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तेरे ज़ुल्म ओ सितम को बयां न कर पाती, जो ख़लवतों में मिले आईने नहीं होते निधि सिंह

देवबंद। साहित्य का आंगन" के फेसबुक पटल पर एक शानदार कवि सम्मेलन मुशायरा का आयोजन किया गया श्रोताओं ने खूब सहायनाकी सभी की

 कार्यक्रम का आगाज़ 

"शाश्वत साहित्य सरिता" के महासचिव वरिष्ठ साहित्यकार मनोज शाश्वत ने अपने चिर परिचित अंदाज़ में कुछ यूं किया ...



सही हो सकता था, इतना भी मैं बीमार कब था,

दवा देने को लेकिन चारागर तैयार कब था।


सभी के सामने कैसे मैं दिल की बात रखता,

मैं तेरी डायरी था, मैं कोई अख़बार कब था।

कार्यक्रम का शानदार अद्भुत संचालन करते 


सरिता जैन ने कहा  


ख़ास होना आप की तक़दीर में था

हम तो बिल्कुल आम होकर जी रहे हैं।


 नारियों में ढूंढते हैं लोग सीता श्री

ख़ुद कहां वो राम होकर जी रहे हैं।

अपने बच्चे तक नही पढ़ते हैं जिसको

हम वही पैग़ाम होकर जी रहे हैं। 

 बहुत ही शानदार अद्भुत लेखनी की धनी युवा रचनाकार निधी सिंह पाखी जी ने कहा

जो मुश्किलों भरे कुछ मरहले नहीं होते

संभलते कैसे अगर हम गिरे नहीं होते


कोई बिठाता घड़ी भर पनाह में अपनी

तो इस जहान में हम दिलजले नहीं होते


मैं तेरे ज़ुल्म ओ सितम को बयां न कर पाती

जो ख़लवतों में मिले आईने नहीं होते

 कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार विनीत आशना ने कहा

रोज़ ढूँढें भी कहाँ दिल को दुखाने वाले 

काम आयेंगे वही दोस्त पुराने वाले


लड़खड़ाने के सलीक़े जरा सीखो हमसे 

रोज़ मिलते हैं कहाँ पीने पिलाने वाले

इनके अलावा मोनू राघव शिवेश ध्यानी ने बहुत ही शानदार काव्य पाठ किया कार्यक्रम का संचालन सरिता जैन ने किया अध्यक्षता विनीत अशाना ने की मुख्य अतिथि गौरव विवेक रहे

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