गाजियाबाद पेरेंट्स एसोसिएशन द्वारा लगातार निःशुल्क एवम अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार ( आरटीई ) के तहत चयनित बच्चो को शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए आवाज उठाई जा रही है मामला है गाजियाबाद के नामी स्कूल डीएवी स्कूल प्रतापविहार विजय नगर का यहाँ शिक्षा सत्र 2021-22 में छात्रा का नाम आरटीई के अंतर्गत चयनित अभ्यर्थियों की सूची में डीएवी स्कूल प्रतापविहार में आया था छात्रा के अभिभावक साल भर शिक्षाधिकारियों और स्कूल के चक्कर काटते रहे लेकिन छात्रा को स्कूल द्वारा एडमिसीन नही दिया
जिसकी शिकायत गाज़ियाबाद पेरेंट्स एसोसिएशन द्वारा जिलाधिजारी से लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार सरक्षण आयोग , नई दिल्ली से की गई थी जिसका सज्ञान लेते हुये बाल आयोग द्वारा जिलाधिकारी को दो बार सख्त पत्र भी जारी किये थे लेकिन उनका भी कोई असर पड़ता दिखाई नही दिया और शिक्षा अधिकारी चयनित बच्चों का एडमिसीन आरटीई के तहत स्कूलो में सुनिश्चित कराने की बजाय कार्यवाई से बचने की काट ढूढने में जुट गये और इस प्रक्रिया में छात्रा पूरा शैक्षिक सत्र बर्बाद कर दिया गया और अंत मे आयोग को यह पत्र भेजकर पल्ला झाड़ लिया कि स्कूल ने शैक्षिक सत्र में सामान्य से कम एडमिसीन लिये है ऐसा ही जबाब शिक्षा अधिकारियों द्वारा जेकेजी स्कूल विजय नगर के बचाव में भी भेजा गया था । गाज़ियाबाद पेरेंट्स एसोसिएशन की अध्य्क्ष सीमा त्यागी ने कहा कि शिक्षाअधिकारियो द्वारा आयोग को गुमराह करने के लिए रिपोर्ट भेजी है और आयोग द्वारा बिना जांच करे ही रिपोर्ट को सत्य मान लिया है जिसके कारण बच्चे को शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित रहना पड़ा निजी स्कूलों और शिक्षा अधिकारियों की मिलीभगत बच्चों के शिक्षा के मौलिक अधिकार और सरकार के दावों पर भारी पड़ रही है जो अत्यंत चिंता का विषय है आरटीई के अंतर्गत बच्चों का चयन पूरी पारदर्शी तरीके से होता है उसके बाद भी बच्चों को स्कूलो द्वारा एडमिसीन नही दिया जाता शिक्षा अधिकारी स्कूलो पर कार्यवाई करने की बजाय अपने बचाव का रास्ता खोजने में जुटे रहते है जिसकी वजह से प्रदेश के अनेक छात्र - छात्रा शिक्षा के अधिकार से वंचित रह जाते है जो बच्चों के शिक्षा के मौलिक अधिकार को खुली चुनोती दे रहे है प्रदेश सरकार को अपनी चुप्पी तोड़नी होगीप्रदेश में ऐसे निजी स्कूलों की मान्यता रद्द करके नजीर पेश करनी होगी जो आरटीई के अंतर्गत चयनित बच्चों को एडमिसीन नही देते है साथ ही ऐसे शिक्षा अधिजारियो को भी सबक सिखाना होगा जो निजी स्कूलों का बचाव करते है और साल दर साल स्कूलों पर कार्यवाई करने से बचते रहते है अंत में सवाल यहाँ खड़ा होता है कि आखिर छात्रा को शिक्षा के अधिकार से वंचित करने के लिए दोषी कौन शिक्षा विभाग , जिलाअधिकारी , निजी स्कूल प्रबंधक , आयोग अथवा सरकार ?
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