गाजियाबाद : कुछ माह पूर्व लिखा था कि मेरा आंकलन है कि 2020 के जाते जाते भारत जलेगा। मुझे लगता था कि सितंबर 2020 के बाद भारत को सीमाओं पर और आंतरिक रूप से झझकोरा जाएगा। भारत में लगने वाली यह आंतरिक दवानल, चीन के लिए उस अनुकूल स्थिति का निर्माण करेगी, जिसमे भारत की सीमाओं पर आक्रमण करने का चीन का मार्ग प्रशस्त करेगी। मुझे भारत चीन की सीमाओं की भौगोलिक परिस्थिति व वहां पर शीतकाल की बर्फीली दुर्गमता देखते हुए, दिसम्बर 2020 से पहले या फिर फरवरी 2021 में चीन द्वारा भारत पर आक्रमण किये जाने की आशंका थी।
मुझे लगता है कि अब जब नवम्बर 2020 बीत चुका है और दिसम्बर 2020 के आते आते दिल्ली में पंजाब का किसान, किसान बिल 2020 के विरोध में आंदोलन प्रारम्भ कर चुका है, तब भारत के जलने की घड़ी भी पास आती जारही है। मैने सितंबर में उस लिखे लेख में कहा था कि भारत मे गृहयुद्ध स्तर के सरकार विरोधी/धार्मिक दंगे होंगे और मुझे नही लगता है कि ये आगजनी/तोड़फोड़/दंगे हिन्दू मुसलमान से शुरू होंगे। मैं आज यही सब होता देख रहा हूँ। जिस प्रकार नवम्बर 2019 में दिल्ली में सीएए के विरोध में शाहीनबाग़ में धरना दिया गया था और फिर वहां से शेष भारत मे सीएए के विरोध की आड़ में मोदी सरकार व राष्ट्र विरोधी उग्रता फैलाई गई थी, मैं, ठीक उसी की पुनरावृत्ति, और बड़े स्तर पर होता देख रहा हूँ। जिस प्रकार वामपंथियों और लिबर्ल्स के नेतृत्व में शुरू हुआ सीएए विरोधी आंदोलन का नेतृत्व कट्टर इस्लामिक शक्तियों के हाथ मे चला गया था, ठीक उसी प्रकार कांग्रेसियों और आपियों द्वारा शुरू किया गया यह किसान आंदोलन भी शीघ्र ही प्रत्यक्ष रूप से खालिस्तानियों और कट्टर इस्लामिको के हाथ चला जायेगा।
सीएए विरोधी आंदोलन में तो इस्लामिक कट्टरपंथियों ने बुर्के से बाहर आने में समय लगाया था लेकिन इस किसान बिल 2020 विरोधी आंदोलन ने शुरू में ही अपनी खालिस्तानी पगड़ी दिखा दी है। इस बार यह लोग अपने इस इस्लामिक और खालिस्तानी गठजोड़ को किसी आवरण में छिपा भी नही पाए है। पंजाब से आये पगड़ीधारी सिख किसानों के लिए मस्जिदों में चल रहे लंगर, इनकी भूमिका निभाते हुए लोगो के हाथ मे जम्मू कश्मीर से धारा 370 फिर से लागू किये जाने की मांग करते हुए प्लेकार्ड, ओठों से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का गुणगान और इंद्रा गांधी की तरह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को गोली मार देने की उद्घोषणा, इन राष्ट्र विरोधी खालिस्तानियों और कट्टर इस्लामियों के इस भरत मिलाप को प्रत्यक्षता प्रदान कर रही है। भारत की जनता के सामने यह सब प्रत्यक्ष है और इनको कांग्रेस के साथ भारत के विपक्ष का पूरा समर्थन प्राप्त है।
यदि किसी को यह लग रहा है कि यह कुछ दिनों का आंदोलन है तो इन लोगो को अपने मिथ्याबोध से निकल जाना चाहिए। यह आने वाले समय मे और उग्र होता जाएगा और दिल्ली की सीमाओं से बाहर निकल यह सब तरफ फैलेगा। हो सकता है इस किसान बिल विरोधी आंदोलन में अन्य विरोधी अपनी अपनी मांगों को लेकर जुड़ कर, जनता को एक सामूहिकता का बोध कराए लेकिन इसकी केंद्रीय शक्ति कट्टर इस्लामिक शक्तियों के ही हाथ मे होगी। यह किसान आंदोलन, सोनिया कांग्रेस का, भारत को छिन्न भिन्न करने का अंतिम अवसर भी है। सोनिया गांधी के साथ साथ सभी विपक्षियों को इस बात का भान है की चीन और पाकिस्तान से लगी भारत की सीमाएं उद्दवेलित है और मोदी सरकार, चीनी कारोना महामारी से लड़खड़ाई भारत की अर्थव्यवस्था को पुनर्स्थापित करने और आर्थिक मंदी से पीड़ित भारत की जनता को संभालने में लगी, इस बाह्य व आंतरिक चुनौतियों से जूझ रही है। ऐसे में उनका आंकलन यही है कि यह काल नरेंद्र मोदी जी के विपरीत है और उनको जनता की भावनाओ को भड़का, अराजकता फैला कर, सफलतापूर्वक अस्थिर किया जासकता है।
मेरा आंकलन है कि यह आंदोलन और उससे जनित अराजकता तब तक नही धमेगी जब तक भारत पर चीन, अपनी खोई सैन्य प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करने के लिए, आक्रमण नही करता है। जिसकी संभावना फरवरी 2021 से पहले नही है। यहां यह बहुत संभव है कि चीन की शय पर, पाकिस्तान, जिसकी आर्थिक व राजनैतिक स्थिति दिन प्रतिदिन बिगड़ती जारही है और वहां पर विपक्षी दलों व जनता में पाकिस्तानी सेना की राजनैतिक भूमिका को लेकर आक्रोश सार्वजनिक आने लगे है, वह, अपनी असफलताओं पर आवरण डालने के लिए, कश्मीर का बहाना बना कर, भारत को दोनो सीमाओं पर उलझाने के लिए आक्रमण कर सकता है। मुझे इस पर कोई संदेह नही है कि भारत के साथ साथ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी अपने राजनैतिक जीवन के सबसे संकटकालीन काल मे प्रवेश कर चुके है।
मुझे एक तरह जहां इस पर कोई संदेह नही है कि मेरा आंकलन मूर्तरूप लेगा, वही पर मुझे इस पर भी कोई संदेह नही है कि मोदी जी, तमाम कष्टों और विभीषका के उपरांत भी, भारत को इस महासंकट से सुरक्षित निकाल लेंगे। शायद प्रारब्ध ने, नरेंद्र मोदी जी की यही भूमिका चुनी है।
मुझे आभास होता है कि काल ने भारत और उसके सनातन को सुरक्षित बनाये रखने के लिए ही वैराग्य की उत्कंठा लिए साधुमार्ग पर चल रहे वैरागी को, लौटा कर, राजनीति के पथ का पथिक बनाया है। मेरे इन विचारों को समय के साथ साथ हो रही घटनाएं और मोदी जी में हो रहे परिवर्तनों से, दृढ़ता मिलती जारही है। मुझे, कल वाराणसी में देवदीपावली के अवसर पर, गंगा तट पर शिव स्त्रोत सुनते व वाराणसी तट का विहंगम दृश्य देखते हुए, मोदी जी के स्वरूप और भाव भंगिमा ने यह अनुभूति प्रदान की है कि यह व्यक्ति, सांसारिक प्रांगण से स्वयं को विच्छिन्न करने की प्रक्रिया में प्रविष्ट कर चुका है। ऐसी मनोस्थिति में पहुंचा व्यक्ति, मनोभावनाओं के कुरुक्षेत्र को पार कर, संवेदनाओं के स्तर पर तटस्थ होता जाता है। जब ऐसा होता है तो ऐसे व्यक्ति की धर्म अधर्म, सत्य असत्य और पाप पुण्य के बीच की स्पष्टता समग्र हो जाती है। ऐसा व्यक्ति, शेष विश्व की प्रतिक्रिया, आंकलन और विचारों के मोहजाल को काट निर्मोही हो जाता है। मैं, कई वर्षों बाद इस निर्मोही शब्द का उपयोग कर रहा हूँ, क्योंकि जिस पल की प्रतीक्षा मैं वर्षों से कर रहा था, वह पल अब सन्निकट आता प्रतीत हो रहा है।
मुझे पूर्ण विश्वास है आगामी आने वाले 6/7 माह का काल, भारत के पथ पर कंटक बनी हर शक्तियों पर इस निर्मोही के प्रतिकार का काल है। यह काल कष्ट जरूर देगा लेकिन इसे हमे प्रसवपीड़ा के भांति स्वीकारना होगा। मुझे विश्वास है कि 2021 का वर्ष जब अस्तांचल को जारहा होगा तब भारत अपने ब्रह्ममूर्त के अंधकार को छोड़, उदय हो रहा होगा साभार
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