गाजियाबाद : आगे बढ़ने की चाह में हम बहुत से साथी और अपनों का कत्ल भी कर रहे हैं, कत्ल जान का नहीं कत्ल विचारों का, सहयोग का, साथ चलने वालों के सफर का,
समाज की गरीबी पर लिखना चाहता हूं ,गरीबी से मेरा अर्थ सिर्फ दौलत से नहीं, गरीबी सिर्फ तन की ही नहीं होती मन की भी होती है, हम लाखों करोड़ों रुपए के साथ जिंदगी बसर कर रहे हैं मगर हम मन से बहुत गरीब है आदत से गरीब हैं, हम अपनी सोच से गरीब है
हम झूठ की जिंदगी जी रहे हैं, हम दिखावा कर रहे हैं और हमारा दिखावा मतलब अमीरी, जबकि हम अंदर से गरीब हैं, हम विचारों से गरीब हैं, हमारी सोच और विचार हमें एक अच्छी जिंदगी नहीं जीने दे रहे, और हमें आदत भी पड़ गई हम आगे बढ़ना चाहते हैं मगर मेहनत से नहीं झूठ के सहारे, उसी आगे बढ़ने की चाह में हम बहुत से साथी और अपनों का कत्ल भी कर रहे हैं कत्ल जान का नहीं, कत्ल विचारों का, सहयोग का, साथ चलने वालों के सफर का
हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि जब हमने यह सफर शुरू किया तब हमारे साथ कौन था, आज कौन है कितने लोगों को हमने स्वार्थ के लिए पीछे छोड़ दिया, अब हमारे साथ कौन हैं उससे हमें मतलब नहीं,
बस सफर तय करना है, ऊंचा उठना है, चाहे फिर कितने ही लोग राह में छूट जाएं,
हमारे सब कुछ पास होते हुए भी बनावटी हंसी, बनावटी बातों का सहारा लेकर आगे बढ़ रहे हैं, हम वफादार नहीं, ना अपने लिए, ना ही किसी और के लिए,
हम धर्म से दूर होते जा रहे हैं, धर्म में जीने वाला इंसान अपने वाहेगुरु को मुख रखता है और हम खुद को मुख रख आगे बढ़ रहे हैं, हम अपने को बदलना भी नहीं चाह रहे हैं,
मैं पूरे समाज की बात करता हूं, हो सकता है मेरे अंदर भी कमियां हो, इसे लिखने के बाद भी कुछ अंतर आने वाला नहीं, एक इंसान को बदलना मुश्किल है, यहां तो पूरा समाज है,
सोचे क्या जो जिंदगी हम जी रहे हैं ठीक हैं,
क्या हम अपने को बदलने का प्रयास करेंगे, शायद नहीं,
लगता तो नहीं फिर कैसे बदलाव आएगा या ऐसे ही जिंदगी गुजार चले जाएंगे,
हर किसी को धोखा दे रहे हैं और हम इस आदत में अपनों को भी नहीं छोड़ पा रहे,
सामाजिक रुतबा हमें यह सब करने के लिए मजबूर करता है, मगर अंदर की आवाज सुने, अगर उसे सुनने लगोगे तो शायद बदलाव आ जाए, शायद बदलाव आ जाए
*नोट* लेख लंबा होता जा रहा था रोका गया ताकि ज्यादा लंबा ना हो जाए ईमानदारी से पढ़े और सोचे अच्छा लगे तो शेयर करें ताकि हमारी बात आगे जा सके
*सरदार मनजीत सिंह*
*आध्यात्मिक एवं सामाजिक विचारक*
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