गाजियाबाद : माना कि दूर है साहिल, मझधारों का पार नहीं,,
किन्तु ठहरना बीच भँवर में, अंतर्मन को स्वीकार नही।।
भीषण अग्नि सा तपता सूरज, मीलों आगे मन्ज़िल मेरी,,
किंतु ठहरना बीच पथ पर, अन्तर्मन को स्वीकार नही।।
ह्र्दयपटल पर सँजोये कुछ स्वप्न सुनहरे, उड़ान ऊंची भर रहा यह मन पंछी,,
किन्तु ठहरना बीच गगन में, अन्तर्मन को स्वीकार नही।।
पथिक राह में बिखरे हैं काँटे, लाख धधक रहे अंगारे हों,,
किन्तु पलायन बीच डगर से, अन्तर्मन को स्वीकार नही।।
तूफाँ भयंकर राह में आये, कल विजय ध्वज लहरायेगा,,
किन्तु समझौते कर्मों से करना, अन्तर्मन को स्वीकार नही।।
हे योद्धा!! युद्ध ही कर्म और धर्म तेरे, समक्ष प्रबल शत्रु हों तेरे,,
किन्तु सहसा शस्त्र रख देना भी , अन्तर्मन को स्वीकार नही।।
युवा कवि युगम चड्ढ़ा एडवोकेट गाज़ियाबाद
0 टिप्पणियाँ