साहिबाबाद : शाहिद नगर “आशादीप फाउन्डेशन” डी-81, के प्रांगण में “भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, ज्योतिपुंज, क्रान्तिकारी विचारक, उत्कृष्ट कवियत्री सावित्रीबाई फूले” का जन्म दिन आयोजित किया गया, कार्यक्रम की अध्यक्षता आशादीप फाउन्डेशन की सचिव, मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्रीमती ज्योति चेट्टी समाज सेविका ने, उद्घाटन श्री एच0 के0 चेट्टी ने किया,
राम दुलार यादव संस्थापक/अध्यक्ष लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट, मुख्य वक्ता भी कार्यक्रम में शामिल रहे, संचालन अनिल पाल ने किया, कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि वीरेन्द्र यादव एडवोकेट जिला महासचिव समाजवादी पार्टी, संजू शर्मा, रेनूपुरी, शबाना, मीना ठाकुर ने भी भाग लिया|
महिला उत्थान संस्था की राष्ट्रीय अध्यक्ष बिन्दू राय ने गीत प्रस्तुत किया, सभी महानुभावों, गणमान्य नागरिकों ने सावित्री बाई फूले के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें स्मरण कर उनके द्वारा किये गये कार्यों की सराहना की तथा उनके पद चिन्हों पर चलने का संकल्प लिया| कार्यक्रम में लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट द्वारा सावित्री बाई फूले के व्यक्तित्व, कृतित्व के बारे में ज्ञानवर्धन स्वरुप पुस्तक वितरित की गयी, वैश्विक महामारी कोरोना के बचाव के लिए 350 मास्क भी आशादीप फाउन्डेशन के माध्यम से वितरित किया गया|
श्री एच0 के0 चेट्टी ने कहा कि सावित्री बाई फूले ने जान लिया था कि रुढ़िवादी, परम्परावादी लोग अछूतों और महिलाओं को पशु, गुलाम और पैर की धूल समझते थे, तथा उनके मन में यह भाव रहता था कि यदि शुद्र और महिला पढ़-लिख गये तो उनकी गुलामी कौन करेगा, वह शोषण, अन्याय, अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करने लगेंगी, लेकिन ज्योतिबा राव फूले, सावित्री बाई फूले ने हार नहीं मानी, 1848 से 1852 के बीच 18 पाठशालाएं खोल शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय और अनुकरणीय कार्य किया, इनका आर्थिक मदद उनके मित्रों ने की|
पाठशाला चलाने में मकान की व्यवस्था उस्मान बेग ने की, जहाँ सावित्री बाई फूले प्रथम महिला प्रशिक्षित शिक्षिका बनी उनके साथ 19वीं शताब्दी में पहली मुस्लिम शिक्षिका फातिमा बेग रही|
वीरेन्द्र यादव एडवोकेट ने कहा कि सावित्री बाई फूले ने महिलाओं के कल्याण के लिए “महिला सेवा मण्डल” का गठन किया, 1855 में मजदूरों, किसानों तथा गृहणियों को पढ़ाने के लिए रात्रि में पाठशाला खोला, 1876 में जब महाराष्ट्र में अकाल पड़ा तो इन्होने 42 भोजन केन्द्रों की स्थापना की जहाँ जरुरतमंदों को भोजन की व्यवस्था थी| महात्मा ज्योतिबा राव फूले के 1890 में देहावसान के बाद “सत्य शोधक समाज” की अध्यक्षा बन उनके अधूरे कार्य को गति प्रदान किया|1897 में पूना में प्लेग, हैजा फ़ैल गया अपने दत्तक पुत्र डा0 यशवंत के साथ मरीजों के इलाज में रात-दिन एक कर दिया| सेवा करते हुए वह भी प्लेग की चपेट में आ गयी तथा 10 मार्च 1897 को आपने अन्तिम साँस लिया| हमें उनके महत्पूर्ण किये हुए शिक्षा और चिकित्सा के उत्थान को याद रखते हुए समाज में समता भाव जागृत करना चाहिए|
मुख्य अतिथि राम दुलार यादव ने कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि ज्योतिबा राव फूले ने अपनी अनपढ़ पत्नी को पूर्ण शिक्षित कर, बच्चों की शिक्षा के लिए तैयार किया| अध्यापन कार्य करते समय उन्हें थामस क्लार्कसन की जीवनी से प्रेरणा मिली की उन्होंने गोरे अमेरिकियों द्वारा काले हब्सियों से जानवरों जैसे व्यहार, शारीरिक शोषण करते हुए मानसिक गुलाम बनाये हुए है, थामस क्लार्कसन के प्रयास से कानून बनाकर उन्हें मुक्ति मिली, इन्हें समझने में देर नहीं लगी कि वंचित महिलाओं, अछूतों को शिक्षा से ही गुलामी से मुक्ति मिलेगी| आज 21वीं शदी में भी हम शिक्षा के क्षेत्र में अनुकरणीय कार्य नहीं कर पाये है जबकि आज संसाधन है उन्होंने संसाधनों के अभाव में महिलाओं और वंचित, शोषित, उपेक्षित वर्ग के लिए करके दिखा दिया तथा उनके अन्दर जागरण पैदा कर दिया| शिक्षा के क्षेत्र में खर्च के मामले में दुनिया के देशों में भारत 136वें स्थान पर है जहाँ जापान, क्यूबा जैसे देश बजट का 10% खर्च करते हैं, अमेरिका, ब्रिटेन 6% बजट का खर्च करते हैं, वहीँ देश में शिक्षा पर बहुत ही कम बजट खर्च किया जा रहा है| 1964 में कोठारी आयोग ने शिक्षा पर 6% खर्च करने की सिफारिश की थी, यूनेस्को के मुताबिक दुनिया में सबसे ज्यादा अनपढ़ भारत में है, महिलाओं की हालत दयनीय है, चिंताजनक है| 10 लाख से ज्यादा शिक्षकों के पद खाली है, उत्तर प्रदेश और बिहार की हालत और भी ख़राब, चिंताजनक है| हमें स्कूलों के पाठ्यक्रम में सावित्री बाई फूले को पढाना चाहिए जिससे देश के बच्चों में शिक्षा के प्रचार-प्रसार का वातावरण तैयार हो| किसी भी राष्ट्र के शिक्षक ही बच्चों के भविष्य के निर्माता होते है, बच्चों में नैतिक गुणों के साथ-साथ समाज को मजबूत, संपन्न बनाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं, तथा बच्चों के पथ-प्रदर्शक भी होते हैं| यह सावित्री बाई फूले के बताये रास्ते पर चलकर ही सम्भव हो सकता है|
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि राम दुलार यादव को शाल ओढाकर तथा प्रतीक चिन्ह नववर्ष का कलेंडर और डायरी देकर सम्मानित किया गया, सावित्री बाई फूले के चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गयी प्रमुख रहे, एच0 के0 चेट्टी, ज्योति चेट्टी, राम दुलार यादव, वीरेन्द्र यादव एडवोकेट, अनिल पाल, संजू शर्मा, बिन्दू राय, रेनूपुरी, शबाना, मीना ठाकुर, फरदीन, रिहान, जावेद, तनवीर, अभिशेष, अमन, अजमुद्दीन, रहीमुद्दीन, मुस्कान, जीतसिंह, आशा, आरशी, विवेक, आशिम, कृषि, सोनिया, फरजाना, राजेन्द्र कौर, रुकसाना, नगमा, संतोष कौर, रजनी कौर आदि|
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