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मानसिक गुलामी अंधविश्वास की बेड़िया तोड़ो तुम, पुरुषार्थ को जगाओ तुम

Ghaziabad :दुनियां चाँद पे चली गई, मंगल की छाती पर नासा ने रोबोट उतार दिया, शनि, मंगल, सूर्यग्रहण- चन्द्रग्रहण के हर रहस्य से पर्दा उठ गया, मगर फिर भी तुम ग्रह नक्षत्रों को शनि मंगल को जन्म कुंडली में देख-देख कर काँप रहे हो ! अपना भविष्य सुधारने के लिए बाबा बाबियों का रास्ता नाप रहे हो!


क्या इसी दिन के लिए तुमने बीएसी, एमएससी, पीएचडी एलएलबी की थी, अफसर, टीचर, वकील, डाॅक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर, प्रोफेसर बने थे कि, तुम पढ़े लिखे जाहिलों की फौज में शामिल हो जाना ?

क्या इसी दिन के लिए तुम डॉक्टर, इंजीनियर, वकील - मजिस्ट्रेट या प्रोफेसर बने थे कि, बंगले पर काली हांडी टांगना, निम्बू मिर्ची टांगना और अपने उज्ज्वल भविष्य की भीख किसी बाबा बाबी के दरबार में नाक रगड़ कर माँगना?

देश आजाद हो गया, दुनियाँ आजाद हो गई ! आखिर कब मिलेगी तुम्हें आजादी मानसिक गुलामी से ?

बंद कमरे में तुम्हारी चोटी कट जाती है, अँधेरे में अकेले में तुम्हें भूत -प्रेत सताते हैं, तुम्हें ही सारी दुनियाँ की नजर लगती है, डायन तो तुम्हारे हर घर में मौजूद है ! 

तुम्हारे तंत्र मंत्र यंत्र काम क्यों नहीं करते हैं, रक्षा सूत्र तुम्हारी चोटी क्यों नहीं बचाता है ? 

आखिर कब तक तुम मानसिक गुलाम रहोगे ?

क्या भारत पुनः विश्व गुरु तुम्हारे जैसे मनोरोगियों की वजह से कभी बन पाएगा ?

दुनियाँ रोज नए-नए आविष्कार कर रही है! तुम हजारों साल पुरानी भाषा संस्कृति रीति धर्म रिवाजों की वैज्ञानिक व्याख्या करने में लगे हो !

कब तक शब्दों के साथ छेड़खानी करोगे ? कब तक धोखे में रखोगे भारत की भोली भाली जनता को हर सिद्धान्त हर आविष्कार को शास्त्रों ऋषि मुनियों के माथे मढ़ोगे?

समस्याएं लौकिक हैं, मगर तुम्हें हर समस्या का हल परलोक में नजर आता है! संसार तुम्हारे लिए स्वप्नवत् है माया है, ईश्वर की लीला है, नाटक है, भ्रम है, आखिर तुम्हें इस सपने से कौन जगाए ?

जो जगाए वही धर्मद्रोही देशद्रोही जातिवादी या नास्तिक है ?

चारुवाक, बुद्ध, महावीर, कपिल, कणाद, गौतम, नागसेन, अश्वघोष, कबीर, नानक, रविदास, ओशो, फुले, शाहू, पेरियार, भीम, भगत सिंह, कोवूर, राहुल, दयानन्द, विवेकानंद सबने विवेक लगाया, मगर फिर भी तुम्हारा विवेक नहीं जागा!

क्योंकि, तुम विश्वगुरु के अहंकार की दारू पीकर गरीबी अनपढ़ता लिंगभेद जातिभेद भाषाभेद क्षेत्रभेद  साम्प्रदायिकता व धार्मिक अंधविश्वास के नाली में पड़े हो !

आखिर तुम्हें कब मिलेगी आजादी मानसिक गुलामी से?

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