Ghaziabad :
काटे सब पेड़ और जंगल,
पत्थरों के घर बनाने में,
उजाड़ा घोंसला चिड़िया का,
जिसे वर्षो लगे सजाने में,
चिड़िया हुई बड़ी परेशान,
उजड़ा बसेरा, टूटे अरमान,
चूँ चूँ करती आई घर पर,
बोली आँखों में आंसू भर कर,
बच्चों को जहां सुला दूँ,
भैया मिलेगी कहीं पर ठौर,
बच्चे भीग गए हैं मेरे,
हो रही बारिश घनघोर,
क्या गुजार लूँ रात मैं भैया,
चली जाऊँगी होते ही भोर,
बहन तुम्हारा हैं अभिनंदन,
आ जाओ तुम घर के अंदर,
बहन आज राखी का त्यौहार,
सुनी कलाई रहती हर बार,
राखी बांधो चिड़िया बहन,
लगाओ माथे पर चंदन,
रक्षा करूंगा तुम्हारी मैं,
बच्चे खेले इस घर आँगन,
बहन अब यह तेरा भी घर है,
न उजड़ने का अब कोई डर हैं,
आओ हम शपथ यह खाएँ,
हम पेड़ों को नहीं काटेंगे,
धरा पर पेड़ लगाने को,
हम पौधे घर घर बांटेगें,,
प्रकृति का कर कर वंदन,
पेड़ों को राखी बांध,
मनाएं हम सब रक्षाबंधन। ।।
लेखक
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नरेंद्र राठी
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