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तुम कभी नहीं मेरे घर आई रे आज़ादी !

राह तुम्हारी देख आंख पथराई, रे आज़ादी !
पर तुम कभी नहीं मेरे घर आई, रे आज़ादी !

जाने कितने अरमानों की 
हमने चिता सजाकर ,
ममता स्नेह सुनहरे सपने 
और सिंदूर जलाकर ,

बड़ी तपस्या करके तुमको पाई, रे आज़ादी !
पर तुम कभी नहीं मेरे घर आई, रे आज़ादी !

झोपड़पट्टी पर गरीब के 
तरस न तुमको आता ,
ऊंचे - ऊंचे प्रासादों में 
रहना बस है भाता ,

बस सफेदपोशों के घर इतराई, रे आज़ादी !
पर तुम कभी नहीं मेरे घर आई रे आज़ादी !

सर्दी धूप और वर्षा सह 
भले फसल है बोता ,
मगर खेत की मेड़ों पर 
भूखा किसान है सोता ,

उसकी लाचारी पर तरस न खाई, रे आज़ादी !
पर तुम कभी नहीं मेरे घर आई, रे आजादी
रश्मि शाक्य

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