दिल्ली : कवयित्री अनुश्री, श्री के प्रथम काव्य संग्रह "लड़ियाँ तुम्हारे नाम की" का लोकार्पण समारोह ' आदर्श इन्टर कालेज महुआबाग, सभागार को कोविड के प्रोटोकॉल का पालन करते हुए सम्पन्न हुआ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता डा. विमला मिश्रा भूतपूर्व प्राचार्या राजकीय बालिका इन्टर कालेज गाजीपुर ने किया। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डा. विनय कुमार दुबे विभागाध्यक्ष (हिंदी) पी. जी. कालेज गाजीपुर रहे। मुख्य वक्ता डा. प्रतिभा सिंह व मुख्य वक्तव्य वक्ता
माधव कृष्ण रहे।
पुस्तक लोकार्पण के पूर्व अतिथियों ने मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर तथा पुष्प अर्पित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती रश्मि शाक्य ने कहा-
"अनुश्री "श्री" की कविताओं का केन्द्रीय विषय स्त्री है। प्रेम में डूबी हुई एक खुद्दार स्त्री। ये कविताएं प्रेम की एक ऐसी लोरी की तरह हैं जो सम्मोहित ही नहीं करती बल्कि जगाने का काम भी करती है। इन कविताओं में प्यार के भीतर प्यार की एक मुसलसल तलाश है।"
आधार वक्तव्य देते हुए श्री माधव कृष्ण ने कहा-
" कविता और प्रेम एक दूसरे की पर्यायवाची हैं। कविता और प्रेम तथा कविता और प्रेमी की समाज से नहीं पटती। कविता का चरित्र ऐसा है कि वो हमें अमरत्व दिला सकती है जैसे सूर कबीर तुलसी के काव्य में हमें दिखाई देती है।"
मुख्य वक्ता डा. प्रतिभा सिंह ने इस पुस्तक पर प्रकाश डालते हुए कहा-
" हमारे समाज में यह धारणा है कि लड़कियां जन्म नहीं लेंगी हमेशा लड़के के जन्म की ही कामना की जाती है लेकिन फिर भी वो जन्म लेती हैं उनके जन्म पर सोहर नहीं गाए जाते खुशी नहीं मनाई जाती लेकिन फिर भी वो जन्म ले लेती हैं ठीक वैसे ही जैसे कविताएं जन्म लेती हैं।"
मुख्य अतिथि डा. विनय कुमार दूबे ने कहा कि- " नारी जीवन का केन्द्र है मां बहन पति और प्रेमीके लिए जो भी प्रस्तुत किया गया है वह अद्भुत है।नारी का चरित्र उसकी धारण उसकी उपादेयता बनी रही इसी आधार पर इन्होंने स्पष्ट रूप से व्याख्यायित करती है।"
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डा. अनिल कुमार सिंह नेकहा -
" यह पुस्तक कवयित्री के विचारों का प्रतिफल है जिसमें इन्होंने अपना सम्पूर्ण दर्शन समेट दिया है।"
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही डा. विमला मिश्रा ने कहा -
"निजी जीवन की तमाम रिक्तियों को भरने का सामर्थ्य केवल प्रेम में ही है।"
रामनगीना कुशवाहा जी ने कहा-" प्रेम ईश्वर भक्ति का पर्याय है, प्रेम पावन है गंगा की तरह शुद्ध प्रेम में प्रेमी भी प्रेम की तरह शुद्ध हो जाता है।"
गजाधर शर्मा गंगेश ने कहा इन कविताओं के मूल में प्रेम है इस पुस्तक में कवयित्री ने स्त्री और पुरुष के मध्य के सम्बन्धों और उसकी वजह से उत्पन्न होने वाले पारिवारिक और सामाजिक टकरावों की लड़ियाँ हैं।"
युवा रचनाकार पूजा राय ने अपने वक्तव्य में कहा -" इन कविताओं में न केवल प्रेम है बल्कि स्त्री पुरुष के सम्बंधों की पराकाष्ठा है। व स्त्री विमर्श की बातें हैं।"
इस कार्यक्रम में संजीव गुप्त, रविंद्र श्रीवास्तव, गोपाल गौरव, अमरनाथ तिवारी, कुमार प्रवीन, डा. संतन कुमार, मंजू रावत, श्रीमती मंजू वर्मा, सुनीता सुरभि, अनिल कुमार कुशवाहा, नवनीत पुष्परस, शीर्षदीप तरुण, आशुतोष श्रीवास्तव, गीतांजलि, श्वेता, अम्बे, फरहत, प्रियंका, इशिता, अनुराग, सौरभ, यशवंत ओझा, सुरजीत तरुण आदि प्रबुद्ध जन उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का संचालन रश्मि शाक्य ने और आभार ज्ञापन in श्वेता सिंह ने किया।
0 टिप्पणियाँ