16 मई 2022 बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर विशेष
इस धरती पर 563 ई0पू0 ऐसे महामानव का जन्म हुआ जिसने पूरी मानवता को एक वैज्ञानिक सन्देश दिया, जिनका कहना था कि “जो बात तर्क की कसौटी पर सत्य न हो, उसे कभी मत मानना चाहे उसे मै ही क्यों न कहूँ”| आज बुद्ध पूर्णिमा भारत में ही नहीं विश्व के अनेक देशों में हर्षोल्लास से मनाई जा रही है, बुद्ध पूर्णिमा का महत्त्व तीन अद्भुत घटनाओं के कारण महत्वपूर्ण है, आज के ही दिन धरती पर भगवान बुद्ध का जन्म हुआ, बुद्ध पूर्णिमा के ही दिन आपको बुद्धत्व की प्राप्ति हुई और आज के ही दिन कुशीनारा में आप ने 80 वर्ष की उम्र में महापरिनिर्वाण को प्राप्त किया| बोधगया, सारनाथ, कुशी नगर में बुद्ध पूर्णिमा धूमधाम से मनायी जाती है, बौद्ध धर्म के अनुयायी दीया जलाते है, भगवान बुद्ध का मानना था कि अन्धकार कितना ही गहरा हो, प्रकाश की हल्की किरण को भी नहीं मिटा सकता, ज्ञान का प्रकाश हमें फैलाते रहना है|
भगवान बुद्ध का दर्शन अनात्म दर्शन है जो आत्मा और ईश्वर में विश्वास नहीं करता, उनका मानना था दुनिया की कोई भी शक्ति प्रकृति के नियम को बदल नहीं सकती, उनका जोर हमेशा मानव को समता, सत्य, अहिंसा, करुणा और मैत्री से समाज और व्यक्ति के अन्दर जागृत करने का था जिससे वह सदाचारी रह नैतिक आचरण कर अपना सर्वांगीण विकास कर सके| भगवान बुद्ध ने कहा है कि “मनुष्य अपना विकास स्वयं कर सकता, कोई दूसरा उसके लिए कुछ नहीं कर सकता, इसलिए अपनी उन्नति का रास्ता सद् मार्ग पर चलने से प्राप्त होगा, जैसे कोई भी दुनिया की शक्ति नीम के पेड़ पर आम का फल नहीं प्राप्त कर सकती, वैसे ही जब तक आप स्वयं प्रयत्न नहीं करेंगें, दुनिया की कोई शक्ति आप में बुद्धत्व को पैदा नहीं कर सकती, इस संसार में कोई भी न जन्म से महान होता है, न जाति से महान है, उसके सत्य, अहिंसा, नैतिक आचरण, मैत्रीभाव ही उसे महान बनाते है”| उन्होंने कहा है कि “फूल की सुगंध हवा जिस दिशा की ओर बहती है केवल उधर ही जाती है लेकिन मानव के द्वारा किये गये अच्छे कर्म की सुगंध चारों दिशाओं में फैलती है| मानव यह समझने में भूल करता है कि वह जो दूषित कर्म कर रहा है समाज में भेद-भाव, नफ़रत, असहिष्णुता का वातावरण बना रहा है अपनी शक्ति का प्रदर्शन दूसरों को कष्ट देने में लगा रहा है इस पाप कर्म से उसे कोई बचा लेगा यह उसका बहुत ही भ्रम है, उसे मुक्ति का मार्ग अच्छे कर्म करने से प्राप्त होगा”|
भगवान बुद्ध ने जिस धर्म की स्थापना की वह समतामूलक समाज बनाने, समता, न्याय, मैत्री, करुणा, दया पर आधारित है, और आज भी प्रासंगिक है| उन्होंने झूठ, पाखण्ड, अन्धविश्वास, मूर्तिपूजा, पशु-बलि, नर-बलि का घोर विरोध किया, सनातन धर्म में व्याप्त कर्म-कांड को मानव कल्याण में अवरोध माना, भगवान बुद्ध का दर्शन है कि “चार आर्य सत्य है, पहला संसार में दुःख है, 2-दुःख का कारण है, 3-दुःख का निवारण है, 4-मुक्ति के लिए कार्य करना| अष्टांगिक मार्ग-1-सम्यक दृष्टि,2-सम्यक वाणी, 3-सम्यक वाक, 4-सम्यक कर्म, 5-सम्यक प्रयास, 6-सम्यक जीविका, 7-सम्यक स्मृति, 8-सम्यक समाधि| भगवान बुद्ध का धर्म मध्यम मार्ग है, कहा जाता है कि बौद्ध गया में जब सुजाता ने खीर खिलाने को ले आयी तो कृशकाय भगवान बुद्ध ने मना कर दिया तो उसने कहा कि “इस शरीर रूपी तंत्री के तार को इतना न कस दो कि इसके तार टूट जाय, और न ढीला इतना छोड़ दो कि इसमे से आवाज ही न आये”| खीर ग्रहण किया और भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई, उन्होंने आह्वान किया कि बुद्धम् शरणम् गच्छामि, संघम शरणम् गच्छामि, धम्म शरणम् गच्छामि|
आज पूरे विश्व में भौतिक उन्नति के बाद भी आग लगी है, कहीं युद्ध हो रहा है, कहीं शीत युद्ध चल रहा है, अन्याय, अन्धकार, शोषण, अहंकार की राह पर चल कर हम मानवता को शर्मसार कर रहे है, लोग 21वीं सदी में तबाही झेल रहे है, एक देश दूसरे देश को नीचा दिखाने में लगा है, व्यक्ति, व्यक्ति से धर्म के नाम पर नफ़रत और घृणा कर रहा है, भगवान बुद्ध का मार्ग ही मानवता को बचा सकता है, उन्होंने कहा कि “घृणा को घृणा से नहीं प्रेम से, भलाई से समाप्त किया जा सकता है” आज सबसे बड़ी आवश्यकता समाज में सद्भाव, भाईचारा, प्रेम, न्याय, बंधुत्व पैदा करने की है, तभी हम भगवान बुद्ध के मार्ग पर चलने के अधिकारी होंगें|
लेखक:-
राम दुलार यादव (शिक्षाविद)
संस्थापक/अध्यक्ष
लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट
9810311255
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