अपनी पीड़ा कभी मुझे उनकी तकलीफों से बड़ी नहीं लगी, कितना दर्द उड़ेल दिया धरती पर समेटता ही रहा निकलता तो रोज हूं उसे अपनी बात बताने के लिए फिर चलती सड़क पर जो तस्वीर देखता हूं उसी को बयान कर आता हूं
इन्हीं सबके बीच रहकर रोज-रोज सीख जाता हूं स्कूल जाकर क्या करता
चलती हुई सड़क ही असली जिंदगी की तस्वीर है मनजीत
अब जो घर से ही ना निकले कैसे सीख जाते वह
रोज दुआ मांगता हूं सरबत के लिए उसी में आ जाता हूं
अब अलग-अलग क्या विनती पत्र तैयार करता
अब तस्वीर अपनी लगा दूं गजल में या किसी और की
सब की तकलीफे तो एक जैसी सी हो गई अब
सरदार मनजीत सिंह
आध्यात्मिक प्रचारक
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