मुस्लिम राष्ट्रीय मंच से जुड़ कर के भारत में मुस्लिमों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए पिछले 20 वर्षों में अनेक कार्यकर्ताओं ने अपना पूरा जीवन लगा दिया ऐसे ही एक कार्यकर्ता सलीम अंसारी जो नागलोई में रहते थे दिन-रात मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के काम के माध्यम से मुस्लिम समाज को हर प्रकार से मजबूत करने के लिए लगे रहते थे उन्होंने एक किस्सा सुनाया था जो मैं आप सबके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं उन्होंने बताया कि उनके पास एक बूढ़ी माई जगात लेने के लिए आया करती थी हर वर्ष उसकी जकात निकाल कर रखी जाती थी जब वह बहुत बड़ी हो गई तो अपनी पोती को लेकर के वहां सलीम अंसारी जी के घर पर पहुंची और कहने लगी कि अब मैं बेटा बहुत बुरी हो गई हूं इसलिए अब जकात लेने के लिए मेरी पोती आपके पास आया करेगी सलीम अंसारी जी एक सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति थे परंतु बहुत गहरी सोच के साथ उन्होंने विचार किया कि पिछले 20 साल से हम इस बूढ़ी माई को जकात दे रहे हैं लेकिन अब भी यह स्वाबलंबी नहीं हो पाई और एक नई फौज जकात के लिए खड़ी हो रही है यह तो परिवर्तन नहीं है परिवर्तन तो उसको माना जाएगा जिससे हर भारतीय स्वावलंबी बने मेहनतकश बने और दूसरों का सहयोग करने वाला बन सके अंत में खड़ा व्यक्ति भी अपने को मजबूत महसूस करें इस तरीके का समाज हम सब के कामों से खड़ा होना चाहिए उन्होंने एक दूसरा अवधारणा भी अपने ही किस्से में सुनाया था
जिसमें एक दम पति पति पत्नी की एक्सीडेंट में मौत हो गई तो उनके तीन बच्चे थे और तीन बच्चों के तीन मामा भी थे मेरठ में उन मामा ने तय किया कि हम हर साल अपने हिस्से में से अपने बेसहारा भांजा और भांजी ओ के मदद किया करेंगे बच्चों की इस तरीके से वह हर महीने पांच ₹5000 उन बच्चों के ऊपर खर्च करने लगे तीन मामा से उस परिवार को ₹15000 की मदद हो जाती थी तीनों बच्चे बड़े हुए और उन्होंने कोई टीचर बन गया कोई वकील बन गया बिटिया की अच्छी पढ़ाई के बाद में अच्छे घर में निकाह हो गया तीनों बच्चों ने मिलकर तय किया कि अब हम अपने मामा से जकात नहीं लिया करेंगे और उन्होंने जो कुछ जकात के रूप में हमारी मदद करी इतने वर्षों में अब हम तीनों मिलकर के उनके कहने पर उस मदद से दुगना उनके कहने पर हम किसी एक परिवार की मदद कर देंगे पर जिस गरीब परिवार की हम मदद करेंगे उसको स्वाबलंबी बनने के बाद कहेंगे कि वह उस मदद को आगे किसी और को स्वावलंबी बनाने में मदद करें इस सोच के साथ में वह मामा के पास गए और मामा बताएं गरीब परिवार की मदद करें और उस गरीब परिवार को स्वावलंबी बनाया जिस व्यक्ति की मदद करेंगे और उस स्वावलंबी होगा तो वह आगे एक और परिवार के स्वाबलंबी होने में मदद करेगा इस तरीके की स्थिति से समाज में वह मदद निरंतर चलती रहे और एक एक परिवार स्वाबलंबी होता रहा उनका कहना था कि हमारे देश में हम हर साल भारत के बजट से अधिक जकात फितरा और इमदाद के रूप में निकालते हैं परंतु वह किस अंधे कुएं में समा जाता है यह पता नहीं लगता समाज के अंदर उसके कारण से कोई परिवर्तन नहीं दिखाई देता जबकि भारत के बजट से राष्ट्रपति से लेकर के एक सामान्य कर्मचारी तक की तनख्वाह देश की सुरक्षा से जुड़े हुए लोगों की तनख्वाह देश का विकास होते हुए भी हमारे को दिखाई देता है लेकिन इतनी बड़ी संख्या में यह सब मुस्लिम समाज के द्वारा निकाले जाने के बाद भी उसका परिणाम मुस्लिम समाज के अंदर नहीं दिखाई देता इस पर विचार करने की आवश्यकता है इसलिए मुस्लिम राष्ट्रीय मंच कोशिश करता है कि हम सब लोग हिंदुस्तानी जकात देने वाले बने लेकिन हम सब के प्रयासों से भारत का प्रत्येक नागरिक इतना मजबूत बन जाए अंत में खड़ा हुआ कि वह भी जकात देने वाला बने और हिंदुस्तान में कोई जकात लेने वाला ना बचे सब समृद्ध हो सब सुखी हो इस भाव के साथ में समाज में मदद करने की कोशिश करनी चाहिए गिरीश जुयाल
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