Ghaziabad : क्या आप भी सोचते हैं क्या यह सवाल आप भी अपने आपसे पूछते हैं,कुछ वक्त पहले जब लोग मुझे मिलते थे तो कभी-कभी कहते थे कि अगली बार अखिलेश यादव की सरकार आनी चाहिए,
मैंने जब उन लोगों को परखा तो कुछ ऐसे होते थे जिन्हें सरकार की कोई नीति पसंद नहीं आई, तो बोल देते थे या जिनका कोई काम नहीं हुआ तो बोल देता था कि समाजवादी पार्टी की सरकार आनी चाहिए,
जैसे-जैसे वक्त आगे बढ़ा टीवी पर भी आंकड़े आने लगे तो लगा
कुछ भी कहे टीवी न्यूज़ चैनल पर भाजपा के सामने समाजवादी पार्टी ही नजर आने लगी,
सीटों की अनुमानित गिनती भी आने लगी, न्यूज़ चैनल अब तक भाजपा की सरकार दिखाते हैं,
बड़ा मन करा इस पर विचार करूं कैसे आगे बढ़ा जाए तभी देखता हूं बहुत से दलों का का तालमेल अखिलेश यादव के साथ होना शुरू हुआ,
समाजवादी पार्टी का कुनबा बढ़ता जा रहा है, इस कुनबा बढ़ने से पूरे प्रदेश में समाजवादी पार्टी की चर्चा और बढ़ने लगी,
आम आदमी की जुबान पर एक बात तो आने लगी कि भाजपा और समाजवादी पार्टी में टक्कर रहेगी,
अब आगे जो जिस पार्टी का समर्थक है वह अपनी अपनी पार्टी का बढ़ता जनाधार बताने लगे उससे समाज में एक चर्चा शुरू हुई,
यही चर्चा अब चारों तरफ है कि या तो समाजवादी पार्टी या फिर भाजपा,
जो जिस का समर्थक है वह अपनी अपनी पार्टी का गुणगान कर रहा है,
समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता अपने-अपने क्षेत्र में यही प्रचार करते नजर आते हैं कि अखिलेश भैया ही आएंगे,
साथ साथ दूसरी पार्टी के कार्यकर्ता तो ज्यादा नहीं बोलते क्योंकि जो पार्टी सत्ता में होती है कार्यकर्ता अपनी पार्टी की सरकार से नाराज ही रहते हैं, क्योंकि उनके छोटे-छोटे काम पूरे नहीं हो पाते, मगर एक बड़ा भाग प्रधानमंत्री जी के साथ जुड़ा दिखाई देता है क्योंकि वह लोग प्रधानमंत्री की निंदा नहीं सुनते इसलिए यह तो बात है, लोग भाजपा के साथ-साथ प्रधानमंत्री जी से भी जुड़े हैं,
वह लोग वोटर हैं,
भले ही भाजपा सरकार लोगों के दिलों में ना उतरी हो मगर कुछ लोगों की जुबान हम मोदी जी के साथ हैं,
अब आ जाएं आगे,
पिछले कई महीनों से सभी दल सड़कों पर नजर आते हैं बहुत सारी रैलियां प्रधानमंत्री जी ने की अब यहां से शुरू होता है, अखिलेश यादव का रुतबा,
रेलिया भले प्रधानमंत्री जी कर रहे हो या मुख्यमंत्री जी कर रहे हो मगर उनके निशाने पर रहते हैं *अखिलेश* यादव ही हैं
हर रैली हर सभा में अखिलेश यादव पर ही तीर छोड़े जाते हैं,
दोस्तों जब देश के प्रधानमंत्री जी एक राज्य के विधानसभा चुनाव में खूब रैलियां कर रहे हो तो इसका अर्थ यही निकाला जा सकता है कि कोई पार्टी जिसको आगे बढ़ते देख उसी की चर्चा की जा रही है,
दूसरी तरफ अखिलेश यादव की रैलियों मे भीड़ भी इसी बात का ऐलान करती है,
अखिलेश यादव अब प्रदेश में खूब रैलियां कर रहे हैं, विजय रथ यात्रा भी आगे बढ़ रही है,
भाई कुछ तो है, आओ हम उसी कुछ की तलाश करें,
बंगाल का चुनाव हमने देखा जिस तरह वहां विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री जी ने ममता बनर्जी को दीदी हो दीदी कह कह कर रैलियों में संबोधित किया
उसी से दीदी का जनाधार बढ़ता चला गया है
कहीं ना कहीं उत्तर प्रदेश में वही खेल हम देख रहे हैं पिछली 10 से 15 रैलियां एक-दो माह में हुई
और हर रैली में एक ही भाषण कहीं ना कहीं यह साबित कर रहा है कि अखिलेश यादव का जनाधार बढ़ता जा रहा है,
दूसरी तरफ पिछले 1 साल से किसानों ने अपनी मांगों को लेकर चल रहे आंदोलन के चलते भी उत्तर प्रदेश उत्तरांचल पंजाब मे किसान मजदूरों की एक बड़ी आबादी सरकार के खिलाफ हुई, आंदोलन स्थल पर भी सरकार द्वारा दी तकलीफों से भी नाराज रहा किसान, आज भले ही किसान आंदोलन समाप्त हो गया मगर भाजपा से किसान मजदूर आबादी का बड़ा भाग नाराज दिखाई देता है,
और पश्चिम उत्तर प्रदेश के ज्यादा किसानों ने किसान आंदोलन में हिस्सा लिया, पश्चिम उत्तर प्रदेश मे नेशनल लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव मे गठबंधन होने से समाजवादी पार्टी का जनाधार बढ़ा है,
दूसरी तरफ चाचा शिवपाल से भी नाराजगी दूर होने का भी असर चुनावों में दिखाई देगा,
और बहुत से छोटे दलों से भी तालमेल गठबंधन होने से *अखिलेश* यादव का जनाधार बढ़ता जा रहा है
दोस्तों कहीं ना कहीं बहुत से कारण बनते जा रहे हैं, समाजवादी पार्टी के पक्ष में
यही सब देख आम आदमी की जुबान से निकल रहा है क्या सन 2022 में उत्तर प्रदेश में *अखिलेश* यादव की सरकार बनेगी
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