गाजियाबाद : जिस तरह आप आग को रजा नहीं सकते वह कभी नहीं कहेगी बस और नहीं उसी तरह इंसान की दौलत की भूख कभी खत्म नहीं होती और भूख बढ़ती जाती है,
दोस्तों परमात्मा से जुड़ाव और सब्र कम होता जा रहा है, इंसान एक अंधकार की तरफ भागा जा रहा है,
आज जो इंसान दाल रोटी खा रहा है, कल वह सोचता है साथ में सब्जी भी हो फिर मीठा भी हो, फिर आगे से आगे सोचता है मगर संतुष्टि नहीं होती भूख बढ़ती जा रही है वहीं दूसरी तरफ सब्र में जीने वाले को अगर बिना थाली के हाथ में ही दो रोटी चटनी या आचार के साथ मिल जाती है तो उसे खाकर परमात्मा का शुक्रिया अदा करता है,
दोस्तों लालच कभी कम नहीं होती, उसी लालच में हम पाप करने में लग जाते हैं क्योंकि पैसे की भूख दौलत की भूख इंसान को अंधा बना देती है, अंधेपन में वह सभी रिश्तो को भूल जाता है,
उसी लालच में वह कभी पुण्य तो क्या पाप ही पाप कमाता है ,फिर वही पाप भी इतना बढ़ जाता है कि इंसान अपनी भूख को शांत करने के लिए गुनाह करता है और उसे गुनाह करने का अफसोस भी नहीं होता,
दोस्तों दिन रात उसका एक ही मकसद होता है जायदा से जायदा धन कमाना जितनी भी वह दौलत कमाता है उसमें भी उसे सब्र नहीं, लालच उसे गुनाह के दरवाजे पर खड़ा कर देती है,
दोस्तों इसी दौलत के लिए जो वह गुनाह करता है तो उसे उस गुनाह का अफसोस भी नहीं होता,
दोस्तों दौलत दौलत बस दौलत, हमारी शांति छीन रही है हम बीमार हो रहे हैं हर वक्त टेंशन में जी रहे हैं, सब्र से हम दूर होते जा रहे हैं, दौलत की लालच हमें रिश्तो से दूर कर रही है, दौलत हमारी खुशियां छीन रही है,
दोस्तों इंसान की लालच ही उसे गुनाहगार बनाती है,
दोस्तों जिस व्यक्ति के पास साइकिल हो वह चाहता है मोटरसाइकिल आ जाए और जिसके पास मोटरसाइकिल हो उसे कार की तमन्ना रहती है, कार वाले को महंगी कार फिर और महंगी, सब्र नहीं जो परमात्मा ने दिया उसी में सब्र ने जीना चाहिए,
एक बार एक व्यक्ति साइकिल से सफर के लिए निकला तो उसने देखा पीछे से कोई स्कूटर या कार आती तो आगे निकल जाती है तो उसके मन में आया परमात्मा मुझे स्कूटर या मोटरसाइकिल तो कम से कम दे देता तो मैं भी रफ्तार से आगे बढ़ जाता,
दोस्तों जिस वक्त यह सब बातें उसके अंदर चल रही थी तभी उसने देखा एक विकलांग व्यक्ति जिसके हाथ पैर ठीक नहीं थे, एक ट्राई साइकिल पर था और चलते-चलते परमात्मा के गुणगान कर रहा था परमात्मा के गीत गा रहा था, उसे देख साइकिल वाले के मन में आया कि परमात्मा ने मुझे दो हाथ पैर दिए और वह जो व्यक्ति ट्राई साइकिल पर था परमात्मा ने उसे हाथ पैर भी सही नहीं दिए फिर भी वह परमात्मा के गुणगान कर रहा है,
दोस्तों इंसान की लालच ही उसे गुनाहगार बनाती है और जिस व्यक्ति की लालच बढ़ जाती है तब फिर वह अपना पराया भी भूल जाता है, उसका सिर्फ एक ही मकसद होता है पैसा कमाना, चाहे फिर उसके लिए वह अपना जमीर भी बेचने को तैयार रहता है,
दोस्तों दौलत की भूख हमें परमात्मा से दूर कर देती है,
दौलत की बढ़ती भूख हमारा सुखचैन सब छीन लेती है, हम कभी परमात्मा का शुक्रिया नहीं करते, उसने हमें निरोगी काया दी मगर दौलत हमें अपाहिज बना रही है
दोस्तों सब्र में जीना सीखो परमात्मा पर भरोसा करें, परमात्मा कभी हमको भूखा नहीं सोने देगा,
सब्र में जिंदगी जीने वाले की जिंदगी में सुकून होता है, जितना परमात्मा देता है उसी में जिंदगी जी कर मददगार भी बनता है, जो है भले कम ही हो उसी कम में से दूसरों की मदद करना परमात्मा की इबादत है, *मनजीत*
दोस्तों सब्र परमात्मा से जोड़ता है और परमात्मा से जुड़ा इंसान शांति में जीवन जीता है, फिर दौलत वाला व्यक्ति धीरे-धीरे समाज से अलग हो जाता है, उसकी दोस्ती आम आदमी के साथ नहीं होती, दौलत वाले से होती है वह कभी भी एक दूसरे पर विश्वास नहीं करते,
सब्र में शांति में परमात्मा से जुड़ा इंसान लालची नहीं होता, सब्र में जिंदगी जीने वाला परमात्मा वह परमात्मा के बनाए जीवो से प्यार करता है, उनकी मदद करना परमात्मा की इबादत समझता है,
दोस्तों जिस तरह जलती हुई आग में कितनी भी लकड़ी डालो आग कभी मना नहीं करेगी जिस तरह आग को आप रजा नहीं सकते संतुष्ट नहीं कर सकते,
दोस्तों क्या हम जलती आग की तरह हो गए जो कभी नहीं कहती मेरे अंदर लकड़ी ना डालो मैं बुझना चाहती हूं !
दोस्तों दौलत की भागदौड़ क्या कभी खत्म होगी, दिखावा हमें कहां खड़ा करेगा, दौलत के लिए पाप क्या हमें सुख देगा, हमारा कल ज्यादा अच्छा आने वाला नहीं अगर हम पाप करते रहेंगे,
दोस्तों आओ एक नए समाज का निर्माण करें पुराना समय फिर आना चाहिए जहां दौलत से रिश्ते नहीं जुड़ते थे भाईचारा मुख था इंसान का, इंसानियत से रिश्ता था, उन रिश्तो को एक बार फिर जोड़ने का प्रयास करें,
तभी हमारी जिंदगी में सुकून आ पाएगा, एक अच्छे समाज के निर्माण के लिए इंसान में सब्र और शांति और सकून होना बहुत जरूरी है,
रिश्तो को दौलत से नहीं परमात्मा से जोड़ने का काम करें, परमात्मा की इबादत पूजा या सिमरन हो यह द्वार है परमात्मा से जुड़ने के.
सरदार मंजीत सिंह आध्यात्मिक एवं सामाजिक विचारक*सामाजिक विचारक*
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