमात्मा हमें हर क्षण और हर पल देखता है। परमात्मा हमारे मन व अन्तःकरण की भावनाओं व विचारों को भी भलीभांति जानता है। अतः हमें भीतर व बाहर से पवित्र होना चाहिये। आचार्य जी ने कहा कि जिस दिन हमारे भीतर यह भाव आ जायेगा उस दिन हम सच्चे ईश्वर के उपासक बन सकेंगे। अपने विचारों को विराम देते हुए डा. सोमदेव शास्त्री जी ने कहा कि ईश्वर के उपकारों को सदैव ध्यान में रखें। कार्यक्रम का संचालन कर रहे आर्य विद्वान श्री शैलेशमुनि सत्यार्थी जी ने कृतघ्नता पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने महाभारत के यक्ष-युधिष्ठिर प्रसंग का उल्लेख कर कहा कि युधिष्ठिर ने यक्ष को बताया था कि संसार में किसी के उपकार को न मानना ही पाप कहलाता है। कार्यक्रम को युवा संन्यासी श्री विवेकानन्द सरस्वती जी ने भी सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल से देश में वेदों के स्वाध्याय की परम्परा रही है। धर्म की सफलता वेदों का श्रवण करने में ही है।


डा. सोमदेव शास्त्री जी के सम्बोधन से पूर्व सामवेद पारायण एवं गायत्री यज्ञ सम्पन्न किया गया। इस अवसर पर यज्ञ के ब्रह्मा स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने सामूहिक प्रार्थना कराई। उन्होंने प्रार्थना में कहा कि हे परम कृपालु परमेश्वर! हम जो यज्ञ कर रहे हैं उसमें हमारा अपना कुछ भी नहीं है। यह यज्ञ हम आपको समर्पित करते हैं। हे ईश्वर! आपने हमें इस महान देश में जन्म दिया है। आपकी हम पर महती कृपा है। हम संसार की चमक व दमक को देखकर भटक जाते हैं। परमात्मा हमें हमारे मोक्ष के आनन्द के लक्ष्य को प्राप्त कराये। इस प्रकार के अनेक वचन स्वामी जी महाराज ने प्रार्थना में कहे। आयोजन में देश के अनेक भागों से लोग पधारे हुए हैं। यज्ञ की पूर्णाहुति रविवार8 नवम्बर, 2020 को होगी। ओ३म् शम्।


 


-मनमोहन कुमार आर्य


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